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Tuesday, October 26, 2021

भगवान श्री राम सबके स्वामी

राम धनुष टूटने की सत्य घटना 
        
     बात 1880 के अक्टूबर नवम्बर की है। बनारस की एक रामलीला मण्डली रामलीला खेलने तुलसी गांव आयी हुई थी। मण्डली में 22-24 कलाकार थे, जो गांव के ही एक आदमी के यहाँ रुके थे, वहीं सभी कलाकार रिहर्सल करते और खाना बनाते खाते थे।
          पण्डित कृपाराम दूबे उस रामलीला मण्डली के निर्देशक थे, वे हारमोनियम पर बैठ के मंच संचालन करते थे और फौजदार शर्मा साज-सज्जा और राम लीला से जुड़ी अन्य व्यवस्था देखते थे...। एक दिन पूरी मण्डली बैठी थी और रिहर्सल चल रहा था! तभी पण्डित कृपाराम दूबे ने फौजदार से कहा... इस बार वो शिव धनुष हल्की और नरम लकड़ी की बनवाएं, ताकि राम का पात्र निभा रहे 17 साल के युवक को परेशानी न हो.. पिछली बार धनुष तोड़ने में समय लग गया था...! 

    इस बात पर फौजदार कुपित हो गया, क्योंकि लीला की साज-सज्जा और अन्य व्यवस्था वही देखता था.. और पिछला धनुष भी वही बनवाया था...! इस बात को लेकर पण्डित जी और फौजदार में से कहा सुनी हो गई..। फौजदार पण्डित जी से काफी नाराज था और पंडित जी से बदला लेने को सोच लिया था...। संयोग से अगले दिन सीता स्वयंवर और शिव धनुष भंग का मंचन होना था...। फौजदार, मण्डली जिसके घर रुकी थी उनके घर गया और कहा, रामलीला में लोहे के एक छड़ की जरूरत आन पड़ी है, दे दीजिए.....? गृहस्वामी ने उसे एक बड़ा और मोटा लोहे का छड़ दे दिया ! छड़ लेके फौजदार दूसरे गांव के लोहार के पास गया और उसे धनुष का आकार दिलवा लाया। रास्ते मे उसने धनुष पर कपड़ा लपेटकर और रंगीन कागज से सजा के गांव के एक आदमी के घर रख आया...!

         रात में रामलीला शुरू हुआ तो फौजदार ने चुपके से धनुष बदल दिया और लोहे वाला धनुष ले जा के मंच के आगे रख दिया और खुद पर्दे के पीछे जाके तमाशा देखने के लिए खड़ा हो गया...। रामलीला शुरू हुआ पण्डित जी हारमोनियम पर राम-चरणों मे भाव विभोर होकर रामचरित मानस के दोहे का पाठ कर रहे थे... हजारों की संख्या में दर्शक शिव-धनुष भंग देखने के लिए मूर्तिवत बैठे थे... रामलीला धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी..! सारे राजाओं के बाद राम जी गुरु से आज्ञा ले के धनुष भंग को आगे बढ़े...। पास जाके उन्होंने जब धनुष हो हाथ लगाया तो धनुष उससे उठी ही नही..। कलाकार को सत्यता का आभास हो गया.. उस 17 वर्षीय कलाकार ने पंडित कृपाराम दूबे की तरफ कातर दृष्टि से देखा तो पण्डित जी समझ गए कि दाल में कुछ काला है...! उन्होंने सोचा कि आज इज्जत चली जायेगी.. हजारों लोगों के सामने.. और ये कलाकार की नहीं, स्वयं प्रभु राम की इज्जत दांव पर लगने वाली है..! पंडित जी ने कलाकार को आंखों से रुकने और धनुष की प्रदक्षिणा करने का संकेत किया और स्वयं को मर्यादा पुरुषोत्तम के चरणों में समर्पित करते हुए आंखे बंद करके उंगलियां हारमोनियम पर रख दी और राम जी की स्तुति करनी शुरू.... 
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जिन लोगों ने ये लीला अपनी आँखों से देखी थी बाद में उन्होंने बताया कि, इस इशारे के बाद जैसे ही पंडित जी ने आँखें बंद करके हारमोनियम पर हाथ रखा.. हारमोनियम से उसी पल दिव्य सुर निकलने लगे... वैसा वादन करते हुए किसी ने पंडित जी को कभी नहीं देखा था...सारे दर्शक मूर्तिवत हो गए... नगाडे से निकलने वाली परम्परागत आवाज भीषण दुंदभी में बदल गयी.. पेट्रोमेक्स की धीमी रोशनी बढ़ने लगी और पूरा पंडाल अद्भुत आकाशीय प्रकाश से रह रह के प्रकाशमान हो रहा था... दर्शकों के कुछ समझ में नही आ रहा था कि क्या हो रहा है... और क्यों हो रहा.... पण्डित जी खुद को राम चरणों मे आत्मार्पित कर चुके थे और जैसे ही उन्होंने चौपाई कहा---

लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा।भरे भुवन धुनि घोर कठोरा।।
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पण्डित जी के चौपाई पढ़ते ही आसमान में भीषण बिजली कड़की और मंच पर रखे लोहे के धनुष को कलाकार ने दो भागों में तोड़ दिया...🙏
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लोग बताते हैं हैं कि, ये सब कैसे हुआ.. और कब हुआ.. 
किसी ने कुछ नही देखा, सब एक पल में हो गया...
धनुष टूटने के बाद सब स्थिति अगले ही पल सामान्य हो गयी! पण्डित जी मंच के बीच गए, और टूटे धनुष और कलाकार के सन्मुख दण्डवत हो गए.... लोग शिव धनुष भंग पर जय श्री राम का उद्घोष कर रहे थे.. और पण्डित जी की आंखों से श्रद्धा के आँसू निकल रहे थे...

राम "सबके" हैं... एक बार "राम का" होकर तो देखिए....

    🙏🙏   जय श्री राम 🙏🙏

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भगवान श्री राम की महिमा

एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :-

*"कहो राम !  शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ  ?"*

राम मुस्कुराए :-  *"यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?"*

*"जानते हो राम !   तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे|*   यह भी नहीं जानती थी, कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? *बस इतना ज्ञात था, कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।*

राम ने कहा :- *"तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था, कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है”|*

"एक बात बताऊँ प्रभु !   *भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती हैं |   पहली  ‘वानरी भाव’,   और दूसरी  ‘मार्जारी भाव’*|

*”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है, और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है|  दिन रात उसकी आराधना करता है...”* (वानरी भाव)

पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया|  *”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी,   जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न,   वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी,   और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है...   मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना..."* (मार्जारी भाव)

राम मुस्कुरा कर रह गए |

भीलनी ने पुनः कहा :- *"सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न...   “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम,   कहाँ घोर दक्षिण में मैं”|   तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य,   मैं वन की भीलनी...   यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”*

राम गम्भीर हुए | कहा :-

*भ्रम में न पड़ो मां !   “राम क्या रावण का वध करने आया है” ?*

*रावण का वध तो,  लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर भी कर सकता है|*

*राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है,   तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी,  जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे,   कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था”|* 

*जब कोई  भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं !   यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ,   एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|*

*राम वन में बस इसलिए आया है,   ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय,   तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर वन में रहने वाली समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”|*
(अंत्योदय)

*राम वन में इसलिए आया है,  ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं  मां।*
माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।

राम ने फिर कहा :-

*राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है,   भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए”|*

*राम निकला है,   ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है”|*

*राम निकला है, कि ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है”।*

*राम आया है,   ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है”।*

*राम आया है,   ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”।* 

और

*राम आया है,   ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं”।*

शबरी की आँखों में जल भर आया था|
उसने बात बदलकर कहा :-  "बेर खाओगे राम” ?

राम मुस्कुराए,   "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"

शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|

राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :- 
"बेर मीठे हैं न प्रभु” ?

*"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ,  कि यही अमृत है”|*

सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :-   *"सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम"*


*अखंड भारत-राष्ट्र के महानायक, मर्यादा-पुरुषोत्तम, भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन !*
🌹🙏🌹

Monday, October 11, 2021

कल्पना द्वारा नकारात्मकता को सकारात्मकता मे बदलना

*कल्पना द्वारा नकारात्मक को सकारात्मक में बदलना*
*सुबह उठते ही पहली बात, कल्पना करें कि तुम बहुत प्रसन्न हो। बिस्तर से प्रसन्न-चित्त उठें– आभा-मंडित, प्रफुल्लित, आशा-पूर्ण– जैसे कुछ समग्र, अनंत बहुमूल्य होने जा रहा हो। अपने बिस्तर से बहुत विधायक व आशा-पूर्ण चित्त से, कुछ ऐसे भाव से कि आज का यह दिन सामान्य दिन नहीं होगा– कि आज कुछ अनूठा, कुछ अद्वितीय तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है; वह तुम्हारे करीब है। इसे दिन-भर बार-बार स्मरण रखने की कोशिश करें। सात दिनों के भीतर तुम पाओगे कि तुम्हारा पूरा वर्तुल, पूरा ढंग, पूरी तरंगें बदल गई हैं।
जब रात को तुम सोते हो तो कल्पना करो कि तुम दिव्य के हाथों में जा रहे हो…जैसे अस्तित्व तुम्हें सहारा दे रहा हो , तुम उसकी गोद में सोने जा रहे हो। बस एक बात पर निरंतर ध्यान रखना है कि नींद के आने तक तुम्हें कल्पना करते जाना है ताकि कल्पना नींद में प्रवेश कर जाए, वे दोनों एक दूसरे में घुलमिल जाएं।

किसी नकारात्मक बात की कल्पना मत करें, क्योंकि जिन व्यक्तियों में निषेधात्मक कल्पना करने की क्षमता होती है, अगर वे ऐसी कल्पना करते हैं तो वह वास्तविकता में बदल जाती है। अगर तुम कल्पना करते हो कि तुम बीमार पड़ोगे तो तुम बीमार पड़ जाते हो। अगर तुम सोचते हो कि कोई तुमसे कठोरता से बात करेगा तो वह करेगा ही। तुम्हारी कल्पना उसे साकार कर देगी।

*तो जब भी कोई नकारात्मक विचार आए तो उसे एकदम सकारात्मक सोच में बदल दें। उसे नकार दें, छोड़ दें उसे,फेंक दें उसे।*
*एक सप्ताह के भीतर तुम्हें अनुभव होने लगेगा कि तुम बिना किसी कारण के प्रसन्न रहने लगे हो— बिना किसी कारण के।

🌹🌹🌹🌹🙏🙏🙏

Saturday, October 9, 2021

कटे फटे कपड़े पहनने वालो के लिए लेख

*सावधान* 


 अगर आप भी पहनते है कटे-फटे कपड़े तो 

यह तो हम सब जानतें है कि व्यक्ति की पहचान उसके कपड़ों से होती है। कपड़े हमारे शरीर को ढकने का काम तो करते ही हैं साथ साथ हमारे व्यक्तित्व, व्यवसाय, चरित्र, व्यवहार, आत्मविश्वास को भी दर्शाते हैं। किसी भी व्यक्ति को उसके कपड़े पहनने के तरीके, कपड़ों के रंग, उनकी गुणवत्ता से आसानी से पहचान सकते हैं। लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के चलतें आज कल के युवाओं में फटे कपड़े जैसे जींस, टॉप आदि पहनना काफी लोकप्रिय है, लेकिन ऐसे कपड़ें पहनना हमारी संस्कृति के अनुसार शुभ नहीं माना जाता है।

👉ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, फटे कपड़े पहनने से शारीरिक क्षमता एवं ऊर्जा नष्ट होती है। ये हमारे तन-मन को शिथिल बनाकर कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देते हैं।

👉फेंगशुई में भी कटे-फटे जींस पहनने को काफी गलत माना गया है।

👉वास्तुशास्त्र के मुताबिक, *फटे-पुराने कपड़े हमारे लिए बुरा संयोग लेकर आते हैं। कटे-फटे जींस और शर्ट पहनना दरिद्रता को बुलाना है, इसलिए कभी भी हमें फटे कपड़े नहीं पहनना चाहिए और न ही खरीदना चाहिए। फिर चाहे वे कितने ही आकर्षक क्यों न हो। फैशन के चलतें आप कटे-फटे जींस पहनकर अपने दोस्तों के बीच भले ही स्मार्ट और अच्छे लगें, लेकिन ये हमारे अच्छे संयोग को बुरे संयोग में बदल देते हैं। इन कपड़ो को पहनने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का क्षय होता है और जीवनं में नकारात्मक ऊर्जा का वास हो जाता है।*
👉स्त्री का ब्लाऊज फटा होना या काट कर ऐसा डिजाइन बनाया जाना जिसमें अंग झलकते हों पति से मनमुटाव, गृह क्लेश, अकारण ऋण लेने की नौबत, घर में अनेक बीमारियों का प्रवेश आदि का कारण बन सकता है। 

👉फटे पेटीकोट या जिंस आदि के कारण पड़ोसियों से झगड़ा, अपमान की स्थिति का आना, पेट संबंधी बीमारी का प्रारंभ हो सकता है। 
*इसलिए यह आवश्यक है कि अधोवस्त्र के फटते ही उसे बदल दिया जाए वरना आपके जीवन से कब खुशियाँ चली जायेगी आपको पता भी नहीं चलेगा।*

 पत्नी के साथ मनमुटाव या अकारण लड़ाई का कारण भी अधोवस्त्रों का फटा होना हो सकता है। 
*अधिक दिनों तक फटे उपवस्त्रों को धारण करते रहने से अनेक प्रकार की मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है।*

पुरुषों के अधोवस्त्र गंजी (बनियान), जांघिया, अंडरवियर, लंगोटी आदि के फटे होने पर भी तन-मन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। गंजी के फटे होने पर पुरुषों को काली खांसी, दमा, हृदय विकार, हृदय रोग आदि होने के भय बने रहते हैं। इससे पुरुष की भावना भी भटकने लगती है। वह परस्त्री गमन तक कर सकता है।

👉नए कपड़े हमेशा बुधवार, बृहस्पतिवार एवं शुक्रवार को ही धारण करने चाहिए। शनिवार के दिन कोई नया कपड़ा नहीं पहनना चाहिए। 

👉रात के समय कभी भी धुले हुए कपड़ें बाहर नहीं छोड़ना चाहिए, यदि ऐसा होता है तो कपड़ों के माध्यम से नकारात्मक उर्जा घर में प्रवेश कर सकती है जिसका असर आपके सुखी जीवन पर पड़ सकता है।
*अगर आप हमारे इस आलेख से सहमत हैं और यह मानते हैं कि समाज में बढ़ती हुई विकृति को बदला जाना चाहिए और आप इस कार्य में सहयोग करना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें ताकि व्यक्ति की मानसिकता बदल सके अन्यथा आने वाले परिस्थितियों के जिम्मेदार हम भी हैं।*
पंडित चन्द्र प्रकाश तिवारी
(साभार -पंडित चन्द्र प्रकाश तिवारी जी )