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Saturday, September 24, 2022

*गुरू तत्व *चैतन्य संस्कार मंत्र *

गुरू तत्व

चैतन्य
संस्कारमंत्र
     पांच मंत्र हैं जिनमें पूर्ण गुरुतत्व समाहित है और जिनके माध्यम से गुरु स्वयं हमारे शरीर में समाहित हो सकते हैं, हमारा पूर्ण रुप से समर्पण हो जाता है, एक दूसरे से पूर्ण संबंध स्थापन हो जाता है। एक तरह से देखा जाए तो गुरु तत्व अपने आप में जागृत, चैतन्य और विकसित हो जाता है।

पूर्वां परेवां मदवं गुरुर्वै 
चैतन्य रुपं धारं धरेषं। 
गुरुर्वै सतां दीर्घ मदैव तुल्यं 
गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं।।1

अचिन्त्य रुपं अविकल्प रुपं 
ब्रह्मा स्वरुपं विष्णु स्वरुपं। 
रुद्र त्वमेव परतं परब्रह्म रुपं 
गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं ।।2 

हे आदिदेवं प्रभवं परेषां 
अविचिन्त्य रुपं ह्रदयस्त रुपं। 
ब्रह्माण्ड रुप परमं प्रमितं प्रमेयं 
गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं।।3 

ह्रदयं त्वमेवं प्राणं त्वमेवं 
देवं त्वमेवं ज्ञानं त्वमेवं। 
चैतन्य रुप मपरं त्वहि देव नित्यं 
गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं।।4 

अनादि अकल्पिर पवां पूर्ण नित्यं 
अजन्मा अगोचर अदिर्वां अहित्यं। 
अदैवां सरै पूर्ण मदैव रुपं 
गुरुर्वै प्रणम्यं गुरुर्वै प्रणम्यं।।5 

गुरु के इन पांचों श्लोकों के साथ, उन विशिष्ट पंच श्लोंको का भी उच्चारण करना चाहिए जिनके माध्यम से निखिलेश्वरानंद पूर्ण रुप से गुरु रुप में आपके सामने स्पष्ट होते हुए आपको चैतन्य दीक्षा दे सकें और चैतन्य मंत्रों के साथ आपके शरीर में, आपके प्राणों में, आपकी चेतना में और, आपने जीवन में समावेश हो सकें। इसलिए सदगुरुदेव ने पूज्यपाद निखिलेश्वरानंद जी से संबंधित उन पांचों श्लोकों का भी उच्चारण किया है जो अपने आप में अद्वितीय हैं, और इन पांचों श्लोकों को भी सदगुरुदेव ने पहली बार ही उच्चरित किया है ।

आदोवदानं परमं स्वदेयं 
प्राणं प्रमेयं परसं प्रभूतं। 
पुरुषोत्तमां पूर्ण मदैव रुपं 
निखिलेश्वरोयं प्रणमं प्रणामि।।1 

अहिर्भोतरुपं सिद्धाश्रमोSयं 
पूर्ण स्वरुपं चैतन्य रुपं। 
दीर्घोवतां पूर्ण मदैव नित्यं 
निखिलेश्वरोयं प्रणम्यं नमामि।।2 

ब्रह्माण्डमेवं ज्ञानोर्णवापं 
सिद्धाश्रमोSयं सवितं सदैयं। 
अजन्मं प्रभां पूर्ण मदैव चित्यं 
निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि।।3 

गुरुर्वै त्वमेवं प्राण त्वमेवं 
आत्म त्वमेवं श्रेष्ठ त्वमेवं। 
आविर्भयां पूर्ण मदैव रुपं 
निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि।।4 

प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं परेषां 
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं दिनेशां। 
प्रणम्यं प्रणम्यं प्रणम्यं सुरेशां 
निखिलेश्वरोयं प्रणमं नमामि।।5 

ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ और चेतना में अद्वितीय, सिद्धाश्रम के प्राण संस्कारित, अद्वितीय और ब्रह्माण्ड स्वरुप निखिलेश्वरानंद को मैं प्रणाम करता हूं, जिन्होंने ज्ञान और चेतना को अद्वितीय रुप से स्पष्ट किया है ।

यहां चैतन्य मंत्रों का सदगुरुदेव ने स्पष्ट उच्चारण किया है जो चैतन्य दीक्षा के लिए और, चेतना संस्कार के लिए अलौकिक और अद्वितीय मंत्र हैं ।

Saturday, April 16, 2022

*गायत्री मंत्र *

                                 गायत्री मंत्र 

प्रार्थना,:-"किसी भी काल में जाने अनजाने हमसे या हमारे पूर्वजों से कोई गलती हुई हो उसे क्षमा करें हमारी आर्थिक स्थिति सही करें। पूरे परिवार को स्वस्थ करें हमे श्राप मुक्त करे और ऋण मुक्त करें।

रात को सोते समय बिस्तर पर और सो कर उठते समय बिस्तर पर ही पहले उपरोक्त प्रार्थना 3बार पढ़े फिर तत्व के अनुसार प्रत्येक गायत्री मंत्र,संजीवनी महामृत्युंजय,विष्णु गायत्री तीन बार पढ़े! 

पंचतत्व नवग्रह गायत्री मंत्र:

1. वायु तत्व:

*राहु गायत्री:-ॐ शिरोरूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि; तन्नः राहुः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ: पिशाच बाधा; कुष्ठरोग; एलर्जी; गैस; नासूर; कृमि ; सन्निपात; कालरा,बृण, इस गायत्री के पढ़ने से सारे रोग दूर होते हैं !

 *केतु गायत्री:-ॐ गदाहस्ताय विद्ममहे अमृतेशाय धीमहि, तन्नः केतुः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ:  त्वचा की बीमारी, कोढ़, भगंदर, विषवाधा, चेचक, गुर्दे की बीमारी. ल्यूकोडर्मा, इस गायत्री के पढ़ने से ये बीमारियाँ दूर होती हैं।

 *शनि गायत्री:-ॐ सूर्यपुत्राय विद्महे मृत्युरुपाय धीमहि, तन्नः सौरिः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ: घुटने पैरो मे पीड़ा , वेवक्त बुढापा ,हड्डी की टीवी , पायरिया, इस गायत्री के पढ़ने से ये सभी रोग दूर होते हैं।
             
2. जल तत्व:

चन्द्र गायत्री:-ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे अमृततत्वाय धीमहि, तन्नश्चन्द्रः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ: खाँसी , कफ, ट्यूमर , दमा, शराब की लत, आँखो की बीमारी , लकवा , चक्कर , हाईड्रोशील , मन्दबुद्यि, सर्दी ,जुकाम , भारीपन , शीतज्वर, इस गायत्री के पढ़ने से ये सभी रोग दूर होते हैं।

शुक्र गायत्री:-ॐ भृगुसुताय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि, तन्नः शुक्रः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ: कमर के रोग , वातरोग अण्डकोश में सूजन , पीड़ा, मूत्रावरोग ,वीर्य सम्बन्धी रोग,इस गायत्री के पढ़ने से ये सभी रोग दूर होते हैं !!

3. अग्नि तत्व: 

भौम गायत्री:-ॐ अंगारकाय विद्ममहे शक्तिहस्ताय धीमहि, तन्नो भौमः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ: पेशाब, गुर्दा सम्बन्धी रोग, पोलियो, अल्सर , हार्निया, बवासीर, इस गायत्री के पढ़ने से ये रोग दूर होते हैं।

सूर्य गायत्री:-ॐ भास्कराय विद्ममहे महातेजाय धीमहि, तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ:  दिल की बीमारीं, रीड़ की हड्डी, गर्मी की बीमारीं, नेत्र रोग, शरीर मे जलन, सिर पीड़ा, पित्त सम्बन्धी बीमारीं, ब्लडप्रेशर, इस गायत्री के पढ़ने से ये रोग दूर होते हैं।

4. पृथ्वी तत्व: 

बुध गायत्री:-ॐ सौम्यरुपाय विद्ममहे बाणेशाय धीमहि, तन्नो बुधः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ: मानसिक दुर्बलता, नींद न आना, उत्तेजना, चिंता,स्मरण शक्ति की कमी, इस गायत्री के पढ़ने से ये रोग दूर होते हैं।

 5. आकाश तत्व:

गुरू गायत्री:-ॐ आंडि्गरसाय विद्ममहे दण्डायुधाय धीमहि, तन्नो जीवः प्रचोदयात्।

बीमारियाँ:  मांसपेशियो मे अकड़न, हाँथो मे कम्पन, दाहिनी ओर के अंग सुन्न हो जाना, स्नायु पीड़ा, सूजन, पीलिया, लीवर, कैंसर, फेफड़े की सूजन, चिलकन जैसा दर्द, जलोदर, लिखते-२ हॉंथ अकड़ जाना, पथरी,इस गायत्री के पढ़ने से ये रोग दूर होते हैं।

।।संजीवनी महामृत्युंजय।।

ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं त्रयंम्बकंयजामहे भर्गोदेवस्य धीमहि सुगन्धिम्पुष्टिवर्धनम् धियो यो नः प्रचोदयात् ऊर्वारूकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

इस गायत्री के पढ़ने से सभी लोग दीर्घायु होते हैं।
       
विष्णु गायत्री:-ॐ नारायणाय विद्ममहे वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्।