जानिए बीज मंत्र का रहस्य
हमारे धर्मशास्त्रों में अनेक प्रकार के बीज मंत्र बताए गए हैं। बीज मंत्र में अनेक प्रकार के गूढ़ रहस्य होते हैं जिनका प्रत्येक व्यक्ति को ज्ञान नहीं होता है। तो आइए आप भी जानें बीज मंत्र का रहस्य
1. "क्रीं" इसमें चार वर्ण हैं। (क, र, ई, अनुस्वार) क-काली, र-ब्रह्मा, ईकार-दुःखहरण, म-महाकाली।
अर्थात ब्रह्म-शक्ति-संपन्न महामाया काली मेरे दुखों का हरण करे।
2. "श्रीं" चार स्वर व्यंजन (श, र, ई, अनुस्वार) श-महालक्ष्मी, र-धन-ऐश्वर्य, ई तुष्टि, अनुस्वार- दुःखहरण।
अर्थात धन- ऐश्वर्य संपत्ति, तुष्टि-पुष्टि की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी आप मेरे दुखों का नाश करें।
3. "ह्रौं" (ह्र, औ, अनुस्वार) ह्र-शिव, औ-सदाशिव, अनुस्वार--दुःख हरण।
अर्थात शिव तथा सदाशिव कृपा कर मेरे दुखों का हरण करें।
4. "दूँ" ( द, ऊ, अनुस्वार) द दुर्गा, ऊ--रक्षा, अनुस्वार करना।
अर्थात हें माँ दुर्गे मेरी रक्षा करो, यह दुर्गा बीज है।
5. "ह्रीं" यह शक्ति बीज अथवा माया बीज है।
(ह, र, ई, नाद, बिंदु) ह-शिव, र-प्रकृति, ई-महामाया, नाद-विश्वमाता, बिंदु-दुःख हर्ता।
अर्थात शिवयुक्त विश्वमाता मेरे दुखों का हरण करें।
6. "ऐं" (ऐ, अनुस्वार) ऐ- सरस्वती, अनुस्वार-दुःखहरण।
अर्थात हे सरस्वती मेरे दुखों का अर्थात अविद्या का नाश करें।
7. "क्लीं" इसे काम बीज कहते हैं। (क, ल, ई अनुस्वार) क-कृष्ण अथवा काम, ल- इंद्र, ई-तुष्टि भाव, अनुस्वार-सुख दाता।
अर्थात कामदेव रूप श्री कृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें।
8. "गं" यह गणपति बीज है। (ग, अनुस्वार) ग-गणेश, अनुस्वार-दुःखहर्ता।
अर्थात श्री गणेश मेरे विघ्नों को दुखों को दूर करें।
9. "हूँ" ( ह, ऊ, अनुस्वार) ह-शिव, ऊ- भैरव, अनुस्वार- दुःखहरता। यह कूर्च बीज है।
अर्थात असुर-सहारक शिव मेरे दुखों का नाश करें।
10. "ग्लौं" (ग, ल, औ, बिंदु) ग-गणेश, ल-व्यापक रूप, आय-तेज, बिंदु-दुखहरण।
अर्थात- व्यापक रूप विघ्नहर्ता गणेश अपने तेज से मेरे दुखों का नाश करें।
11. "स्त्रीं" (स, त, र, ई, बिंदु) स-दुर्गा, त- तारण, र- मुक्ति, ई- महामाया, बिंदु- दुःखहरण।
अर्थात- दुर्गा मुक्तिदाता, दुःखहर्ता,, भवसागर-तारिणी महामाया मेरे दुखों का नाश करें।
12. "क्षौं" (क्ष, र, औ, बिंदु) क्ष- नरसिंह, र-ब्रह्मा, औ- ऊर्ध्व, बिंदु- दुःख-हरण।
अर्थात- ऊर्ध्व केशी ब्रह्मस्वरूप नरसिंह भगवान मेरे दुखों को दूर करें।
13. "वं" (व्, बिंदु) व- अमृत, बिंदु दुःखहर्ता।
अर्थात हे अमृतसागर, मेरे दुखों का हरण कर।
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