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षटतिला एकादशी व्रत कथा ।
जय जय श्री राधे कृष्ण।
हेमन्त कुमार शर्मा ।
षटतिला एकादशी व्रत कथा
एक समय दालम्भ ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा , है मुनीश्वर मनुष्य मृत्यु लोक में ब्रम्ह हत्या आदि पाप करते है और दूसरों के धन की चोरी करते है तथा दूसरे की उन्नति देखकर इर्ष्या आदि करते है परंतु फिर भी उनको नर्क प्राप्त नही होता सो क्या कारण है ? वह ना जाने कौनसा अल्पदान या अल्प परिश्रम करते है जिनसे उनके पाप नष्ट हो जाते है । यह सब आप कृपा पूर्वक कहिये । इस पर पुलस्त्य महात्मा बोले ,मुनि आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है ।
इसे संसारी जनों को बहुत लाभ होगा । इसको इंद्र आदि देव भी नहीं जानते परंतु मैं आपको यह गुप्त भेद अवश्य ही बताता हूं ।माघ मास के आने पर मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध रहना चाहिए और इंद्रियों को वश में करके तथा काम क्रोध लोभ मोह ईर्ष्या अभिमान आदि का स्मरण नहीं करना चाहिए । उसको हाथ पैर धो कर पुष्य नक्षत्र में गोबर कपास तेल मिलाकर उपले बनाना चाहिए । उन कारणों से 108 बार हवन करें और यदि उस दिन मूल नक्षत्र हो और द्वादशी हो तो नियम से रहे । स्नान आदि नित्य क्रिया से शुद्ध होकर भगवान का पूजन कीर्तन करना चाहिए । एकादशी के दिन व्रत करें और रात्रि को जागरण तथा हवन करें ।उस के दूसरे दिन धूप, दीप, नैवेद्य से भगवान की पूजा करें और खिचड़ी का भोग लगाना चाहिए । उस दिन कृष्ण भगवान का पूजन करना चाहिए । उनको पेठा, नारियल ,सीताफल या सुपारी सहित अर्ध देना चाहिए और फिर उनकी स्थिति इस प्रकार करनी चाहिए । हे भगवान आप अशरणो को शरण देने वाले हैं ,आप संसार में डूबे हुए का उद्धार करने वाले हैं ,हे पुंडरीकाक्ष,हे कमल नेत्र धारी ,हे विश्व भगवान, हे जगद्गुरु आप लक्ष्मी जी सहित मेरे इस तुच्छ अर्ध्य को स्वीकार कीजिए । इसके पश्चात ब्राह्मण को तिल दान करना चाहिए ।
इस प्रकार मनुष्य जितने तिल दान करता है उतने ही सहस्त्र वर्ष स्वर्ग में निवास करता है ।
1 तिल स्नान 2 तिल की उबटन 3 तिलोदक 4 तिल का हवन 5 तिल का भोजन 6 तिल का दान ,यह षटतिला कहलाती है । इससे अनेक प्रकार के पाप दूर हो जाते है । एक दिन नारद ऋषि बोले ,हे भगवान आपको नमस्कार है । इस षटतिला एकादशी को क्या पुण्य होता है और उनकी क्या कथा है सो कृपा पूर्वक कहिए ।
श्री कृष्ण भगवान बोले हे नारद मैं तुमसे आंखों देखी सत्य घटना कहता हूं ध्यानपूर्वक सुनो ।प्राचीन समय में मृत्यु लोक में एक ब्राह्मण रहती थी । वह सदैव व्रत किया करती थी । एक समय वह 1 माह तक व्रत करती रही । इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया । वह अत्यंत बुद्धिमान थी परंतु फिर भी उसने कभी भी देवताओं तथा व्रतों से अपना मन अस्थिर नहीं किया ।इस प्रकार मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है और इसको वैष्णव लोक भी मिल जाएगा ।परंतु इस ने कभी अन्नदान नहीं किया है । इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है । ऐसा सोचकर में मृत्यु लोक में गया और उस ब्राह्मणी से अन्न मांगा । वह बोली हे महाराज आप यहां किसलिए आए हैं ।मैंने कहा मुझे भिक्षा चाहिए ।इस पर उसने मुझे एक मिट्टी का पिंड दे दिया । मैं उसे लेकर स्वर्ग लौट आया । कुछ समय बीतने पर वह ब्रह्माणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग ।आई मृत पिंड के प्रभाव से उसे उस जगह एक आम वृक्ष सहित ग्रह मिला । परंतु उसने ग्रह की अन्य वस्तुओं से शून्य पाया । वह घबराई हुई मेरे पास आई और कहने लगी, हे भगवान मैंने अनेकों व्रत आदि से आपकी पूजा की है परंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से रहित है सो क्या कारण है ? मैंने कहा तुम अपने ग्रह को जाओ और देव स्त्रियां तुम्हें देखने आएंगी । जब तुम उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो तब ही द्वार खोलना ।
भगवान के ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर को गई और जब देवी स्त्रियां आई और द्वार खुलवाने लगी तब वह ब्रह्माणी बोली कि यदि आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का महत्व कहिए । उनमें से एक देवी स्त्री बोली सुनो मैं कहती हूं ।जब उसने षटतिला एकादशी का महत्व सुना दिया तब उसने द्वार खोला । देव स्त्रियों ने उसको सब स्त्रियों से अलग पाया ।उस ब्रह्माणी ने भी देव स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला का व्रत किया और इसके प्रभाव से उसका ग्रह धन-धान्य से भरपूर हो गया ।अतः मनुष्य को मूर्खता त्याग कर षटतिला एकादशी का व्रत करना चाहिए । इससे मनुष्य को जन्म जन्म में आरोग्यता प्राप्त हो जाती है ।इस व्रत से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
जय जय श्री कृष्ण ।
धन्यवाद।
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