शास्त्रों
के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इसके जप के
लिए तीन समय बताए गए हैं। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप
शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए।
मंत्र
जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।
तीसरा
समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर
बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के
अतिरिक्त
यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए।
मंत्र जप तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
गायत्री
मंत्र का अर्थ : सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को
सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
×
अथवा
उस
प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी
बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।
1. क्रूर से क्रूर ग्रह-शान्ति में, शमी-वृक्ष की लकड़ी के छोटे-छोटे
टुकड़े कर,गूलर-पाकर-पीपर-बरगद की समिधा के साथ ‘गायत्री-मन्त्र से 108 आहुतियाँ देने से शान्ति मिलती है।
2. महान प्राण-संकट में कण्ठ-भर या
जाँघ-भर जल में खड़े होकर नित्य 108
बार गायत्री मन्त्र जपने से प्राण-रक्षा होती है।
3. शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे
गायत्री मन्त्र जपने से सभी प्रकार की ग्रह-बाधा से रक्षा होती है।
4. ‘गुरुचि’ के छोटे-छोटे टुकड़े कर गो-दुग्ध में डुबोकर नित्य १०८ बार गायत्री
मन्त्र पढ़कर हवन करने से ‘मृत्यु-योग’ का निवारण होता है।
5. गायत्री मंत्र के हवं को मृत्युंजय हवन
भी कहते है।
6. आम के पत्तों को गो-दुग्ध में डुबोकर ‘हवन’ करने से सभी प्रकार के ज्वर में लाभ होता है।
7. मीठा वच, गो-दुग्ध में मिलाकर हवन करने से ‘राज-रोग’ नष्ट होता है।
8. शंख-पुष्पी के पुष्पों से हवन करने से
कुष्ठ-रोग का निवारण होता है।
9. गूलर की लकड़ी और फल से नित्य१०८ बार
हवन करने से ‘उन्माद-रोग’ का निवारण होता है।
10. ईख के रस में मधु मिलाकर हवन करने से ‘मधुमेह-रोग’में लाभ होता है।
11. गाय के दही, दूध व घी से हवन करने से ‘बवासीर-रोग’ में लाभ होता है।
12. बेंत की लकड़ी से हवन करने से
विद्युत्पात और राष्ट्र-विप्लव की बाधाएँ दूर होती हैं।
13. कुछ दिन नित्य 108 बार गायत्री मन्त्र जपने के बाद जिस
तरफ मिट्टी का ढेला फेंका जाएगा, उस
तरफ से शत्रु, वायु, अग्नि-दोष दूर हो जाएगा।
14. दुःखी होकर, आर्त्त भाव से मन्त्र जप कर कुशा पर
फूँक मार कर शरीर का स्पर्श करने से सभी प्रकार के रोग, विष, भूत-भय नष्ट हो जाते हैं।
15. 108 बार गायत्री मन्त्र का जप कर जल का
फूँक लगाने से भूतादि-दोष दूर होता है।
16. गायत्री जपते हुए फूल का हवन करने से
सर्व-सुख-प्राप्ति होती है।
17. लाल कमल या चमेली फुल एवं शालि चावल से
हवन करने से लक्ष्मी-प्राप्ति होती है।
18. बिल्व-पुष्प, फल, घी, खीर की हवन-सामग्री बनाकर बेल के
छोटे-छोटे टुकड़े कर, बिल्व की लकड़ी से हवन करने से भी
लक्ष्मी-प्राप्ति होती है।
19. शमी की लकड़ी में गो-घृत, जौ, गो-दुग्ध
मिलाकर 108 बार एक सप्ताह तक हवन करने से
अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।
20. दूध-मधु-गाय के घी से 7 दिन तक 108 बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर
होता है।
21. बरगद की समिधा में बरगद की हरी टहनी पर
गो-घृत, गो-दुग्ध से बनी खीर रखकर 7 दिन तक 108 बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर
होता है।
22. दिन-रात उपवास करते गुए गायत्री मन्त्र
जप से यम पाश से मुक्ति मिलती है।
23. मदार की लकड़ी में मदार का कोमल पत्र व
गो-घृत मिलाकर हवन करने से विजय-प्राप्ति होती है।
24. अपामार्ग, गाय का घी मिलाकर हवन करने से दमा रोग
का निवारण होता है।
धन्यवाद
हेमंत कुमार शर्मा
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