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Thursday, January 25, 2018

महामृत्युंजय मंत्र के ३३ अक्षरों का महत्त्व और प्रभाव

महामृत्युंजय मंत्र के ३३ अक्षरों का महत्त्व और प्रभाव 

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ॐ त्र्यम्बकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं
जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं।
उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं।
इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है
जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं ।
साथ ही वह नीरोग, ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है ।
महामृत्युंञ्जय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।
त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो शिर में स्थित है।
यम - अध्ववरवसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।
ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।
य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।
म - प्रत्युष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
हे - प्रयास वसु मणिबन्ध में स्थित है।
सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्त के मध्य भाग में स्थित है।
ष्टि - अहिर्बुधन्य रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
नम् - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।
उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।
र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
रु - भूगर्भ रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
क - धाता आदित्य का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
मि - अर्यमा आदित्य का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
व - मित्र आदित्य का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
ब - वरुणादित्य का बोधक है जो वाम गुल्फ में स्थित है।
न्धा - अंशु आदित्य का घोतक है । वाम पादंगुलि के मूल में स्थित है।
नात् - भगादित्य का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
मृ - विवस्वान (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो् - द्वन्दादित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
मु - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठ भाग में स्थित है ।
क्षी - पर्जन्य् आदित्य का घोतक है । नाभि स्थल में स्थित है।
य - त्वणष्टान आदित्य का बोधक है । गुह्य भाग में स्थित है।
मां - विष्णु आदित्य का घोतक है यह शक्ति स्वरूप दोनों भुजाओं में स्थित है।
मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।
उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्त देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजित हैं । जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युन्जय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग - अंग ( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्य हैं ) उनकी रक्षा होती है ।
जय जय श्री महाकाल 

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