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Saturday, January 23, 2021

संक्षिप्त पूजा मंत्र

*संक्षिप्त पूजा मंत्र*
*भ-भूमि, ग-गगन, व-वायु, आ-आकाश, न-नीर, इनसे बना है भगवान। महानगरों की भागदौड़ की जिन्दगी में भगवान का पूजन एवं वंदन करने का समय ही नहीं है। भगवान की पूजा की कोई सीमा नहीं है - हरि अनंत हरि कथा अनंता - अपने व्यस्त समय में से भगवद्पूजा के लिए कुछ समय निकाला जाए है तो यह अत्यंत शांति और मोक्ष प्रदायक होगा। भगवान की पूजा के लिए यहां संक्षेप में शास्त्र सम्मत कुछ मंत्र दिए गए हैं जिनमें असीम आध्यात्मिक शक्ति है। इन मंत्रों का उच्चारण मात्र ही असीम मानसिक एवं आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।*
  *निवेदक –*
*पंडित चंद्र प्रकाश तिवारी*

*संक्षिप्त पूजा मंत्र*
*करदर्शन*
शय्या से उठकर हस्तदर्शन करें
कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती, 
करमूले तु गोविंदम्, प्रभाते कर दर्शनम्।।

*भूमि - वन्दना*
 पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें और उन पर पैर रखने की विवशता के लिए उनसे क्षमा माँगते हुए निम्न श्लोक का पाठ करें – 
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।
*मानसिक शुद्धि का मन्त्र*
अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।
अतिनीलघनश्यामं   नलिनायतलोचनम् ।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम् ।।

*स्नान मंत्र*
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वतिः ।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु ।
*आचमन मंत्र*
(इस मंत्र से तीन आचमन करें)
शन्नो देवीरभिष्टय आपोभवन्तु पीतये।
शंय्योरभि स्रवन्तु न:। ॐ ऋग्वेदाय स्वाहा। 
ॐ सामवेदाय स्वाहा। ॐ यजुरवेदाय स्वाहा। 
ॐ अथर्व वेदाय नमो नमः।
*पूजा-सामाग्री रखने की विधि*
बायीं ओरसुवासित जलसे भरा उदकुम्भ (जलपात्र), घंटा, धूपदानी, तेल का दीपक भी बायीं ओर रखें। दायीं ओर– धृत का दीपक, सुवासित जल भरा शंख
सामने – कुमकुम, (केसर) और कपूर के साथ घिसा गाढ़ा चन्दन, पुष्प आदि तथा चन्दन ताम्रपात्र में न रखें।

*दीप प्रज्ज्वलित करना*
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं धनसंपदः ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमस्तु ते।।

दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमस्तु ते।
*मानसपूजा*
मानस पूजा में भक्त अपने इष्ट देव को मुक्तामणियों से मण्डित कर स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान करें ।
 स्वर्गलोक की मन्दाकिनी गंगा के जल से अपने आराध्य को स्नान करावेंं, 
कामधेनु गौ के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण करें।
 वस्त्राभूषण भी दिव्य अलौकिक होते हैं। पृथ्वी रुपी गन्ध का अनुलेपन करते है। अपने आराध्य के लिए कुबेर की पुष्पवाटिका से स्वर्ण कमल पुष्पों का चयन करें।
 भावना से वायुरूपी धूप, अग्नि रूपी दीपक तथा अमृत रूपी नैवेद्य भगवान को अर्पण करने की विधि है। 
इसके साथ ही त्रिलोक की सम्पूर्ण वस्तु सभी उपचार सच्चिदानन्दघन परमात्मा प्रभु के चरणों में भावना से भक्त अर्पण करें।
1- लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि। प्रभो! मैं पृथ्वीरूप गन्ध (चन्दन) आपको अर्पित करता / करती हूँ।
2- हं आकाशात्मकं पुष्पं परकल्पयामि। प्रभो! मैं आकाशरूप पुष्प आपको अर्पित करता / करती हूँ।
3- यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि। प्रभो! मैं वायुदेव के रूप में धूप आपको प्रदान करता / करती हूँ।
4- रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि। प्रभो! मैं अग्नि देव के रूप में दीपक आपको प्रदान करता करती हूँ।
5- वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि। प्रभो! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको निवेदन करता / करती हूँ।
6-  सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि।(प्रभो! मैं सर्वात्मा के रूप में संसार के सभी उपचारों को आपके चरणों में समर्पित करता हूँ।) इन मन्त्रों से भावनापूर्वक मानस पूजा की जा सकती है।

*तिलक लगाने का मंत्र*
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:
स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि: 
स्वस्तिनोबृहस्पतिर्दधातु।

*स्वस्त्यवचन*
ॐ आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतो दब्धासो अपरीतास उदि्भद:। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षुतारो दिवे दिवे।। देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो निवर्तताम। देवानाँ सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयु: प्रतिरन्तु जीवसे।। तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम। अर्यमणं वरुणँ सोममश्विना सरस्वती न: सुभगा मयस्करत।। तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौ:। तद् ग्रावाण: सोमसुतो मयोभुस्तदश्वना शृणुतं धिष्ण्या युवम्।। तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्। पूषा नो यथा वेदसामसद्  वृधे रक्षिता पायरदब्ध: स्वस्तये।। स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।। पृषदश्वा मरुत: पृश्निमातर: शुभं यावानो विदथेषु जग्मय:।। अग्निजिह्वा मान: सूरचक्षसो विश्व  नो देवा अवसागमन्निह।। भद्रं कर्णेभि: शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:। स्थिरैरंगेस्तुष्टुवाँ सस्तनूर्व्यिशेमिहभ देवहितं यदायु:।। शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम। पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो:।। अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्र:। विश्वे देवा अदिति: पञ्च जना अदितिर्जातमऽदितिर्जनित्वम्।। द्यौ: शांतिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वं शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि।। यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं न: कुरु प्रजाभ्यो भयं न: पशुभ्य:।। सुशान्तिर्भवतु।।

*गणेश आवाहन*
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:।।
ध्रूमकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामामि य: पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निगमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।

*गणेश जी का आवाहन और स्थापना*
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे 
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम्। आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ।।
भूर्भुव: स्व: गणपते। इहागच्छ, इह तिष्ठ गणपते नम:, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि।।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नम:। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।
उमामहेश्वराभ्यां नम:। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:। शचीपुरन्दराभ्यां नम:।
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नम:। इष्टदेवताभ्यो नम:। कुलदेवताभ्यो नम:। ग्रामदेवताभ्यो नम:। 
वास्तुदेवताभ्यो नम:। स्थानदेवताभ्यो नम:। एतत्कर्मप्रधानदेवताभ्यो नम:। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।
सर्वेभ्योब्राह्मणेभ्यो नम:।

*पंचदेव*
आदित्यंं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम् ।
पंचदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।।

*त्रिदेवों के साथ नवग्रहस्मरण/*
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानु:शशीभूमिसुतोबुधश्च ।
गुरुश्चशुक्र:शनिराहुकेतव:, सर्वेग्रहा:शान्तिकराभवन्तु ।।
सूर्य:शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मंलं मंगल: सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां
शुक्र: सुखं शं शनि:। राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतु: कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेअनुकूला ग्रहा: ।।
*प्राणायाम के मंत्र*
आँखें बन्दकर नीचे लिखे मंत्रों का प्रत्येक प्रणायाम में  तीन-तीन बार पाठ करें अथवा पहले एक बार से ही प्रारम्भ करें, धीरे-धीरे तीन-तीन बार का अभ्यास बढ़ाएं।
ॐ भू:   ॐ भुव:  ॐ स्व:  ॐ मह:,  ॐ जन:  ॐ तप:  ॐ सत्यम्।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न: प्रचोदयात् । आपो ज्योती रसोअमृतं ब्रह्म भूर्भुव: स्वरोम् ।।
गजाननं भूतगणाधिसेवितं कपित्थ जम्बूफल चारूभक्षणम्।
उमासुतंशोकविनाशकारकं नमामि विध्नेश्वर पादपंकजम्।

*सरस्वती का आवाहन एवं वंदन*
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणा वरदण्ड मंडितकरा, या श्वेतपद्मासना।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिः, देवै: सदावन्दिता।
सा मा: पातु सरस्वती भगवती, नि:शेष जाड्यापहा ।।
शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमामआद्यां जगद् व्यापिनीम्।
वीणा पुस्तकधारिणीं, अभयदांजाड्यान्धकारापहाम ।।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं, पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं, बुद्धिप्रदां शारदाम्।।

*गुरु वंदना एवं आवाहन स्थापन*
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वर: ।
गुरूर्साक्षात परंब्रह्म तस्मे श्री गुरुवे नम: ।
अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन: तस्मै श्री गुरुवे नम: ।।
मातृवत लालयित्री च, पितृवत मार्गदर्शिका ।
नमोस्तु गुरुसत्तायै श्रद्धा प्रज्ञायुता च या ।।
श्री गुरवे नम: ।

*श्री कृष्ण वंदना*
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूर मर्दनम्
देवकी परमानंदम् कृष्णं वंदे जगद्गुरूम्।।

*गायत्री वंदन*
आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनिम् ।
गायत्रिच्छन्दसां मात:, ब्रह्मयोने नमोस्तु ते।।
ॐभूर्भुव: स्व:तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गोदेवस्यधीमहिधियो यो न: प्रचोदयात् ।। श्री गायत्र्यै नम:।
आवाहयामि स्थापयामि ध्यायामि। ततोनमस्कारं करोमि।
स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावनामी द्विजानाम् ।
आयु: प्राणं प्रजां पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चस्वम्। मह्यं दत्वा ब्रजत  ब्रह्मलोकम् ।


*देवी दुर्गा का आवाहन*
सर्वमंगलमांगल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि, नारायणि! नमोस्तु ते ।।
ब्रह्मरूप सदानन्दे परमानन्द स्वरूपिणी
द्रुतसिद्धि पदे देवी नारायणी नमोस्तुते ।।
शरणागत दीनार्तं परित्राण परायणी
सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणी नमोस्तुते ।।
 अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्य श्वक: सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्।।
पत्तने नगरेग्रामे विपिने पर्वते गृहे।
नानाजातिकुलेशानीं दुर्गामावाहयाम्यहम्।।
जयन्ती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। 
जय त्वं देवी चामुण्डे जयभूतार्तिहारिणी 
जयसर्वगतीदेवी कालरात्री नमोस्तु ते।
ॐयज्ञेनवज्ञमयजन्त देवास्तनिधर्माणि प्रथमान्यासम् तेहनाकं 
महिमान: सचन्त यच पूर्व साध्या सन्ति देवा:। 
या श्री स्वयं सुकृतिनां भवनेष्व लक्ष्मी। 
पापात्मनां कृत-धियां हृदयेषु बुद्धि। 
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा 
तां त्वां नता स्मपरिपालय दैवि विश्वम 
दुर्गे स्मृतां हृरसि भीतिमशेष जन्तौ: 
स्वस्थै: स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि। 
दारिद्र दु:खभयहारिणी कात्वदन्या, 
सर्वोपकार करनाय सदाद्र चित्ता 
सेवन्तिका बकुल चम्पक पाठलाज्वै 
पुन्नाग जाति करबीर रसाल पुष्पे। 
विल्व प्रबाल तुलसीदल अंजरीभि: 
त्वां पूचयामि जगदीश्वरी मे प्रसीद।।

*शिव वंदन एवं  आवाहन-  स्थापन*
बन्दे देवउमापतिं सुरगुरु, बन्दे जगत्कारणम्,
वन्दे पन्नगभूषणम् मृगधरं, वन्दे पशुनाम्पतिम्।
वन्दे सूर्यशशांकवह्निनयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवं शंकरम्।

*श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम*
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय। 
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय।। 
मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै ‘म’ काराय नम: शिवाय।। 
शिवाय गौरी वदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। 
श्रीनीलकंठायवृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नम: शिवाय।।
वसिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य,मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय। 
चन्द्रार्कवैश्वानर-लोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नम: शिवाय।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय 
दिव्यायदेवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’ काराय नम: शिवाय।।

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसंनिधौ। 
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

*महामृत्युंजय मंत्र*
ॐ हों जूं सः ॐ भू भुवः स्वः
ॐ त्र्यंबकं यजामहे, सुगन्धिंपुष्टिबर्धनम्, 
उर्बारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।
ॐ स्वः भुवः भूः  ॐ सः जूं हों ॐ।।

*हरि वंदन*
शुक्लाम्बरधरं देवं, शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्, सर्वविध्नोपशान्तये ।।
सर्वदा सर्वकार्येषु, नास्ति तेषाममंगलम् ।
येषां हृद्स्थो भगवान् मंगलायतनो हरि: ।।

*सप्तदेव*
विनायकं गुरुं भानुं, ब्रह्माविष्णुमहेश्वरान् ।
सरस्वतीं प्रणौम्यादौ, शान्तिकार्यार्थसिद्धये ।।

*पुण्डरीकाक्ष*
मंगलं भगवान् विष्णु:, मंगलं गरुडध्वज: ।
मंगलं पुण्डरीकाक्षो, मंगलायतनो हरि: ।।

*ब्रह्मा*
त्व: वै चतुर्मुखो ब्रह्मा, सत्यलोकपितामह: ।
आगच्छ मण्डले चास्मिन्, मम सर्वार्थसिद्धये ।।
*विष्णु*
शान्ताकारं भुजगशयनं, पद्यनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं, मेघवर्णं शुभांगम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं, योगिभिर्ध्यानगम्यं,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं, सर्वलोकैकनाथम् ।।
कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभ्यं
नासाग्रेगजमोक्तिकं करतले वेणु करे कंकणम
सर्वांगे हरिचंदनं सुललितं कंठे च मुक्तावलिं
गोपस्त्री परिवोष्ठिते विजयते गोपाल चूड़ामणिम। 
आदो देवकी देव गर्भ जननंगोपी गृहे वर्धनम, 
मायापूतन जीव ताप हरण गोवर्धन धारणम्, 
कंसच्छेद कौरवादि हननं कुंती सुता पालनम्, 
एतत भागवत पुराण कथित श्री कृष्ण लीलामृतम्।

*तीर्थ*
पुष्करादीनि तीर्थानि, गंगाद्या: सरितस्तथा ।
आगच्छन्तु पवित्राणि, पूजाकाले सदा मम ।।

*नवग्रह*
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानु:शशीभूमिसुतो बुधश्च
गुरुश्चशुक्र:शनिराहुकेतव:,
सर्वेग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु।

*षोडशमातृका पूजन*
गौरी पद्या शची मेधा, सावित्रि विजया जया ।
देवसेना स्वधा स्वाहा, मातरो लोक मातर: ।।
धृति: पुष्टिस्तथा तुष्टि:, आत्मन: कुलदेवता ।
गणेशेनाधिका ह्यता, वृद्धौ पूज्याश्च पोडश ।।

*सप्तमातृका*
कीर्तिर्लक्ष्मीर्धृतिर्मेधा, सिद्धि: प्रज्ञा सरस्वती ।
मांगल्येषु प्रपूज्याश्च, सप्तैता दिव्यमातर:।।

*वास्तुदेव*
नागपृष्ठसमारूढ़ं  शूलहस्तं महाबलम् ।
पातालनायकं देवं, वास्तुदेवं नमाम्यहम् ।।

*क्षेत्रपाल*
क्षेत्रपालात्रमस्यामि, सर्वारिष्टनिवारकान् ।
अस्य यागस्य सिद्धयर्थं, पूजयाराधितान् मया ।

*यज्ञोपवीत धारण मंत्र*
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं
प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयंप्रतिमुञ्च शुभ्रं
यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज: ।।
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य
त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि।
पुराने यज्ञोपवीत का त्याग
एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम।

*श्री सप्तश्लोकी दुर्गा*

*विनियोग - अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्रस्य नारायणऋिष:
अनुष्ठुप् छन्द: श्रीमहाकालीमहालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवता: 
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोग:*
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुति: प्रकाश्यते।।
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सी।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।। 1 ।।
दुर्गे स्मृतां ह्य्रसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृतां मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्रयदु:खभयहारिणि कात्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।।2।।
सर्वमंलमांगल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके!
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि, नारायणि! नमोस्तु ते।। 3
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते।।4।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमो स्तु ते।। 5।।
रोगानशेषानपहंशि तुष्टा,
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।। 6
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।। 7
श्री दुर्गादेव्ये नम:

*देवी को प्रणाम*
नमो देव्यै  महादेव्यै शिवायै सततं नमः
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।
या देवी सर्वभूतेषु, मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
या देवी सर्वभूतेषु, विद्यारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

*हनुमत स्तुति*
श्री गुरु चरन सरोज रज,निजमनमुकुरु सुधारि।
बरनऊ रघुबर विमल जसु,जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरों पवन कुमार
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु  क्लेश विकार।।
पवनतनय संकटहरन मंगलमूरति रूप 
रामलखन सीता सहित हृदय बसहुं सुर भूप।।
लालदेह लाली लसे अरु धरि लाल लंगूर
बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर।।
निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करे सनमान
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करे हनुमान।।

प्रनवउं पवनकुमार खलबल पावक ज्ञानधन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।

अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं,
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनाम ग्रगण्यम।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं,
रघुपति प्रियभक्तं वात्जातं नमामि।।
गोष्पदीकृत वारीशं मशकीकृत राक्षशम्
रामायण महामालारत्नम् वन्देऽनिलात्मजं।।
अंजनानन्दनम् वीरं जानकीशोकनाशम्
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लंकाभयंकरणम्।।
उल्लंघ्य सिंधो सलिलं सलिलं
यह शोकवह्नि जनकात्मजाया:।।
आदायतेनैव ददाह लंका,
नमामितंप्राञ्जलिरांजनेयम् ।।
मनोजवं मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। 
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्रीरामदूतम शरणं प्रपद्ये।। 
आन्जनेय मतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।। 
पारिजाततरुमूल वासिनं भावयामि पवमाननन्दनम्।।
यत्रयत्ररघुनाथ कीर्तनम् तत्र तत्र कृत मस्तकांजलिम्।। 
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनम मारुतिंनमत राक्षशान्तकम्।।

*आरती श्री बजरंगबली की*
आरती कीजै हनुमानलला की,
दुष्टदलन रघुनाथ कला की
जाके बल से गिरिवर कांपै,
रोग-दोष जाके निकट न झांके
अंजनिपुत्र महा बलदाई,
संतन के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरारघुनाथपठाए,
लंका जारि सिया सुधि लाए।

लंक सो कोट समुद्र की खाई,
जात पवन सुत बार न लाई
लंका जारि असुर संहारे,
सियाराम जी के काज संवारे
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे,
लाय संजीवन प्रान उबारे।


पैठि पताल तोरि जमकारे,
अहिरावन की भुजा उखारे।
बांए भुजा असुर दल मारे,
दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर नर मुनिजन आरती उतारें,
जै जै जै हनुमान उचारें.
कंचन थार कपूर लौ छाई
आरति करत अंजना माई।
जो हनुमानजी की आरती उतारें
बसि बैकुंठ परम पद पावें
लंक विध्वंस कीन्ह रघुराई,
तुलसीदास स्वामी आरती गाई।


*शंकर जी की आरती*
जय शिव ओंकारा, हर जय शिव ओंकारा ।  
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।।  
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।  
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।।
दो भुज चार चतुरभुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे । 
अक्षमाला बनमाला रुंडमाला धारी।  
चंदन मृगमद सोहे भोले शुभकारी ।।
श्वेतांबर पीतांबर  बाघाम्बर अंगे ।
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिन संगे ।।
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।जगकरता जगभरता जग पालन कर्ता।ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों ही एका।।त्रिगुण स्वामी की आरती जो कोई नर गावेकहत शिवानन्द स्वामी मन वांछित फल पावे।
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*अम्बे जी की आरती*
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव जी ।। जय
माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ।। जय
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजे ।
रक्त-पुष्प गल माला कण्ठन पर साजै ।। जय
केहरी वाहन राजत, खड्ग खपर धारी ।
सुर-नरमुनिजन सेवत, तिनके दु:ख हारी।। जय
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योति।। जय
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती ।
धुम्रविलोचन नैना, निशिदिन मदमाती ।। जय
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे ।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ।। जय अम्बे.
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम-निगम बखानी, तुम शिवपटरानी।। जय
चौंसठ योगिन गावत, नृत्य करत भैरुं ।
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरू ।। जय अम्बे.
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पति करता ।। जय
भुजा चार अतिशोभित, वर - मुद्रा धारी ।
मनवांच्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ।। जय
कंचन थाल विराजत, अगर कपुर बाती ।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ।। जय
(श्री) अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावे ।। जय
तन  मन   धन, सब कुछ है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ।। जय अम्बे.
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*आरती श्री जगदीश्वर जी की*
जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे।
जो ध्यावे फल पावे दुख बिन से मनका
सुख संपत्ति घर आवे कष्ट मिटे तनका  ।।
मात पिता तुम मेरे शरण गहूँ किसकी
तुम बिन औरन दूजा आश करूं जिसकी ।।
तुम पूरण परमात्मा तुम अंतरयामी
पारब्रह्म परमेश्वर तुम सबके स्वामी ।।
तुम करुणा के सागर तुम पालन कर्ता
मैं मूरख खल कामी कृपा करो भर्ता ।।
तुम हो एक अगोचर सबके प्राणपती
किस विध मिलूं दयामय तुमको मैं कुमती।।
दीनबन्धु दुखहर्ता ठाकुर तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ  द्वार पड़ा तेरे ।।
विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ सन्तन की सेवा ।।
तन मन धन सब कुछ है तेरा
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।।
श्यामसुन्दर की आरती  जो कोई नित गावे
कहत शिवानन्द स्वामी मन वांछित फल पावे।।

*नमन*
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानंदरूपं शिवोऽहं शिवोऽहम् ।।
करारविंदेन पदार विन्दं
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं
बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।।
श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश
गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।

ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे 
विष्णु पत्न्यै च धीमहि 
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।

*अर्पण*
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्चसखात्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्व मम देव देव ।।

*छमा प्रार्थना*
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजनं हरे: ।
सर्वे सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन
यत्पूजितं मयादेवं परिपूर्णं तदस्तु मे।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम
तस्मात कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर।।

*सर्ववन्दन एवं विसर्जनम्*
ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय
श्रीमन्महागणाधिपतये नम:
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:
ॐउमामहेश्वराभ्यां नम:
ॐवाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:
ॐशचीपुरन्दराभ्यां नम:
ॐमातापितृचरणकमलेभ्योनम: ॐकुलदेवताभ्योनम:
ॐ इष्टदेवताभ्यो नम: ॐ  ग्रामदेवताभ्यो नम:
ॐ स्थानदेवताभ्यो नम: ॐ वास्तुदेवताभ्यो नम:
 ॐसर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:ॐसर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:
सर्वेभ्यतीर्थेभ्यो नम:एतत्कर्मप्रधानश्रीगायत्रीदेव्यै नम:
ॐ पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु। शान्ति शान्ति शान्तिः।  


*शान्तिमंत्रम्*
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्तिर्वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म  शान्ति: सर्व शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सामा शान्तिरेधि।।  ॐ शान्ति: शान्ति:  शान्ति: ।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

*।। श्री हरि स्मरणम् ।।*

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