🌺एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे छिपा हुआ है वैज्ञानिक
तथ्य..??🌺
वर्ष
की चौबीसों एकादशियों में चावल न खाने की सलाह दी जातीहै। ऐसा माना गया है कि इस
दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस
योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। एकादशी के विषय में शास्त्र कहते हैं, ‘न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं
व्रतं’यानी विवेक के सामान कोई बंधु नहीं है
और एकादशी से बढ़ कर कोई व्रत नहीं है। पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्मइन्द्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और
दिव्य हो जाता है। एकादशी जगतगुरु विष्णुस्वरुप है, जहां चावल का संबंध जल से है, वहींजल
का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन
का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है। मन और श्वेत रंग
के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो
स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना
प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं। एकादशी के दिन
शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत
पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। महाभारत काल में वेदों का विस्तार
करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसीलिए निर्जला एकादशी (वगैर जल पिए
हुए) करने का सुझाव दिया था। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार वर्ष तक एकादशी
का निर्जल व्रतकरके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ
व्रत है।
चंद्रमा
मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए
व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं। एक और पौराणिक कथा है कि माता शक्ति के
क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी
मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं। ऐसा माना
गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि
मेधा केशरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को
जीवधारी माना गया है। आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूत
नहीं पड़ती। केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं। इनको जीव रूप
मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णुस्वरुप
एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए
इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में
समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी
के दिन चावल खाना वर्जित माना गया। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि
मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है।
वैज्ञानिक
तथ्य के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। क्योंकि चावल की खेती
पूरी पानी मे होती है ! इसलिएइसमे पानी का प्रभाव अधिक होता है ! और जल पर
चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। क्योंकि जल को अग्नि का विपरीत माना गया ! और
चंद्रमाँ को सूर्य का विपरीत इसलिए चंद्रमा का प्रभाव जल पर अधिक होता है ! ह चावल
खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है।
कारण-चंद्र का संबंध जल से है। वह जल को अपनी ओर आकर्षित करता है यदि व्रती चावल
का भोजन करे तो चंद्रकिरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी।
परिणाम जिस एकाग्रता से उसे व्रत के अन्य कर्म-स्तुति पाठ, जप, श्रवण
करने होगे. उन्हें सही प्रकार से नहीं कर पाएगा।मन के चंचल होने से व्रत के नियमों
का पालन करने में बाधा आती है। एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का
पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खानावर्जित कहा
गया है।
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पं.
नलिन शर्मा उज्जैन 9179271166