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Sunday, January 28, 2018

एकादशी के दिन चावल क्यों नहीं खाना चाहिए

🌺एकादशी के दिन चावल न खाने के पीछे छिपा हुआ है वैज्ञानिक तथ्य..??🌺

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वर्ष की चौबीसों एकादशियों में चावल न खाने की सलाह दी जातीहै। ऐसा माना गया है कि इस दिन चावल खाने से प्राणी रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है, किन्तु द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। एकादशी के विषय में शास्त्र कहते हैं, ‘न विवेकसमो बन्धुर्नैकादश्या: परं व्रतंयानी विवेक के सामान कोई बंधु नहीं है और एकादशी से बढ़ कर कोई व्रत नहीं है। पांच ज्ञान इन्द्रियां, पांच कर्मइन्द्रियां और एक मन, इन ग्यारहों को जो साध ले, वह प्राणी एकादशी के समान पवित्र और दिव्य हो जाता है। एकादशी जगतगुरु विष्णुस्वरुप है, जहां चावल का संबंध जल से है, वहींजल का संबंध चंद्रमा से है। पांचों ज्ञान इन्द्रियां और पांचों कर्म इन्द्रियों पर मन का ही अधिकार है। मन ही जीवात्मा का चित्त स्थिर-अस्थिर करता है। मन और श्वेत रंग के स्वामी भी चंद्रमा ही हैं, जो स्वयं जल, रस और भावना के कारक हैं, इसीलिए जलतत्त्व राशि के जातक भावना प्रधान होते हैं, जो अक्सर धोखा खाते हैं। एकादशी के दिन शरीर में जल की मात्र जितनी कम रहेगी, व्रत पूर्ण करने में उतनी ही अधिक सात्विकता रहेगी। महाभारत काल में वेदों का विस्तार करने वाले भगवान व्यास ने पांडव पुत्र भीम को इसीलिए निर्जला एकादशी (वगैर जल पिए हुए) करने का सुझाव दिया था। आदिकाल में देवर्षि नारद ने एक हजार वर्ष तक एकादशी का निर्जल व्रतकरके नारायण भक्ति प्राप्त की थी। वैष्णव के लिए यह सर्वश्रेष्ठ व्रत है।

चंद्रमा मन को अधिक चलायमान न कर पाएं, इसीलिए व्रती इस दिन चावल खाने से परहेज करते हैं। एक और पौराणिक कथा है कि माता शक्ति के क्रोध से भागते-भागते भयभीत महर्षि मेधा ने अपने योग बल से शरीर छोड़ दिया और उनकी मेधा पृथ्वी में समा गई। वही मेधा जौ और चावल के रूप में उत्पन्न हुईं। ऐसा माना गया है कि यह घटना एकादशी को घटी थी। यह जौ और चावल महर्षि की ही मेधा शक्ति है, जो जीव हैं। इस दिन चावल खाना महर्षि मेधा केशरीर के छोटे-छोटे मांस के टुकड़े खाने जैसा माना गया है, इसीलिए इस दिन से जौ और चावल को जीवधारी माना गया है। आज भी जौ और चावल को उत्पन्न होने के लिए मिट्टी की भी जरूत नहीं पड़ती। केवल जल का छींटा मारने से ही ये अंकुरित हो जाते हैं। इनको जीव रूप मानते हुए एकादशी को भोजन के रूप में ग्रहण करने से परहेज किया गया है, ताकि सात्विक रूप से विष्णुस्वरुप एकादशी का व्रत संपन्न हो सके।चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है। जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है।

वैज्ञानिक तथ्य के अनुसार चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। क्योंकि चावल की खेती पूरी पानी मे होती है ! इसलिएइसमे पानी का प्रभाव अधिक होता है ! और जल पर चन्द्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। क्योंकि जल को अग्नि का विपरीत माना गया ! और चंद्रमाँ को सूर्य का विपरीत इसलिए चंद्रमा का प्रभाव जल पर अधिक होता है ! ह चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है इससे मन विचलित और चंचल होता है। कारण-चंद्र का संबंध जल से है। वह जल को अपनी ओर आकर्षित करता है यदि व्रती चावल का भोजन करे तो चंद्रकिरणें उसके शरीर के संपूर्ण जलीय अंश को तरंगित करेंगी। परिणाम जिस एकाग्रता से उसे व्रत के अन्य कर्म-स्तुति पाठ, जप, श्रवण करने होगे. उन्हें सही प्रकार से नहीं कर पाएगा।मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है। एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन अति आवश्यक होता है इसलिए एकादशी के दिन चावल से बनी चीजें खानावर्जित कहा गया है।
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पं. नलिन शर्मा उज्जैन 9179271166

Thursday, January 25, 2018

महामृत्युंजय मंत्र के ३३ अक्षरों का महत्त्व और प्रभाव

महामृत्युंजय मंत्र के ३३ अक्षरों का महत्त्व और प्रभाव 

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ॐ त्र्यम्बकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं
जो महर्षि वशिष्ठ के अनुसार 33 देवताआं के घोतक हैं।
उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु 11 रुद्र और 12 आदित्यठ 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं।
इन तैंतीस देवताओं की सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है
जिससे महा महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं ।
साथ ही वह नीरोग, ऐश्व‍र्य युक्ता धनवान भी होता है ।
महामृत्युंञ्जय का पाठ करने वाला प्राणी हर दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है । भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस निरन्तंर बरसती रहती है।
त्रि - ध्रववसु प्राण का घोतक है जो शिर में स्थित है।
यम - अध्ववरवसु प्राण का घोतक है, जो मुख में स्थित है।
ब - सोम वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण कर्ण में स्थित है।
कम - जल वसु देवता का घोतक है, जो वाम कर्ण में स्थित है।
य - वायु वसु का घोतक है, जो दक्षिण बाहु में स्थित है।
जा- अग्नि वसु का घोतक है, जो बाम बाहु में स्थित है।
म - प्रत्युष वसु शक्ति का घोतक है, जो दक्षिण बाहु के मध्य में स्थित है।
हे - प्रयास वसु मणिबन्ध में स्थित है।
सु -वीरभद्र रुद्र प्राण का बोधक है। दक्षिण हस्त के अंगुलि के मुल में स्थित है।
ग -शुम्भ् रुद्र का घोतक है दक्षिणहस्त् अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
न्धिम् -गिरीश रुद्र शक्ति का मुल घोतक है। बायें हाथ के मूल में स्थित है।
पु- अजैक पात रुद्र शक्ति का घोतक है। बाम हस्त के मध्य भाग में स्थित है।
ष्टि - अहिर्बुधन्य रुद्र का घोतक है, बाम हस्त के मणिबन्धा में स्थित है।
व - पिनाकी रुद्र प्राण का घोतक है। बायें हाथ की अंगुलि के मुल में स्थित है।
र्ध - भवानीश्वपर रुद्र का घोतक है, बाम हस्त अंगुलि के अग्र भाग में स्थित है।
नम् - कपाली रुद्र का घोतक है । उरु मूल में स्थित है।
उ- दिक्पति रुद्र का घोतक है । यक्ष जानु में स्थित है।
र्वा - स्था णु रुद्र का घोतक है जो यक्ष गुल्फ् में स्थित है।
रु - भूगर्भ रुद्र का घोतक है, जो चक्ष पादांगुलि मूल में स्थित है।
क - धाता आदित्य का घोतक है जो यक्ष पादांगुलियों के अग्र भाग में स्थित है।
मि - अर्यमा आदित्य का घोतक है जो वाम उरु मूल में स्थित है।
व - मित्र आदित्य का घोतक है जो वाम जानु में स्थित है।
ब - वरुणादित्य का बोधक है जो वाम गुल्फ में स्थित है।
न्धा - अंशु आदित्य का घोतक है । वाम पादंगुलि के मूल में स्थित है।
नात् - भगादित्य का बोधक है । वाम पैर की अंगुलियों के अग्रभाग में स्थित है।
मृ - विवस्वान (सुर्य) का घोतक है जो दक्ष पार्श्वि में स्थित है।
र्त्यो् - द्वन्दादित्य् का बोधक है । वाम पार्श्वि भाग में स्थित है।
मु - पूषादित्यं का बोधक है । पृष्ठ भाग में स्थित है ।
क्षी - पर्जन्य् आदित्य का घोतक है । नाभि स्थल में स्थित है।
य - त्वणष्टान आदित्य का बोधक है । गुह्य भाग में स्थित है।
मां - विष्णु आदित्य का घोतक है यह शक्ति स्वरूप दोनों भुजाओं में स्थित है।
मृ - प्रजापति का घोतक है जो कंठ भाग में स्थित है।
तात् - अमित वषट्कार का घोतक है जो हदय प्रदेश में स्थित है।
उपर वर्णन किये स्थानों पर उपरोक्त देवता, वसु आदित्य आदि अपनी सम्पुर्ण शक्तियों सहित विराजित हैं । जो प्राणी श्रध्दा सहित महामृत्युन्जय मंत्र का पाठ करता है उसके शरीर के अंग - अंग ( जहां के जो देवता या वसु अथवा आदित्य हैं ) उनकी रक्षा होती है ।
जय जय श्री महाकाल 

*लिङ्गाष्टकम्*

                                         *लिङ्गाष्टकम्*


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*ब्रह्ममुरारिसुरार्चितलिंगम् , निर्मलभासितशोभितलिंगम्।*
*जन्मजदु:खविनाशकलिंगम्, तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।1।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग ब्रह्मा, विष्णु व अन्य देवताओं से भी पूजित है, जो निर्मल कान्ति से सुशोभित है, तथा जन्म-जरा आदि दु:खों को दूर करने वाला है।*

*देवमुनिप्रवरार्चितलिंगम् , कामदहं करुणाकरलिंगम्।*
*रावणदर्पविनाशनलिंगम्, तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।2।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवताओं व श्रेष्ठ मुनियों द्वारा पूजित है, जिसने क्रोधानल से कामदेव को भस्म कर दिया, जो दया का सागर है और जिसने लंकापति रावण के भी दर्प का नाश किया है।*

*सर्वसुगन्धिसुलेपितलिंगम् , बुद्धिविवर्द्धनकारणलिंगम् ।*
*सिद्धसुरासुरवन्दितलिंगम्, तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।3।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो सभी प्रकार के सुगन्धित द्रव्यों से लिप्त है, अथवा सुगन्धयुक्त नाना द्रव्यों से पूजित है, और जिसका पूजन व भजन बुद्धि के विकास में एकमात्र कारण है तथा जिसकी पूजा सिद्ध, देव व दानव हमेशा करते हैं।*

*कनकमहामणिभूषितलिंगम्, फणिपतिवेष्टितशोभितलिंगम्।*
*दक्षसुयज्ञविनाशनलिंगम्, तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।4।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग सुवर्ण व महामणियों से भूषित है, जो नागराज वासुकि से वेष्टित है, और जिसने दक्षप्रजापति के यज्ञ का नाश किया है।*

*कुंकुमचन्दनलेपितलिंगम् , पंकजहारसुशोभितलिंगम्।*
*संचितपापविनाशनलिंगम्, तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।5।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग केशरयुक्त चन्दन से लिप्त है और कमल के पुष्पों के हार से सुशोभित है, जिस लिंग के अर्चन व भजन से पूर्वजन्म या जन्म-जन्मान्तरों के सञ्चित अर्थात् एकत्रित हुए पापकर्म नष्ट हो जाते हैं, अथवा समुदाय रूप में उपस्थित हुए जो आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक त्रिविध ताप हैं, वे नष्ट हो जाते हैं।*

*देवगणार्चितसेवितलिंगम्, भावैर्भक्तिभिरेव च लिंगम्।*
*दिनकरकोटिप्रभाकरलिंगम्, तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।6।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग देवगणों से पूजित तथा भावना और भक्ति से सेवित है, और जिस लिंग की प्रभाकान्ति या चमक करोड़ों सूर्यों की तरह है।*

*अष्टदलोपरिवेष्टितलिंगम् , सर्वसमुद्भवकारणलिंगम्।*
*अष्टदरिद्रविनाशितलिंगम्, तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।7।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग अष्टदल कमल के ऊपर विराजमान है, और जो सम्पूर्ण जीवजगत् के उत्पत्ति का कारण है, तथा जिस लिंग की अर्चना से अणिमा महिमा आदि के अभाव में होने वाला आठ प्रकार का जो दारिद्र्य है, वह भी नष्ट हो जाता है।*

*सुरगुरुसुरवरपूजितलिंगम् , सुरवनपुष्पसदार्चितलिंगम्।*
*परात्परं परमात्मकलिंगम् , तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।।8।।*

*मैं भगवान् सदाशिव के उस लिंग को प्रणाम करता हूं, जो लिंग बृहस्पति तथा देवश्रेष्ठों से पूजित है, और जिस लिंग की पूजा देववन अर्थात् नन्दनवन के पुष्पों से की जाती है, जो भगवान् सदाशिव का लिंग स्थूलदृश्यमान इस जगत् से परे जो अव्यक्तप्रकृति है, उससे भी परे सूक्ष्म अथवा व्यापक है, अत: वही सबका वन्दनीय तथा अतिशय प्रिय आत्मा है।*

*लिंगाष्टकमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ।*
*शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥ 9॥*

*मैं बस इतना ही जानता हूं जो भी भगवान शिव के निकट इस लिंगाष्टक स्तोत्र का पाठ करता है वह निश्चित ही शिवलोक में निवास करता है और शिव के साथ अत्यंत आनंद को प्राप्त करता है।*


*🙏🏻🌹 जय श्री महाकाल 🌹🙏🏻*

Saturday, January 20, 2018

हर समस्या का बस एक ही उपाय गायत्री मंत्र जाप

    गायत्री मंत्र:- ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। 


शास्त्रों के अनुसार गायत्री मंत्र को वेदों का सर्वश्रेष्ठ मंत्र बताया गया है। इसके जप के लिए तीन समय बताए गए हैं। गायत्री मंत्र का जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मंत्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। 



मंत्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर का। दोपहर में भी इस मंत्र का जप किया जाता है।

तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मंत्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के
अतिरिक्त यदि गायत्री मंत्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मंत्र जप तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
गायत्री मंत्र का अर्थ : सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
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अथवा

उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।
1. क्रूर से क्रूर ग्रह-शान्ति में, शमी-वृक्ष की लकड़ी के छोटे-छोटे टुकड़े कर,गूलर-पाकर-पीपर-बरगद की समिधा के साथ गायत्री-मन्त्र से 108 आहुतियाँ देने से शान्ति मिलती है।

2. महान प्राण-संकट में कण्ठ-भर या जाँघ-भर जल में खड़े होकर नित्य 108 बार गायत्री मन्त्र जपने से प्राण-रक्षा होती है।

3. शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे गायत्री मन्त्र जपने से सभी प्रकार की ग्रह-बाधा से रक्षा होती है।

4. ‘गुरुचिके छोटे-छोटे टुकड़े कर गो-दुग्ध में डुबोकर नित्य १०८ बार गायत्री मन्त्र पढ़कर हवन करने से मृत्यु-योगका निवारण होता है।

5. गायत्री मंत्र के हवं को मृत्युंजय हवन भी कहते है।

6. आम के पत्तों को गो-दुग्ध में डुबोकर हवनकरने से सभी प्रकार के ज्वर में लाभ होता है।

7. मीठा वच, गो-दुग्ध में मिलाकर हवन करने से राज-रोगनष्ट होता है।

8. शंख-पुष्पी के पुष्पों से हवन करने से कुष्ठ-रोग का निवारण होता है।

9. गूलर की लकड़ी और फल से नित्य१०८ बार हवन करने से उन्माद-रोगका निवारण होता है।

10. ईख के रस में मधु मिलाकर हवन करने से मधुमेह-रोगमें लाभ होता है।

11. गाय के दही, दूध व घी से हवन करने से बवासीर-रोगमें लाभ होता है।

12. बेंत की लकड़ी से हवन करने से विद्युत्पात और राष्ट्र-विप्लव की बाधाएँ दूर होती हैं।

13. कुछ दिन नित्य 108 बार गायत्री मन्त्र जपने के बाद जिस तरफ मिट्टी का ढेला फेंका जाएगा, उस तरफ से शत्रु, वायु, अग्नि-दोष दूर हो जाएगा।

14. दुःखी होकर, आर्त्त भाव से मन्त्र जप कर कुशा पर फूँक मार कर शरीर का स्पर्श करने से सभी प्रकार के रोग, विष, भूत-भय नष्ट हो जाते हैं।

15. 108 बार गायत्री मन्त्र का जप कर जल का फूँक लगाने से भूतादि-दोष दूर होता है।

16. गायत्री जपते हुए फूल का हवन करने से सर्व-सुख-प्राप्ति होती है।

17. लाल कमल या चमेली फुल एवं शालि चावल से हवन करने से लक्ष्मी-प्राप्ति होती है।

18. बिल्व-पुष्प, फल, घी, खीर की हवन-सामग्री बनाकर बेल के छोटे-छोटे टुकड़े कर, बिल्व की लकड़ी से हवन करने से भी लक्ष्मी-प्राप्ति होती है।

19. शमी की लकड़ी में गो-घृत, जौ, गो-दुग्ध मिलाकर 108 बार एक सप्ताह तक हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।

20. दूध-मधु-गाय के घी से 7 दिन तक 108 बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।

21. बरगद की समिधा में बरगद की हरी टहनी पर गो-घृत, गो-दुग्ध से बनी खीर रखकर 7 दिन तक 108 बार हवन करने से अकाल-मृत्यु योग दूर होता है।

22. दिन-रात उपवास करते गुए गायत्री मन्त्र जप से यम पाश से मुक्ति मिलती है।

23. मदार की लकड़ी में मदार का कोमल पत्र व गो-घृत मिलाकर हवन करने से विजय-प्राप्ति होती है।

24. अपामार्ग, गाय का घी मिलाकर हवन करने से दमा रोग का निवारण होता है।
धन्यवाद 
हेमंत कुमार शर्मा 

Tuesday, January 16, 2018

‬: हनुमान चालीसा के उपाय‬

                                            हनुमान चालीसा के उपाय
श्री हनुमानजी को मनाने और उनकी कृपा प्राप्त करने का सबसे सरल और चमत्कारी उपाय है श्रीहनुमान चालीसा का पाठ। हनुमान चालीसा बहुत ही सरल और मन को शांति प्रदान करने वाली है।



जो लोग धन अभाव से ग्रस्त हैं या घर-परिवार में परेशानियां चल रही हैं या ऑफिस में बॉस और सहयोगियों से रिश्ते बिगड़े हुए हैं या समाज में सम्मान नहीं मिल रहा है या स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हैं तो इन्हें दूर करने के लिए हनुमान चालीसा का ये उपाय श्रेष्ठ मार्ग है।

जो लोग मस्तिष्क से संबंधित कार्य में लगे रहते हैं और मानसिक तनाव का सामना करते हैं या जिनका दिमाग अन्य लोगों की अपेक्षा तेज नहीं चलता है तो सोने से पहले हनुमान चालीसा का जप करें। आप पूरी हनुमान चालीसा का जप नहीं कर सकते हैं
तो इन पंक्तियों का जप करें...

बुद्धिहीन तनु जानिके सुमिरो पवन कुमार। बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरेहू कलेश विकार।

पंक्ति में हनुमानजी से यही प्रार्थना की गई है कि हे प्रभु मैं खुद को बुद्धि हीन मानकर आपका ध्यान करता हूं। कृपा करें और मुझे शक्ति, बुद्धि, विद्या दीजिए। मेरे सभी कष्ट-क्लेश दूर कीजिए।


श्री हनुमान चालीसा सुन भी सकते हैं या जप कर सकते हैं। जब आपका मन हो आप आसानी से मोबाइल की मदद से हनुमान चालीसा सुन सकते हैं।
जिन लोगों को बुरे सपने आते हैं, नींद में डर जाते हैं उन्हें सोने से पहले इन पंक्तियों का जप करना चाहिए...

भूत-पिशाच निकट नहीं आवे। महाबीर जब नाम सुनावे।

पंक्ति के माध्यम से भक्त द्वारा श्री हनुमानजी से भूत-पिशाच आदि के डर से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की जाती है। जो भी व्यक्ति इस पंक्ति का जप करता है उसे न तो बुरे सपने आते हैं और न ही कोई भय सताता है। यदि कोई व्यक्ति भयंकर बीमारी से ग्रस्त है तो उसे सोने से पहले इस पंक्ति का जप करना चाहिए..

नासे रोग हरे सब पीरा। जो सुमिरे हनुमंत बलबीरा।।

पंक्ति से हम बजरंग बली से सभी प्रकार रोगों और पीड़ाओं से मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं। जो भी बीमार व्यक्ति इन पंक्तियों का जप करके सोता है उसकी बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है।
यदि कोई व्यक्ति सर्वगुण संपन्न बनना चाहता है और घर-परिवार, समाज में वर्चस्व बनाना चाहता है, सम्मान पाना चाहता है उसे सोने से पहले इस पंक्ति का जप करना चाहिए...

अष्ट-सिद्धि नवनिधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।


पंक्ति के अनुसार श्री हनुमानजी अष्ट सिद्धियां और नौ निधियों के दाता है। जो कि उन्हें माता सीता ने प्रदान की है। जिन लोगों के पास ये सिद्धियां और निधियां आ जाती हैं वे समाज में और घर-परिवार में मान-सम्मान, प्रसिद्धि पाते है..
जय जय सियाराम