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Saturday, January 23, 2021

संक्षिप्त पूजा मंत्र

*संक्षिप्त पूजा मंत्र*
*भ-भूमि, ग-गगन, व-वायु, आ-आकाश, न-नीर, इनसे बना है भगवान। महानगरों की भागदौड़ की जिन्दगी में भगवान का पूजन एवं वंदन करने का समय ही नहीं है। भगवान की पूजा की कोई सीमा नहीं है - हरि अनंत हरि कथा अनंता - अपने व्यस्त समय में से भगवद्पूजा के लिए कुछ समय निकाला जाए है तो यह अत्यंत शांति और मोक्ष प्रदायक होगा। भगवान की पूजा के लिए यहां संक्षेप में शास्त्र सम्मत कुछ मंत्र दिए गए हैं जिनमें असीम आध्यात्मिक शक्ति है। इन मंत्रों का उच्चारण मात्र ही असीम मानसिक एवं आध्यात्मिक शांति प्रदान करते हैं।*
  *निवेदक –*
*पंडित चंद्र प्रकाश तिवारी*

*संक्षिप्त पूजा मंत्र*
*करदर्शन*
शय्या से उठकर हस्तदर्शन करें
कराग्रे वसते लक्ष्मी, करमध्ये सरस्वती, 
करमूले तु गोविंदम्, प्रभाते कर दर्शनम्।।

*भूमि - वन्दना*
 पृथ्वी पर पैर रखने से पूर्व पृथ्वी माता का अभिवादन करें और उन पर पैर रखने की विवशता के लिए उनसे क्षमा माँगते हुए निम्न श्लोक का पाठ करें – 
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डिते ।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।
*मानसिक शुद्धि का मन्त्र*
अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोअपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।
अतिनीलघनश्यामं   नलिनायतलोचनम् ।
स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम् ।।

*स्नान मंत्र*
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वतिः ।
नर्मदे सिंधु कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु ।
*आचमन मंत्र*
(इस मंत्र से तीन आचमन करें)
शन्नो देवीरभिष्टय आपोभवन्तु पीतये।
शंय्योरभि स्रवन्तु न:। ॐ ऋग्वेदाय स्वाहा। 
ॐ सामवेदाय स्वाहा। ॐ यजुरवेदाय स्वाहा। 
ॐ अथर्व वेदाय नमो नमः।
*पूजा-सामाग्री रखने की विधि*
बायीं ओरसुवासित जलसे भरा उदकुम्भ (जलपात्र), घंटा, धूपदानी, तेल का दीपक भी बायीं ओर रखें। दायीं ओर– धृत का दीपक, सुवासित जल भरा शंख
सामने – कुमकुम, (केसर) और कपूर के साथ घिसा गाढ़ा चन्दन, पुष्प आदि तथा चन्दन ताम्रपात्र में न रखें।

*दीप प्रज्ज्वलित करना*
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं धनसंपदः ।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमस्तु ते।।

दीपज्योतिः परब्रह्म दीपज्योतिर्जनार्दनः ।
दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमस्तु ते।
*मानसपूजा*
मानस पूजा में भक्त अपने इष्ट देव को मुक्तामणियों से मण्डित कर स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान करें ।
 स्वर्गलोक की मन्दाकिनी गंगा के जल से अपने आराध्य को स्नान करावेंं, 
कामधेनु गौ के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण करें।
 वस्त्राभूषण भी दिव्य अलौकिक होते हैं। पृथ्वी रुपी गन्ध का अनुलेपन करते है। अपने आराध्य के लिए कुबेर की पुष्पवाटिका से स्वर्ण कमल पुष्पों का चयन करें।
 भावना से वायुरूपी धूप, अग्नि रूपी दीपक तथा अमृत रूपी नैवेद्य भगवान को अर्पण करने की विधि है। 
इसके साथ ही त्रिलोक की सम्पूर्ण वस्तु सभी उपचार सच्चिदानन्दघन परमात्मा प्रभु के चरणों में भावना से भक्त अर्पण करें।
1- लं पृथिव्यात्मकं गन्धं परिकल्पयामि। प्रभो! मैं पृथ्वीरूप गन्ध (चन्दन) आपको अर्पित करता / करती हूँ।
2- हं आकाशात्मकं पुष्पं परकल्पयामि। प्रभो! मैं आकाशरूप पुष्प आपको अर्पित करता / करती हूँ।
3- यं वाय्वात्मकं धूपं परिकल्पयामि। प्रभो! मैं वायुदेव के रूप में धूप आपको प्रदान करता / करती हूँ।
4- रं वह्न्यात्मकं दीपं दर्शयामि। प्रभो! मैं अग्नि देव के रूप में दीपक आपको प्रदान करता करती हूँ।
5- वं अमृतात्मकं नैवेद्यं निवेदयामि। प्रभो! मैं अमृत के समान नैवेद्य आपको निवेदन करता / करती हूँ।
6-  सौं सर्वात्मकं सर्वोपचारं समर्पयामि।(प्रभो! मैं सर्वात्मा के रूप में संसार के सभी उपचारों को आपके चरणों में समर्पित करता हूँ।) इन मन्त्रों से भावनापूर्वक मानस पूजा की जा सकती है।

*तिलक लगाने का मंत्र*
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:
स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि: 
स्वस्तिनोबृहस्पतिर्दधातु।

*स्वस्त्यवचन*
ॐ आ नो भद्रा क्रतवो यन्तु विश्वतो दब्धासो अपरीतास उदि्भद:। देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षुतारो दिवे दिवे।। देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो निवर्तताम। देवानाँ सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयु: प्रतिरन्तु जीवसे।। तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम। अर्यमणं वरुणँ सोममश्विना सरस्वती न: सुभगा मयस्करत।। तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पिता द्यौ:। तद् ग्रावाण: सोमसुतो मयोभुस्तदश्वना शृणुतं धिष्ण्या युवम्।। तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियञ्जिन्वमवसे हूमहे वयम्। पूषा नो यथा वेदसामसद्  वृधे रक्षिता पायरदब्ध: स्वस्तये।। स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु।। पृषदश्वा मरुत: पृश्निमातर: शुभं यावानो विदथेषु जग्मय:।। अग्निजिह्वा मान: सूरचक्षसो विश्व  नो देवा अवसागमन्निह।। भद्रं कर्णेभि: शृणुयाम देवा भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्रा:। स्थिरैरंगेस्तुष्टुवाँ सस्तनूर्व्यिशेमिहभ देवहितं यदायु:।। शतमिन्नु शरदो अन्ति देवा यत्रा नश्चक्रा जरसं तनूनाम। पुत्रासो यत्र पितरो भवन्ति मा नो मध्या रीरिषतायुर्गन्तो:।। अदितिर्द्यौरदितिरन्तरिक्षमदितिर्माता स पिता स पुत्र:। विश्वे देवा अदिति: पञ्च जना अदितिर्जातमऽदितिर्जनित्वम्।। द्यौ: शांतिरन्तरिक्षँ शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:। वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति: सर्वं शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि।। यतो यत: समीहसे ततो नो अभयं कुरु। शं न: कुरु प्रजाभ्यो भयं न: पशुभ्य:।। सुशान्तिर्भवतु।।

*गणेश आवाहन*
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णक:।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायक:।।
ध्रूमकेतुर्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजानन:।
द्वादशैतानि नामामि य: पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निगमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते।।

*गणेश जी का आवाहन और स्थापना*
ॐ गणानां त्वा गणपतिं हवामहे प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे 
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे वसो मम। आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि गर्भधम्।।
लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम्। आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम् ।।
भूर्भुव: स्व: गणपते। इहागच्छ, इह तिष्ठ गणपते नम:, गणपतिमावाहयामि, स्थापयामि।।
ॐ श्रीमन्महागणाधिपतये नम:। लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।
उमामहेश्वराभ्यां नम:। वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:। शचीपुरन्दराभ्यां नम:।
मातृपितृचरणकमलेभ्यो नम:। इष्टदेवताभ्यो नम:। कुलदेवताभ्यो नम:। ग्रामदेवताभ्यो नम:। 
वास्तुदेवताभ्यो नम:। स्थानदेवताभ्यो नम:। एतत्कर्मप्रधानदेवताभ्यो नम:। सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।
सर्वेभ्योब्राह्मणेभ्यो नम:।

*पंचदेव*
आदित्यंं गणनाथं च देवीं रुद्रं च केशवम् ।
पंचदैवत्यमित्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत् ।।

*त्रिदेवों के साथ नवग्रहस्मरण/*
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानु:शशीभूमिसुतोबुधश्च ।
गुरुश्चशुक्र:शनिराहुकेतव:, सर्वेग्रहा:शान्तिकराभवन्तु ।।
सूर्य:शौर्यमथेन्दुरुच्चपदवीं सन्मंलं मंगल: सद्बुद्धिं च बुधो गुरुश्च गुरुतां
शुक्र: सुखं शं शनि:। राहुर्बाहुबलं करोतु सततं केतु: कुलस्योन्नतिं
नित्यं प्रीतिकरा भवन्तु मम ते सर्वेअनुकूला ग्रहा: ।।
*प्राणायाम के मंत्र*
आँखें बन्दकर नीचे लिखे मंत्रों का प्रत्येक प्रणायाम में  तीन-तीन बार पाठ करें अथवा पहले एक बार से ही प्रारम्भ करें, धीरे-धीरे तीन-तीन बार का अभ्यास बढ़ाएं।
ॐ भू:   ॐ भुव:  ॐ स्व:  ॐ मह:,  ॐ जन:  ॐ तप:  ॐ सत्यम्।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि
धियो यो न: प्रचोदयात् । आपो ज्योती रसोअमृतं ब्रह्म भूर्भुव: स्वरोम् ।।
गजाननं भूतगणाधिसेवितं कपित्थ जम्बूफल चारूभक्षणम्।
उमासुतंशोकविनाशकारकं नमामि विध्नेश्वर पादपंकजम्।

*सरस्वती का आवाहन एवं वंदन*
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रावृता ।
या वीणा वरदण्ड मंडितकरा, या श्वेतपद्मासना।।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिः, देवै: सदावन्दिता।
सा मा: पातु सरस्वती भगवती, नि:शेष जाड्यापहा ।।
शुक्लांब्रह्मविचारसारपरमामआद्यां जगद् व्यापिनीम्।
वीणा पुस्तकधारिणीं, अभयदांजाड्यान्धकारापहाम ।।
हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं, पद्मासने संस्थिताम्।
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं, बुद्धिप्रदां शारदाम्।।

*गुरु वंदना एवं आवाहन स्थापन*
गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गुरूर्देवो महेश्वर: ।
गुरूर्साक्षात परंब्रह्म तस्मे श्री गुरुवे नम: ।
अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।
तत्पदं दर्शितं येन: तस्मै श्री गुरुवे नम: ।।
मातृवत लालयित्री च, पितृवत मार्गदर्शिका ।
नमोस्तु गुरुसत्तायै श्रद्धा प्रज्ञायुता च या ।।
श्री गुरवे नम: ।

*श्री कृष्ण वंदना*
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूर मर्दनम्
देवकी परमानंदम् कृष्णं वंदे जगद्गुरूम्।।

*गायत्री वंदन*
आयातु वरदे देवि! त्र्यक्षरे ब्रह्मवादिनिम् ।
गायत्रिच्छन्दसां मात:, ब्रह्मयोने नमोस्तु ते।।
ॐभूर्भुव: स्व:तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गोदेवस्यधीमहिधियो यो न: प्रचोदयात् ।। श्री गायत्र्यै नम:।
आवाहयामि स्थापयामि ध्यायामि। ततोनमस्कारं करोमि।
स्तुता मया वरदा वेदमाता, प्रचोदयन्तां पावनामी द्विजानाम् ।
आयु: प्राणं प्रजां पशुं कीर्ति द्रविणं ब्रह्मवर्चस्वम्। मह्यं दत्वा ब्रजत  ब्रह्मलोकम् ।


*देवी दुर्गा का आवाहन*
सर्वमंगलमांगल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि, नारायणि! नमोस्तु ते ।।
ब्रह्मरूप सदानन्दे परमानन्द स्वरूपिणी
द्रुतसिद्धि पदे देवी नारायणी नमोस्तुते ।।
शरणागत दीनार्तं परित्राण परायणी
सर्वस्यार्ति हरे देवी नारायणी नमोस्तुते ।।
 अम्बे अम्बिके अम्बालिके न मा नयति कश्चन।
ससस्त्य श्वक: सुभद्रिकां काम्पीलवासिनीम्।।
पत्तने नगरेग्रामे विपिने पर्वते गृहे।
नानाजातिकुलेशानीं दुर्गामावाहयाम्यहम्।।
जयन्ती मंगलाकाली भद्रकाली कपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।। 
जय त्वं देवी चामुण्डे जयभूतार्तिहारिणी 
जयसर्वगतीदेवी कालरात्री नमोस्तु ते।
ॐयज्ञेनवज्ञमयजन्त देवास्तनिधर्माणि प्रथमान्यासम् तेहनाकं 
महिमान: सचन्त यच पूर्व साध्या सन्ति देवा:। 
या श्री स्वयं सुकृतिनां भवनेष्व लक्ष्मी। 
पापात्मनां कृत-धियां हृदयेषु बुद्धि। 
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा 
तां त्वां नता स्मपरिपालय दैवि विश्वम 
दुर्गे स्मृतां हृरसि भीतिमशेष जन्तौ: 
स्वस्थै: स्मृतामतिमतीव शुभां ददासि। 
दारिद्र दु:खभयहारिणी कात्वदन्या, 
सर्वोपकार करनाय सदाद्र चित्ता 
सेवन्तिका बकुल चम्पक पाठलाज्वै 
पुन्नाग जाति करबीर रसाल पुष्पे। 
विल्व प्रबाल तुलसीदल अंजरीभि: 
त्वां पूचयामि जगदीश्वरी मे प्रसीद।।

*शिव वंदन एवं  आवाहन-  स्थापन*
बन्दे देवउमापतिं सुरगुरु, बन्दे जगत्कारणम्,
वन्दे पन्नगभूषणम् मृगधरं, वन्दे पशुनाम्पतिम्।
वन्दे सूर्यशशांकवह्निनयनं, वन्दे मुकुन्दप्रियम्
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं, वन्दे शिवं शंकरम्।

*श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रम*
नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय, भस्मांगरागाय महेश्वराय। 
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय, तस्मै ‘न’ काराय नम: शिवाय।। 
मन्दाकिनी सलिल चन्दन चर्चिताय, नन्दीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय, तस्मै ‘म’ काराय नम: शिवाय।। 
शिवाय गौरी वदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय। 
श्रीनीलकंठायवृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नम: शिवाय।।
वसिष्ठकुम्भोद्भव गौतमार्य,मुनीन्द्रदेवार्चित शेखराय। 
चन्द्रार्कवैश्वानर-लोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नम: शिवाय।।
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय 
दिव्यायदेवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’ काराय नम: शिवाय।।

पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेच्छिवसंनिधौ। 
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।

*महामृत्युंजय मंत्र*
ॐ हों जूं सः ॐ भू भुवः स्वः
ॐ त्र्यंबकं यजामहे, सुगन्धिंपुष्टिबर्धनम्, 
उर्बारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात।।
ॐ स्वः भुवः भूः  ॐ सः जूं हों ॐ।।

*हरि वंदन*
शुक्लाम्बरधरं देवं, शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।
प्रसन्नवदनं ध्यायेत्, सर्वविध्नोपशान्तये ।।
सर्वदा सर्वकार्येषु, नास्ति तेषाममंगलम् ।
येषां हृद्स्थो भगवान् मंगलायतनो हरि: ।।

*सप्तदेव*
विनायकं गुरुं भानुं, ब्रह्माविष्णुमहेश्वरान् ।
सरस्वतीं प्रणौम्यादौ, शान्तिकार्यार्थसिद्धये ।।

*पुण्डरीकाक्ष*
मंगलं भगवान् विष्णु:, मंगलं गरुडध्वज: ।
मंगलं पुण्डरीकाक्षो, मंगलायतनो हरि: ।।

*ब्रह्मा*
त्व: वै चतुर्मुखो ब्रह्मा, सत्यलोकपितामह: ।
आगच्छ मण्डले चास्मिन्, मम सर्वार्थसिद्धये ।।
*विष्णु*
शान्ताकारं भुजगशयनं, पद्यनाभं सुरेशं,
विश्वाधारं गगनसदृशं, मेघवर्णं शुभांगम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं, योगिभिर्ध्यानगम्यं,
वन्दे विष्णुं भवभयहरं, सर्वलोकैकनाथम् ।।
कस्तूरी तिलकं ललाट पटले वक्षस्थले कौस्तुभ्यं
नासाग्रेगजमोक्तिकं करतले वेणु करे कंकणम
सर्वांगे हरिचंदनं सुललितं कंठे च मुक्तावलिं
गोपस्त्री परिवोष्ठिते विजयते गोपाल चूड़ामणिम। 
आदो देवकी देव गर्भ जननंगोपी गृहे वर्धनम, 
मायापूतन जीव ताप हरण गोवर्धन धारणम्, 
कंसच्छेद कौरवादि हननं कुंती सुता पालनम्, 
एतत भागवत पुराण कथित श्री कृष्ण लीलामृतम्।

*तीर्थ*
पुष्करादीनि तीर्थानि, गंगाद्या: सरितस्तथा ।
आगच्छन्तु पवित्राणि, पूजाकाले सदा मम ।।

*नवग्रह*
ब्रह्मामुरारिस्त्रिपुरान्तकारी, भानु:शशीभूमिसुतो बुधश्च
गुरुश्चशुक्र:शनिराहुकेतव:,
सर्वेग्रहा: शान्तिकरा भवन्तु।

*षोडशमातृका पूजन*
गौरी पद्या शची मेधा, सावित्रि विजया जया ।
देवसेना स्वधा स्वाहा, मातरो लोक मातर: ।।
धृति: पुष्टिस्तथा तुष्टि:, आत्मन: कुलदेवता ।
गणेशेनाधिका ह्यता, वृद्धौ पूज्याश्च पोडश ।।

*सप्तमातृका*
कीर्तिर्लक्ष्मीर्धृतिर्मेधा, सिद्धि: प्रज्ञा सरस्वती ।
मांगल्येषु प्रपूज्याश्च, सप्तैता दिव्यमातर:।।

*वास्तुदेव*
नागपृष्ठसमारूढ़ं  शूलहस्तं महाबलम् ।
पातालनायकं देवं, वास्तुदेवं नमाम्यहम् ।।

*क्षेत्रपाल*
क्षेत्रपालात्रमस्यामि, सर्वारिष्टनिवारकान् ।
अस्य यागस्य सिद्धयर्थं, पूजयाराधितान् मया ।

*यज्ञोपवीत धारण मंत्र*
यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं
प्रजापतेर्यत् सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयंप्रतिमुञ्च शुभ्रं
यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेज: ।।
यज्ञोपवीतमसि यज्ञस्य
त्वा यज्ञोपवीतेनोपनह्यामि।
पुराने यज्ञोपवीत का त्याग
एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम।

*श्री सप्तश्लोकी दुर्गा*

*विनियोग - अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकी स्तोत्रमन्त्रस्य नारायणऋिष:
अनुष्ठुप् छन्द: श्रीमहाकालीमहालक्ष्मी महासरस्वत्यो देवता: 
श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकी दुर्गापाठे विनियोग:*
श्रृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम्।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुति: प्रकाश्यते।।
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सी।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।। 1 ।।
दुर्गे स्मृतां ह्य्रसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृतां मतिमतीव शुभां ददासि
दारिद्रयदु:खभयहारिणि कात्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता।।2।।
सर्वमंलमांगल्ये, शिवे सर्वार्थसाधिके!
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि, नारायणि! नमोस्तु ते।। 3
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमो स्तु ते।।4।।
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवी दुर्गे देवी नमो स्तु ते।। 5।।
रोगानशेषानपहंशि तुष्टा,
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।। 6
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।। 7
श्री दुर्गादेव्ये नम:

*देवी को प्रणाम*
नमो देव्यै  महादेव्यै शिवायै सततं नमः
नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम्।
या देवी सर्वभूतेषु, मातृरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।
या देवी सर्वभूतेषु, विद्यारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।।

*हनुमत स्तुति*
श्री गुरु चरन सरोज रज,निजमनमुकुरु सुधारि।
बरनऊ रघुबर विमल जसु,जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरों पवन कुमार
बलबुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु  क्लेश विकार।।
पवनतनय संकटहरन मंगलमूरति रूप 
रामलखन सीता सहित हृदय बसहुं सुर भूप।।
लालदेह लाली लसे अरु धरि लाल लंगूर
बज्र देह दानव दलन जय जय जय कपि सूर।।
निश्चय प्रेम प्रतीति ते विनय करे सनमान
तेहि के कारज सकल शुभ सिद्ध करे हनुमान।।

प्रनवउं पवनकुमार खलबल पावक ज्ञानधन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर।।

अतुलित बलधामं हेमशैलाभदेहं,
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनाम ग्रगण्यम।।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं,
रघुपति प्रियभक्तं वात्जातं नमामि।।
गोष्पदीकृत वारीशं मशकीकृत राक्षशम्
रामायण महामालारत्नम् वन्देऽनिलात्मजं।।
अंजनानन्दनम् वीरं जानकीशोकनाशम्
कपीशमक्षहन्तारं वन्दे लंकाभयंकरणम्।।
उल्लंघ्य सिंधो सलिलं सलिलं
यह शोकवह्नि जनकात्मजाया:।।
आदायतेनैव ददाह लंका,
नमामितंप्राञ्जलिरांजनेयम् ।।
मनोजवं मारुततुल्यवेगम् जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्। 
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं श्रीरामदूतम शरणं प्रपद्ये।। 
आन्जनेय मतिपाटलाननं काञ्चनाद्रिकमनीय विग्रहम्।। 
पारिजाततरुमूल वासिनं भावयामि पवमाननन्दनम्।।
यत्रयत्ररघुनाथ कीर्तनम् तत्र तत्र कृत मस्तकांजलिम्।। 
वाष्पवारिपरिपूर्णलोचनम मारुतिंनमत राक्षशान्तकम्।।

*आरती श्री बजरंगबली की*
आरती कीजै हनुमानलला की,
दुष्टदलन रघुनाथ कला की
जाके बल से गिरिवर कांपै,
रोग-दोष जाके निकट न झांके
अंजनिपुत्र महा बलदाई,
संतन के प्रभु सदा सहाई।
दे बीरारघुनाथपठाए,
लंका जारि सिया सुधि लाए।

लंक सो कोट समुद्र की खाई,
जात पवन सुत बार न लाई
लंका जारि असुर संहारे,
सियाराम जी के काज संवारे
लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे,
लाय संजीवन प्रान उबारे।


पैठि पताल तोरि जमकारे,
अहिरावन की भुजा उखारे।
बांए भुजा असुर दल मारे,
दाहिने भुजा संतजन तारे।
सुर नर मुनिजन आरती उतारें,
जै जै जै हनुमान उचारें.
कंचन थार कपूर लौ छाई
आरति करत अंजना माई।
जो हनुमानजी की आरती उतारें
बसि बैकुंठ परम पद पावें
लंक विध्वंस कीन्ह रघुराई,
तुलसीदास स्वामी आरती गाई।


*शंकर जी की आरती*
जय शिव ओंकारा, हर जय शिव ओंकारा ।  
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।।  
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।  
हंसासन गरुड़ासन वृषवाहन साजे।।
दो भुज चार चतुरभुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन जन मोहे । 
अक्षमाला बनमाला रुंडमाला धारी।  
चंदन मृगमद सोहे भोले शुभकारी ।।
श्वेतांबर पीतांबर  बाघाम्बर अंगे ।
सनकादिक ब्रह्मादिक भूतादिन संगे ।।
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।जगकरता जगभरता जग पालन कर्ता।ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों ही एका।।त्रिगुण स्वामी की आरती जो कोई नर गावेकहत शिवानन्द स्वामी मन वांछित फल पावे।
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*अम्बे जी की आरती*
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव जी ।। जय
माँग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको ।। जय
कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजे ।
रक्त-पुष्प गल माला कण्ठन पर साजै ।। जय
केहरी वाहन राजत, खड्ग खपर धारी ।
सुर-नरमुनिजन सेवत, तिनके दु:ख हारी।। जय
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योति।। जय
शुम्भ निशुम्भ विदारे, महिषासुर घाती ।
धुम्रविलोचन नैना, निशिदिन मदमाती ।। जय
चण्ड मुण्ड संहारे, शोणितबीज हरे ।
मधु कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे ।। जय अम्बे.
ब्रह्माणी रुद्राणी, तुम कमला रानी ।
आगम-निगम बखानी, तुम शिवपटरानी।। जय
चौंसठ योगिन गावत, नृत्य करत भैरुं ।
बाजत ताल मृदंगा, और बाजत डमरू ।। जय अम्बे.
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन की दु:ख हरता, सुख सम्पति करता ।। जय
भुजा चार अतिशोभित, वर - मुद्रा धारी ।
मनवांच्छित फल पावत, सेवत नर-नारी ।। जय
कंचन थाल विराजत, अगर कपुर बाती ।
(श्री) मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ।। जय
(श्री) अम्बेजी की आरती, जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावे ।। जय
तन  मन   धन, सब कुछ है तेरा ।
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ।। जय अम्बे.
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*आरती श्री जगदीश्वर जी की*
जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे।
जो ध्यावे फल पावे दुख बिन से मनका
सुख संपत्ति घर आवे कष्ट मिटे तनका  ।।
मात पिता तुम मेरे शरण गहूँ किसकी
तुम बिन औरन दूजा आश करूं जिसकी ।।
तुम पूरण परमात्मा तुम अंतरयामी
पारब्रह्म परमेश्वर तुम सबके स्वामी ।।
तुम करुणा के सागर तुम पालन कर्ता
मैं मूरख खल कामी कृपा करो भर्ता ।।
तुम हो एक अगोचर सबके प्राणपती
किस विध मिलूं दयामय तुमको मैं कुमती।।
दीनबन्धु दुखहर्ता ठाकुर तुम मेरे
अपने हाथ उठाओ  द्वार पड़ा तेरे ।।
विषय विकार मिटाओ पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ सन्तन की सेवा ।।
तन मन धन सब कुछ है तेरा
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।।
श्यामसुन्दर की आरती  जो कोई नित गावे
कहत शिवानन्द स्वामी मन वांछित फल पावे।।

*नमन*
न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मंत्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानंदरूपं शिवोऽहं शिवोऽहम् ।।
करारविंदेन पदार विन्दं
मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्।
वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं
बालं मुकुंदं मनसा स्मरामि।।
श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश
गोपाल गोवर्धननाथ विष्णो
जिह्वे पिबस्वामृतमेतदेव
गोविन्द दामोदर माधवेति।।

ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे 
विष्णु पत्न्यै च धीमहि 
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।

*अर्पण*
त्वमेव माता च पिता त्वमेव
त्वमेव बन्धुश्चसखात्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।
त्वमेव सर्व मम देव देव ।।

*छमा प्रार्थना*
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं यत् पूजनं हरे: ।
सर्वे सम्पूर्णतामेति कृते नीराजने शिवे ।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं जनार्दन
यत्पूजितं मयादेवं परिपूर्णं तदस्तु मे।
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वर
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम
तस्मात कारुण्यभावेन रक्ष मां परमेश्वर।।

*सर्ववन्दन एवं विसर्जनम्*
ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय
श्रीमन्महागणाधिपतये नम:
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:
ॐउमामहेश्वराभ्यां नम:
ॐवाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:
ॐशचीपुरन्दराभ्यां नम:
ॐमातापितृचरणकमलेभ्योनम: ॐकुलदेवताभ्योनम:
ॐ इष्टदेवताभ्यो नम: ॐ  ग्रामदेवताभ्यो नम:
ॐ स्थानदेवताभ्यो नम: ॐ वास्तुदेवताभ्यो नम:
 ॐसर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:ॐसर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नम:
सर्वेभ्यतीर्थेभ्यो नम:एतत्कर्मप्रधानश्रीगायत्रीदेव्यै नम:
ॐ पुण्यं पुण्याहं दीर्घमायुरस्तु। शान्ति शान्ति शान्तिः।  


*शान्तिमंत्रम्*
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष शान्ति: पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्तिर्वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म  शान्ति: सर्व शान्ति: शान्तिरेव शान्ति: सामा शान्तिरेधि।।  ॐ शान्ति: शान्ति:  शान्ति: ।

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।।

*।। श्री हरि स्मरणम् ।।*

गुरूवचनों का संकलन

*गुरुवचनों का संकलन*

🔶🔹🔶🔹🔶🔹🔶

1. भजन का उत्तम समय सुबह 3 से 6 होता है।

2. 24 घंटे में से 3 घंटों पर आप का हक नही, ये समय गुरु का है।

3. कमाए हुए धन का 10 वा अंश गुरु का है. इसे परमार्थ में लगा देना चाहिए।

4. गुरु आदेश को पालना ही गुरु भक्ति है। गुरु का पहला आदेश भजन का है जो नामदान के समय मिला था।

5. 24 घंटों के जो भी काम, सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक करो सब गुरु को समर्पित करके करोगे तो कर्म लागू नही होंगे | अपने उपर ले लोगे तो पांडवों की तरह नरक जाने पड़ेगा, जो हो रहा है उसे गुरु की मोज समझो।

6. 24 घंटे मन में सुमिरन करने से मन और अन्तःकरण साफ़ रहता है. और गुरु की याद भी हमेशा रहेगी. यही तो सुमिरन है।

7. भजन करने वालो को, भजन न करने वाले पागल कहते है मीरा को भी तो लोगो ने प्रेम दीवानी कहा।

8. कही कुछ खाओ तो सोच समझ कर खाओ, क्योंकि जिसका अन्न खाओगे तो मन भी वैसा ही हो जायेगा।

मांसाहारी के यहाँ का खा लिए तो फिर मन भजन में नही लगेगा।

“जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन, जेसा पीवे पानी वैसी होवे वाणी.”

9. गुरु का आदेश, एक प्रार्थना रोज़ होनी चाहिए।

10. सामूहिक सत्संग ध्यान भजन से लाभ मिलता है. एक कक्षा में होंशियार विद्यार्थी के पास बेठ कर कमजोर विद्यार्थी भी कुछ सीख लेता है, और कक्षा में उतीर्ण हो जाता है।

11. गुरु का प्रसाद यानी “बरक्कत” रोज़ लेनी चाहिए।

12. भोजन दिन में 2 बार करते हो तो भजन भी दिन में २ बार करना चाहिए, जिस दिन भजन न पावो उस दिन भोजन भी करने का हक नही।

13. हर जीव में परमात्मा का अंश है इसलिए सब पर दया करो, सब के प्रति प्रेम भाव रखो, चाहे वो आपका दुश्मन ही क्यों न हो. इसे सोचोगे की मैं परमात्मा की हर रूह से प्रेम करता हूँ तो भजन भी बनने लगेगा।

14. परमार्थ का रास्ता प्रेम का है, दिमाग लगाने लगोगे तो दुनिया की बातो में फंस के रह जाओगे।

15. अगर 24 घंटो में भजन के लिए समय नही निकाल पाते हो तो इससे अच्छा है चुल्लू भर पानी में डूब मरो।

16. आज के समय में वही समझदार है जो घर गृहस्थी का काम करते हुए भजन करके यहाँ से निकल चले, वरना बाद में तो रोने के सिवाय कुछ नही मिलने वाला।

17. अपनी मौत को हमेशा याद रखो. मौत याद रहेगी तो मन कभी भजन में रुखा नही होगा. मौत समय बताके नही आएगी।

18. साथ तो भजन जायेगा और कुछ नही. इसलिए कर लेने में ही भलाई है, और जगत के काम झूंठे है।

19. नरकों की एक झलक अगर दिखा दी जाये तो मानसिक संतुलन खो बैठोगे. इसलिए तो महात्माओ ने बताया सब सही है. वो किसी का नुकसान नही चाहते  बात तो बस विश्वास की है।

20. भोजन तो बस जीने के लिए खाओ. खाने के लिए मत जीवो. भोजन शरीर रक्षा के लिए करो।

21. परमार्थ में शरीर को सुखाना पड़ता है मन और इन्द्रियों को वश में करना पड़ता है जो ये करे वही परमार्थ के लायक है।

22. अपने भाग्य को सराहो कि आपको गुरु और नामदान मिल गये, जब दुनिया रोती नजर आएगी तब इसकी कीमत समझोगे।

23. किसी की निंदा मत करो वरना उसके कर्मो के भार तले दब जाओगे. क्यों किसी के कर्मों के लीद का पहाड़ अपने सर पर ले रहे हो।

24. भजन ना बनने का कारण है गुरु के वचनों का याद न रहना, गुरु वचनों को माला की तरह फेरते रहो जैसे एक कंगला अपनी झोली को बार बार टटोलता है।

25. इस कल युग में तीन बातो से जीव का कल्याण हो सकता है. एक सतगुरु की कृपा, दूसरा साधु की संगत और तीसरा “नाम” का सुमिरन, ध्यान और भजन,बाकी सब राग है।


           *पं.मणिकान्त पाण्डेय-ज्योतिषाचार्य-*
*प्रयागराज-(Allahabad) -यूपी-*
*मोबाइल एवं व्हाट्सएप नम्बर-*
*+91-9936980674-*

Friday, January 22, 2021

ज्योतिष विज्ञान से जाने आपके स्वास्थ का राज

*ज्योतिष विज्ञान से आपके स्वस्थ जीवन का राज़?*


शरीर को निरोगी बनाए रखने के लिए ज्योतिष के हेल्थ उपाय को अपनाना बहुत ज़रुरी है। आप में से कई लोगों हेल्थ उपाय को लेकर सजग और गंभीर होंगे। अपने शरीर को फिट बनाए रखने के लिए कई लोग तरह-तरह के उपाय करते हैं, जो कि अच्छी बात है, क्योंकि स्वस्थ शरीर हमारा सबसे बड़ा धन है। कई बार आपने लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि “जान है तो जहां है।” इस कहावत का तात्पर्य हमारे स्वस्थ जीवन से है। परंतु हमें यह जान लेना ज़रुरी है कि स्वस्थ जीवन का अर्थ यहाँ सिर्फ आरोग्य जीवन से नहीं है, बल्कि मनुष्य का सर्वांगीण विकास ही स्वस्थ जीवन है। जो मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक ख़ुशहाली की स्थिति को दर्शाता है।

*ज्योतिष और स्वास्थ्य*

सभी नौ ग्रहों का व्यक्ति के जीवन पर काफी गहरा प्रभाव पड़ता है। मनुष्य का शरीर  पांच तत्वों और तीन धातुओं से मिलकर बना है। जिनको सभी 9 ग्रह मिलकर नियंत्रित करते हैं। क्या आप जानते हैं जब भी कोई तत्व या धातु कमजोर हो जाती है, तो हमारे शरीर में बीमारियां पैदा होने लगती हैं। बीमारी छोटी हो या बड़ी, मनुष्य के शरीर में होने वाली हर बीमारी का सीधा प्रभाव नौ ग्रहों से होता है। कौन सा ग्रह किस बीमारी के लिए जिम्मेदार है, इस बात की जानकारी यदि व्यक्ति को हो जाए तो वह बहुत हद तक अपनी बीमारियों को दूर कर सकता है। इसलिए इस बात की जानकारी बेहद जरूरी है, कि किस ग्रह से कौन सा रोग जन्म लेता है। तो आइए जानते हैं कि इन सभी नौ ग्रहों में से कौन सा ग्रह किस बीमारी का कारक है, और इनसे बचने के लिए हमें क्या उपाय करना चाहिए

वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक ग्रह का संबंध व्यक्ति के किसी न किसी अंग से है और इन ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है। हिन्दू ज्योतिष के अनुसार जब कोई पीड़ित ग्रह लग्न, लग्नेश, षष्ठम भाव अथवा अष्टम भाव से सम्बन्ध बनाता है तो ग्रह से संबंधित अंग रोग से प्रभावित हो सकता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार छठे भाव के स्वामी का सम्बन्ध लग्न भाव लग्नेश या अष्टमेश से होना स्वास्थ्य के पक्ष से शुभ नहीं माना जाता है। जब छठे भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तो रोग अधिक होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इसी प्रकार छठे भाव का स्वामी अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति को लंबी अवधि के रोग होने की अधिक संभावनाएं रहती हैं। यदि लग्नेश छठे या आठवें भाव में हो तो इस स्थिति में भी शारीरिक कष्ट रहने की संभावना रहती है। 

*ग्रह*

सुर्य

*संबंधित अंग व पीड़ा*

ह्रदय, पेट, पित्त, दायीं आँख, घाव, जलने का घाव, गिरना, रक्त प्रवाह में बाधा

चंद्रमा
शरीर के तरल पदार्थ, रक्त, बायीं आँख, छाती, दिमागी परेशानी, महिलाओं में मासिक चक्र की अनिमियतता

मंगल
सिर, जानवरों द्वारा काटना, दुर्घटना, जलना, घाव, शल्य क्रिया, आपरेशन, उच्च रक्तचाप, गर्भपात

बुध
गले, नाक, कान, फेफड़े, आवाज़, बुरे सपनों का आना

गुरु
यकृत, शरीर में चर्बी, मधुमेह, कान

शुक्र
मूत्र में जलन, गुप्त रोग, आँख, आँतें, अपेंडिक्स, मूत्राशय में पथरी

शनि
पांव, पंजे की नसे, लसीका तंत्र, लकवा, उदासी, थकान

राहु
हड्डियाँ, ज़हर , सर्प दंश, बीमारियाँ, डर

केतु
हकलाना, पहचानने में दिक्कत, आँत, परजीवी

*बिस्तार से जाने किस ग्रह से कौन से रोग होने की रहती है संभावना और उपाय*

सूर्य ग्रह से होने वाली बीमारियां 
नौ ग्रहों में सूर्य को राजा का दर्जा प्राप्त है। हर ग्रह की शक्ति के पीछे सूर्य की शक्ति मानी गई है। क्या आप जानते हैं कि यदि आपका सूर्य ठीक नहीं है, तो आपको हड्डियों और नेत्र  से जुड़ी हुई समस्या हो सकती है। हृदय रोग, टीबी और पाचन तंत्र जैसी बीमारियों का कारण भी सूर्य ग्रह ही माना जाता है । 

 उपाय
सूर्य ग्रह से होने वाली बीमारियों के प्रभाव से बचने के लिए सुबह जल्दी उठें। स्नान करने के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें। खाने में गेहूं की दलिया का सेवन जरूर करें । तांबे के पात्र में पानी पीएं। 

चंद्रमा से होने वाली बीमारियां
चंद्रमा इंसान के मन और सोच को नियंत्रित करता है, और यही कारण है कि इस ग्रह द्वारा व्यक्ति को मानसिक बीमारियां होती हैं। व्यक्ति को अनेक तरह की चिंताएं परेशान करती है। नींद ना आना, घबराहट होना और बेचैनी जैसी अनेक समस्याएं बनी रहती हैं।

उपाय
यदि आपको इस तरह की परेशानी है, तो आप देर रात तक ना जागें। पूर्णिमा या फिर एकादशी में से किसी एक तिथि पर उपवास रखें। भगवान शिव की पूजा करें। और चांदी का छल्ला या फिर चांदी की चेन धारण करें।

मंगल से होने वाली बीमारियां
मंगल ग्रह को विशेष तौर पर रक्त का स्वामी माना गया है। मंगल ग्रह से व्यक्ति को रक्त संबंधित परेशानियां होती है। दुर्घटना, बुखार जैसी परेशानियों के लिए भी मंगल ग्रह ही जिम्मेदार माना जाता है। इसके साथ-साथ त्वचा संबंधित परेशानियां भी मंगल द्वारा पैदा होती है।

उपाय
मंगल ग्रह से होने वाले रोगों से बचने के लिए मंगलवार के दिन व्रत रखें। चीनी की बजाय खाने में गुड़ का इस्तेमाल करें। जमीन पर या लो फ्लोर के पलंग पर सोएं, और घड़े का ही जल ग्रहण करें। ऐसा करना आपके लिए बेहद लाभकारी होगा।

बुध ग्रह से होने वाली बीमारियां
बुध ग्रह को व्यक्ति के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का स्वामी माना गया है। और यही कारण है कि बुध ग्रह से इन्फेक्शन वाली बीमारियां ज्यादा होती है। कान, नाक और गले की बीमारियों के साथ-साथ त्वचा से जुड़ी हुई बीमारियों के लिए भी बुध ग्रह जिम्मेदार होता है।

उपाय
बुध ग्रह के प्रभाव से बचने के लिए खाने में हरी सब्जियों और सलाद का सेवन करें। उगते हुए सूरज की रोशनी में बैठे। सुबह खाली पेट तुलसी के पत्ते का सेवन करें। और गायत्री मंत्र का जाप करें, आपके लिए लाभकारी होगा

बृहस्पति से होने वाली बीमारियां
बृहस्पति ग्रह व्यक्ति के स्वस्थ्य रहने का कारण भी माना जाता है, तो व्यक्ति को गंभीर बीमारी देने का भी कारण है। कैंसर, हेपेटाइटिस और पेट जैसी गंभीर बीमारियां बृहस्पति ग्रह से पनपती है।

उपाय
बृहस्पति ग्रह के प्रभाव से बचने के लिए सुबह जल्दी उठकर पानी में हल्दी मिलाकर उसका सेवन करें। सोने का छल्ला तर्जनी उंगली में धारण करें। मस्तक पर हल्दी का तिलक जरूर लगाएं और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।

शुक्र ग्रह से होने वाली बीमारियां
शुक्र ग्रह के द्वारा व्यक्ति को हारमोंस और मधुमेह जैसी बीमारियां परेशान करती हैं। कभी-कभी यह आखों से संबंधित रोग भी देता है।

उपाय
दोपहर के भोजन में दही का सेवन करें। चीनी, चावल और मैदा जितना हो सके कम खाएं। सुबह जल्दी उठकर टहलने जाए, और एक सफेद स्फटिक की माला गले में धारण करें।

शनि ग्रह से होने वाली बीमारियां
शनि ग्रह से होने वाली बीमारियां आमतौर पर व्यक्ति के जीवन में लंबे समय तक बनी रहती है। व्यक्ति को चलने-फिरने में तकलीफ होती है। 

उपाय
शनि ग्रह से होने वाली बीमारियों के प्रभाव से बचने के लिए सादा भोजन करें। हवादार और साफ-सुथरे घर में रहें। लोहे का छल्ला धारण करें, रोजाना सुबह पीपल के पेड़ के नीचे बैठें।

राहु ग्रह से होने वाली बीमारियां
राहु ग्रह व्यक्ति को रहस्यमय तरह की बीमारियां देने का कारक माना गया है। छोटी दिखने वाली बीमारियां आमतौर पर आगे चलकर गंभीर रूप धारण कर लेती है। इस तरह की बीमारियां खुद ब खुद आती है, और खुद ही चली जाती है।

उपाय
राहु ग्रह से बचने वाली बीमारियों के लिए चंदन की सुगंध लें। गले में तुलसी माला धारण करें। सादा भोजन करें और चमकदार नीले रंग का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग करें।

केतु ग्रह से होने वाली बीमारियां
राहु की तरह ही केतु भी रहस्यमय बीमारियों का कारक है। आमतौर पर त्वचा और रक्त से संबंधित परेशानियां केतु ग्रह द्वारा होती है । इन बीमारियों का कारण और निवारण समझ में नहीं आता है।

उपाय
केतु ग्रह के प्रभाव से बचने के लिए रोजाना स्नान करें। पूजा-पाठ में मन लगाएं। ज़रूरतमंदों को भोजन कराएं और गुप्त दान करें।

भारतीय ज्योतिष में मनुष्य की समस्याओं का समाधान है। यदि आपको किसी प्रकार की शारीरिक पीड़ा है तो आप उस रोग से संबंधित ग्रह की शांति के उपाय कर सकते हैं।

*वास्तु शास्त्र और स्वास्थ्य संबंधी उपचार*

वास्तु शास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसमें व्यक्ति के व्यवस्थित जीवन के बारे में वर्णन है। इसमें वास्तु कला, भवन निर्माण, घर में शुभ-अशुभ पेड़-पौधों की दिशा की स्थिति को बतलाया गया है और इन सबका प्रभाव व्यक्ति के जीवन में प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है। यदि घर का निर्माण वास्तु के हिसाब से न हो तो घर में तमाम तरह की विपत्तियाँ आती हैं। इसे वास्तु दोष भी कहते हैं। इसमें घर के सदस्यों को कई तरह के शारीरिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। मनुष्य का जीवन निरोगी रहे इसलिए वास्तु शास्त्र के स्वास्थ्य संबंधी उपाय जानना बेहद ज़रुरी है।

*वास्तु दिशाएँ और रोग निवारण उपाय-*

दक्षिण और पश्चिम दिशा के मध्य भाग को नैऋत्य कोण कहा जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा का स्वामी राक्षस है। अतः इस दिशा का वास्तु दोष दुर्घटना, रोग और मानसिक पीड़ा का कारक होता है। वास्तु के अनुसार घर पर शौचालय और रसोई का स्थान ऐसी दिशा में नहीं होना चाहिए जिससे घर में रोग या नकारात्मक ऊर्जा का आगमन हो। वास्तु उपाय के अनुसार प्रमुख व्यक्तियों का शयन कक्ष नैऋत्य कोण में होना चाहिए और बच्चों को वायव्य कोण में रखना चाहिए। शयनकक्ष में सोते समय सिर उत्तर में, पैर दक्षिण में कभी न करें। ध्यान रखें ईशान कोण में सोने से बीमारी होती है। बीम के नीचे व कालम के सामने नहीं सोना चाहिए।

*स्वास्थ्य के लिए तुलसी एक चमत्कारिक औषधि*

वेदों और पुराणों में तुलसी को लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है इसलिए यह पौधा पूजनीय है। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण यह पौधा घर में नकारात्मक दोषों को दूर करता है। अध्ययन के अनुसार जिस घर में तुलसी का पौधा हो उस घर के सदस्य स्वस्थ और दुरुस्त रहते हैं। औषधि के रूप में भी तुलसी का बड़ा महत्व है। वास्तु शास्त्र के अनुसार तुलसी का पौधा घर के दक्षिण भाग में नहीं लगाना चाहिए।

अनुशासित दिनचर्या अपनाएँ

फिटनेस उपाय में अनुशासित दिनचर्या सर्वोपरि है। इसके लिए आपको सबसे पहले अपनी एक आदर्श दिनचर्या बनानी होगी और उसके बाद उस दिनचर्या का सख़्ती से पालन करना आवश्यक है। हालांकि यहाँ यह समझना ज़रुरी है कि आदर्श दिनचर्या क्या होती है। इसके अंतर्गत सही समय पर सोना-जगना, खाना-पीना आदि चीज़ें आती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि आपको अपने कार्यों का समय प्रबंधन करना होगा। यदि आप इस दिनचर्या का ईमानदारी से पालन करते रहे तो कुछ समय के बाद आपमें एक सकारात्मक बदलाव नज़र आएगा और उस परिवर्तन को आप स्वयं महसूस कर पाएंगे। इसलिए स्वस्थ जीवन के लिए अनुशासित दिनचर्या नितांत आवश्यक है।

योग और व्यायाम करें

“स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है।” यह वाक्य अपने में सार्थक है इसलिए ज़रुरी है आपको अपना शरीर फिट बनाए रखना चाहिए। उसके लिए आप योग एवं शारीरिक व्यायाम आदि कर सकते हैं। योग और व्यायाम में मनुष्य को स्वस्थ बनाए रखने की असीम शक्ति समाहित है। ध्यान रखें, शारीरिक व्यायाम न केवल आपको स्वस्थ बनाती है, बल्कि यह आपके व्यक्तित्व को भी निखारने में मदद करती है। योग और व्यायाम में असीम शक्ति है। यदि संभव हो पाए तो जल्दी सबेरे उठकर दौड़ लगाएं। अपने शरीर को आकर्षक बनाने के लिए आप जिम भी जा सकते हैं।

ध्यान क्रिया करें

ध्यान एक ऐसी क्रिया है जिसके कारण शरीर की आतंरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होता है और शरीर की प्रत्येक कोशिकाएं ऊर्जा से भर जाती हैं। ध्यान क्रिया आपको मानसिक रूप से स्वस्थ बनाती है। मन को शांत और एकाग्र करने के लिए यह बहुत ही योग्य विधि है। इसके अलावा ध्यान करने से विचारों में स्पष्टता और संवाद शैली में सुधार आता है। ध्यान हमारी मानसिक शक्ति और बौद्धिक चेतना में वृद्धि करता है।

पौष्टिक आहार का सेवन करें

हमारे शरीर को खनिज और विटामिन्स, प्रोटीन्स, कार्बोहाइड्रेट आदि की आवश्यकता होती है। यदि ये हमें पर्याप्त रूप से न मिलें तो हम कुपोषण का शिकार हो सकते हैं। इसलिए खाद्य पदार्थों में हमें ये संतुलित मात्रा में अवश्य लेना चाहिए। उदाहरण के लिए खनिज पदार्थों में मनुष्य के शरीर को सबसे ज्यादा कैल्शियम की आवश्यकता होती है इसलिए हमें अपने खाद्य पदार्थों में कैल्शियम युक्त भोजन करना चाहिए। कैल्शियम का सबसे अच्छा स्त्रोत हरी पत्तेदार सब्जियां, सोयाबीन, दाल आदि हैं। ऐसे ही प्रोटीन्स और विटामिन्स हमारे शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अति आवश्यक हैं। इसलिए फिट रहने के लिए हमें अपने खान-पान पर ध्यान देना चाहिए।

स्पोर्ट्स ( खेल ) से जुड़ें

अच्छी सेहत के लिए स्पोर्ट्स से जुड़ना चाहिए। इसके लिए ऐसे खेलों को चुनें जिसमें आपकी शारीरिक सक्रियता अधिक हो। इससे आपकी शारीरिक और मानसिक स्थिति स्वस्थ रहेगी। खेलने से व्यक्ति के अंदर अनुशासनात्मक गुण विकसित होते हैं। खेल भावना से व्यक्ति अधिक सामाजिक होता है। उसके अंदर एक टीम भावना पैदा होती है। आपका हृदय मजबूत होता है और इससे हृदय रोग आपके आसपास नहीं भटकते हैं। इसके साथ ही श्वसन क्रिया, रक्त का संचार भी ठीक प्रकार से होता है। जो व्यक्ति खेल से जुड़ा होता है वह अधिक उम्र में भी जवां नज़र आता है और एक खिलाड़ी की यही ख़ास बात होती है।

नियमित कराएँ सेहत की जाँच

सेहत की जाँच अवश्य करानी चाहिए। जब हम पूर्ण रूप से स्वस्थ होते हैं तो चिकित्सक के पास नहीं जाते हैं, जबकि हमें नियमित रूप से अपने हैल्थ का चेकअप कराना चाहिए। दरअसल चेकअप के द्वारा आप अपनी शरीर की कमियों और ज़रुरतों को जान सकेंगे। 

*आशा है कि यह लेख आपको पसंद आया होगा।*

Tuesday, January 19, 2021

#सूर्य को जल चढ़ाने से संवर जाएंगे बिगड़े काम और भी हैं चमत्कारी लाभ#

*#सूर्य को जल चढ़ाने से संवर जाएंगे बिगड़े काम और भी हैं चमत्कारी लाभ#*

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भक्तों को देते हैं प्रत्यक्ष दर्शन

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य को देवों की श्रेणी में रखा गया है। उन्हें भक्तों को प्रत्यक्ष दर्शन देने वाला भी कहा जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सूर्य का विशेष महत्व है। इसे सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। सूर्य की किरणें शरीर में मौजूद बैक्टीरिया को दूर कर निरोग बनाने का कार्य करती हैं।

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क्या कहती हैं मान्यताएं

धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो सूर्य देव को आत्मा का कारक माना गया है। इसलिए प्रात:काल सूर्य देव के दर्शन से मन को बेहतर कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही ये शरीर में स्फूर्ति भी लाता है।

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भाग्य दोष होते हैं दूर

प्रत्येक सुबह सूर्य को जल चढ़ाने से भाग्य अच्छा होता है। सभी कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण होते है। हर कोई आपसे खुश रहता है और आपके लिए निष्ठावान रहता है।

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मिलता है सम्मान

ज्योतिशास्त्र के मुताबिक सूर्य ही वह ग्रह है जो व्यक्ति को सम्मान दिलाता है। नियमित रूप से सूर्य देव को जल चढ़ाने वाले व्यक्ति का व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है। उसे लोगों से सहयोग मिलता है व उच्च पद पर विराजित होने का भी सम्मान मिलता है। ऐसे लोग समाज में प्रतिष्ठा हासिल करते हैं।

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कार्य-कौशल में होती है वृद्धि

जो लोग रोजाना सूर्य देव को जल अर्पण करते हैं, सूर्य देव हमेशा उन पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं। सूर्य को जल चढ़ाने से मन एकाग्रचित्त होता है। जिससे सीखने की क्षमता बढ़ती है। ऐसे व्यक्ति जटिल से जटिल समस्या का समाधान भी चुटकियों में कर देते हैं।

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साइंस से जुड़े पहलू

सूर्य को जल चढ़ाने से होने वाले फायदे के वैज्ञानिक आधार भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार सुबह के समय सूर्य को चल चढ़ाने से शरीर को विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा मिलती है। जिससे शरीर स्वस्थ्य रहता है।

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हर अंग पर पड़ता है प्रभाव

इंसान का शरीर पंच तत्वों से बना होता है। इनमें एक तत्व अग्नि भी है। सूर्य को अग्नि का कारक माना गया है। इसलिए सुबह सूर्य को जल चढ़ाने से उसकी किरणें पूरे शरीर र पड़ती है। जिससे हार्ट, त्वचा, आंखे, लीवर और दिमाग जैसे सभी अंग सक्रिय हो जाते हैं।

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बढ़ता है कॉन्फिडेंस

सूर्य को जल चढ़ाने से मन में अच्छे विचार आते है। जिससे प्रसन्नता का अनुभव होता है। इससे सोचने-समझने की शक्ि भी बढ़ती है। ये व्यक्ति की इच्छाशक्ति को मजबूत करने का भी काम करता है।

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नींद न आने की समस्या को करता है दूर

रोज सुबह जल्दी उठने और रात को जल्दी सोने की प्रक्रिया से शरीर का संतुलन बना रहता है। इससे थकान, नींद न आने व सिर में दर्द जैसी समस्याओं को दूर करता है। ये दिमाग को सक्रिय बनाता है।

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सूर्य को जल चढ़ाने का तरीका

भारतीय परंपरा के अनुसार सूर्य देव को प्रात:काल नहाने के बाद जल अर्पण करना चाहिए। जल चढ़ाने के लिए तांबे के कलश का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। साथ ही जल में लाल सिंदूर व लाल फूल डालकर भी अर्पण करना चाहिए। ऐसा करने से सूर्य देव की कृपा हमेशा बनी रहती है।
सूर्य नमस्‍कार की विधि और मंत्र    

सूर्य नमस्‍कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्‍येक बार सूर्य मंत्रो के उच्‍चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्‍न है-
1. ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः

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सूर्य-नमस्कार को सर्वांग व्‍यायाम भी कहा जाता है, समस्त यौगिक क्रियाऒं की भाँति सूर्य-नमस्कार के लिये भी प्रातः काल सूर्योदय का समय सर्वोत्तम माना गया है। सूर्यनमस्कार सदैव खुली हवादार जगह पर कम्बल का आसन बिछा खाली पेट अभ्यास करना चाहिये।इससे मन शान्त और प्रसन्न हो तो ही योग का सम्पूर्ण प्रभाव मिलता है।

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प्रथम स्थिति- स्थितप्रार्थनासन
सूर्य-नमस्कार की प्रथम स्थिति स्थितप्रार्थनासन की है।सावधान की मुद्रा में खडे हो जायें।अब दोनों हथेलियों को परस्पर जोडकर प्रणाम की मुद्रा में हृदय पर रख लें।दोनों हाथों की अँगुलियाँ परस्पर सटी हों और अँगूठा छाती से चिपका हुआ हो। इस स्थिति में आपकी केहुनियाँ सामने की ऒर बाहर निकल आएँगी।अब आँखें बन्द कर दोनों हथेलियों का पारस्परिक दबाव बढाएँ । श्वास-प्रक्रिया निर्बाध चलने दें।

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द्वितीय स्थिति - हस्तोत्तानासन या अर्द्धचन्द्रासन
प्रथम स्थिति में जुडी हुई हथेलियों को खोलते हुए ऊपर की ऒर तानें तथा साँस भरते हुए कमर को पीछे की ऒर मोडें।गर्दन तथा रीढ की हड्डियों पर पडने वाले तनाव को महसूस करें।अपनी क्षमता के अनुसार ही पीछे झुकें और यथासाध्य ही कुम्भक करते हुए झुके रहें ।

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तृतीय स्थिति - हस्तपादासन या पादहस्तासन
दूसरी स्थिति से सीधे होते हुए रेचक (निःश्वास) करें तथा उसी प्रवाह में सामने की ऒर झुकते चले जाएँ । दोनों हथेलियों को दोनों पँजों के पास जमीन पर जमा दें। घुटने सीधे रखें तथा मस्तक को घुटनों से चिपका दें यथाशक्ति बाह्य-कुम्भक करें। नव प्रशिक्षु धीरे-धीरे इस अभ्यास को करें और प्रारम्भ में केवल हथेलियों को जमीन से स्पर्श कराने की ही कोशिश करें।

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चतुर्थ स्थिति- एकपादप्रसारणासन
तीसरी स्थिति से भूमि पर दोनों हथेलियाँ जमाये हुए अपना दायाँ पाँव पीछे की ऒर फेंके।इसप्रयास में आपका बायाँ पाँव आपकी छाती केनीचे घुटनों से मुड जाएगा,जिसे अपनी छाती से दबाते हुए गर्दनपीछे की ऒर मोडकर ऊपर आसमान कीऒर देखें।दायाँ घुटना जमीन पर सटा हुआ तथा पँजा अँगुलियों पर खडा होगा। ध्यान रखें, हथेलियाँ जमीन से उठने न पायें।श्वास-प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहे।

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पंचम स्थिति- भूधरासन या दण्डासन
एकपादप्रसारणासन की दशा से अपने बाएँ पैर को भी पीछे ले जाएँ और दाएँ पैर के साथ मिला लें ।हाथों को कन्धोंतक सीधा रखें । इस स्थिति में आपका शरीर भूमि पर त्रिभुज बनाता है , जिसमें आपके हाथ लम्बवत् और शरीर कर्णवत् होते हैं।पूरा भार हथेलियों और पँजों पर होता है। श्वास-प्रक्रिया सामान्य रहनी चाहिये अथवा केहुनियों को मोडकर पूरे शरीर को भूमि पर समानान्तर रखना चाहिये। यह दण्डासन है।

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षष्ठ स्थिति - साष्टाङ्ग प्रणिपात
पंचम अवस्था यानि भूधरासन से साँस छोडते हुए अपने शरीर को शनैःशनैः नीचे झुकायें। केहुनियाँ मुडकर बगलों में चिपक जानी चाहिये। दोनों पँजे, घुटने, छाती, हथेलियाँ तथा ठोढी जमीन पर एवं कमर तथा नितम्ब उपर उठा होना चाहिये । इस समय 'ॐ पूष्णे नमः ' इस मन्त्र का जप करना चाहिये । कुछ योगी मस्तक को भी भूमि पर टिका देने को कहते हैं ।

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सप्तम स्थिति - सर्पासन या भुजङ्गासन

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छठी स्थिति में थॊडा सा परिवर्तन करते हुए नाभि से नीचे के भाग को भूमि पर लिटा कर तान दें। अब हाथों
को सीधा करते हुए नाभि से उपरी हिस्से को ऊपर उठाएँ। श्वास भरते हुए सामने देखें या गरदन पीछे मोडकर
ऊपर आसमान की ऒर देखने की चेष्टा करें । ध्यान रखें, आपके हाथ पूरी तरह सीधे हों या यदि केहुनी से मुडे
हों तो केहुनियाँ आपकी बगलों से चिपकी हों ।

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अष्टम स्थिति- पर्वतासन
सप्तम स्थिति से अपनी कमर और पीठ को ऊपर उठाएँ, दोनों पँजों और हथेलियों पर पूरा वजन डालकर नितम्बों को पर्वतशृङ्ग की भाँति ऊपर उठा दें तथा गरदन को नीचे झुकाते हुए अपनी नाभि को देखें ।

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नवम स्थिति - एकपादप्रसारणासन (चतुर्थ स्थिति)
आठवीं स्थिति से निकलते हुए अपना दायाँ पैर दोनों हाथों के बीच दाहिनी हथेली के पास लाकर जमा दें। कमर को नीचे दबाते हुए गरदन पीछे की ऒर मोडकर आसमान की ऒर देखें ।बायाँ घुटना जमीन पर टिका होगा ।

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दशम स्थिति - हस्तपादासन
नवम स्थिति के बाद अपने बाएँ पैर को भी आगे दाहिने पैर के पास ले आएँ । हथेलियाँ जमीन पर टिकी रहने दें । साँस बाहर निकालकर अपने मस्तक को घुटनों से सटा दें । ध्यान रखें, घुटने मुडें नहीं, भले ही आपका मस्तक उन्हें स्पर्श न करता हो ।

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एकादश स्थिति - ( हस्तोत्तानासन या अर्धचन्द्रासन )
दशम स्थिति से श्वास भरते हुए सीधे खडे हों। दोनों हाथों की खुली हथेलियों को सिर के ऊपर ले जाते हुए पीछे की ऒर तान दें ।यथासम्भव कमर को भी पीछे की ऒर मोडें।

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द्वादश स्थिति -स्थित प्रार्थनासन ( प्रथम स्थिति )
ग्यारहवीं स्थिति से हाथों को आगे लाते हुए सीधे हो जाएँ । दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में वक्षःस्थल पर जोड लें । सभी उँगलियाँ परस्पर जुडी हुईं तथा अँगूठा छाती से सटा हुआ । कोहुनियों को बाहर की तरफ निकालते हुए दोनों हथेलियों पर पारस्परिक दबाव दें।

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सूर्य नमस्‍कार तेरह बार करना चाहिये और प्रत्‍येक बार सूर्य मंत्रो के उच्‍चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्‍न है
1. ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ

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Monday, January 18, 2021

तिलक लगाने के चमत्कारिक लाभ,प्रभाव ।

*तिलक लगाने के चमत्कारिक प्रभाव ,लाभ?*

तिलक लगाने का स्थान : तिलक लगाने के 12 स्थान हैं। सिर, ललाट, कंठ, हृदय, दोनों बाहुं, बाहुमूल, नाभि, पीठ, दोनों बगल में, इस प्रकार बारह स्थानों पर तिलक करने का विधान है। मस्तक पर तिलक जहां लगाया जाता है वहां आत्मा अर्थात हम स्वयं स्थित होते हैं।

 तिलक मस्तक पर दोनों भौंहों के बीच नासिका के ऊपर प्रारंभिक स्थल पर लगाए जाते हैं जो हमारे चिंतन-मनन का भी स्थान है। यह स्थान चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है, इसे आज्ञा-चक्र भी कहते हैं।

 इन दोनों के संगम बिंदु पर स्थित चक्र को निर्मल, विवेकशील, ऊर्जावान, जागृत रखने के साथ ही तनावमुक्त रहने हेतु ही तिलक लगाया जाता है। इस बिंदु पर यदि सौभाग्यसूचक द्रव्य जैसे चंदन, केशर, कुमकुम आदि का तिलक लगाने से सात्विक एवं तेजपूर्ण होकर आत्मविश्वास में अभूतपूर्ण वृद्धि होती है, मन में निर्मलता, शांति एवं संयम में वृद्धि होती है।
 
तिलक लगाने का वैज्ञानिक महत्व : ललाट पर तिलक धारण करने से मस्तिष्क को शांति और शीतलता मिलती है तथा बीटाएंडोरफिन और सेराटोनिन नामक रसायनों का स्राव संतुलित मात्रा में होने लगता है। इन रसायनों की कमी से उदासीनता और निराशा के भाव पनपने लगते हैं अत: तिलक उदासीनता और निराशा से मुक्ति प्रदान करने में सहायक है। वि‍भिन्न द्रव्यों से बने तिलक की उपयोगिता और महत्व अलग-अलग हैं।
 
किस अंगुलि से लगाएं तिलक तो क्या होगा : अनामिका अंगुली से तिलक करने से मन और मस्तिष्क को शांति मिलती है, मध्यमा से आयु बढ़ाती है, अंगूठे से तिलक करना पुष्टिदायक कहा गया है और तर्जनी से तिलक करने पर मोक्ष मिलता है। विष्णु संहिता के अनुसार देव कार्य में अनामिका, पितृ कार्य में मध्यमा, ऋषि कार्य में कनिष्ठिका तथा तांत्रिक कार्यों में प्रथमा अंगुली का प्रयोग होता है।

मान्यता है कि विष्णु आदि देवताओं की पूजा में पीत चंदन, गणेश पूजा में हरिद्रा चंदन, पितृ कार्यों में रक्त चंदन, शिव पूजा में भस्म, ऋषि पूजा में श्वेत चंदन, मानव पूजा में केसर और चंदन, लक्ष्मी पूजा में केसर एवं तांत्रिक कार्यों में सिंदूर का प्रयोग तिलक के लिए करना चाहिए।

तिलक कई प्रकार के होते हैं:- मृतिका, भस्म, चंदन, रोली, केसर, सिंदूर, कुंकुम, गोपी आदि।  सनातन धर्म में शैव, शाक्त, वैष्णव और अन्य मतों के अलग-अलग तिलक होते हैं। तिलक केवल एक तरह से नहीं लगाया जाता। हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं, जितने पंथ है, संप्रदाय हैं उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं। 
 
*शैव परंपरा में ललाट पर चंदन की आड़ी रेखा या त्रिपुंड लगाया जाता है। 

*शाक्त सिंदूर का तिलक लगाते हैं। सिंदूर उग्रता का प्रतीक है। यह साधक की शक्ति या तेज बढ़ाने में सहायक माना जाता है।

*वैष्णव परंपरा में चौंसठ प्रकार के तिलक बताए गए हैं। इनमें प्रमुख हैं- लालश्री तिलक-इसमें आसपास चंदन की व बीच में कुंकुम या हल्दी की खड़ी रेखा बनी होती है।

*विष्णुस्वामी तिलक यह तिलक माथे पर दो चौड़ी खड़ी रेखाओं से बनता है। यह तिलक संकरा होते हुए भौंहों के बीच तक आता है। 

*रामानंद तिलक विष्णुस्वामी तिलक के बीच में कुंकुम से खड़ी रेखा देने से रामानंदी तिलक बनता है। 

*श्यामश्री तिलक इसे कृष्ण उपासक वैष्णव लगाते हैं। इसमें आसपास गोपीचंदन की तथा बीच में काले रंग की मोटी खड़ी रेखा होती है। 

*अन्य तिलक गाणपत्य, तांत्रिक, कापालिक आदि के भिन्न तिलक होते हैं। कई साधु व संन्यासी भस्म का तिलक लगाते हैं।

चंदन का तिलक :  - चंदन का तिलक लगाने से पापों का नाश होता है, व्यक्ति संकटों से बचता है, उस पर लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है, ज्ञानतंतु संयमित व सक्रिय रहते हैं। चंदन का तिलक ताजगी लाता है और ज्ञान तंतुओं की क्रियाशीलता बढ़ाता है। चन्दन के प्रकार : हरि चंदन, गोपी चंदन, सफेद चंदन, लाल चंदन, गोमती और गोकुल चंदन।  
 
कुमकुम का तिलक:- कुमकुम का तिलक तेजस्विता प्रदान करता है।
 
मिट्टी का तिलक:- विशुद्ध मिट्टी के तिलक से बुद्धि-वृद्धि और पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
 
केसर का तिलक:-  केसर का तिलक लगाने से सात्विक गुणों और सदाचार की भावना बढ़ती है। इससे बृहस्पति ग्रह का बल भी बढ़ जाता है और भाग्यवृद्धि होती है।
 
हल्दी का तिलक:- हल्दी से युक्त तिलक लगाने से त्वचा शुद्ध होती है।
 
दही का तिलक:- दही का तिलक लगाने से चंद्र बल बढ़ता है और मन-मस्तिष्क में शीतलता प्रदान होती है।
 
इत्र का तिलक:- इत्र कई प्रकार के होते हैं। अलग अलग इत्र के अलग अलग फायदे होते हैं। इत्र का तिलक लगाने से शुक्र बल बढ़ता हैं और व्यक्ति के मन-मस्तिष्क में शांति और प्रसन्नता रहती है।
 
तिलकों का मिश्रण:- अष्टगन्ध में आठ पदार्थ होते हैं- कुंकुम, अगर, कस्तुरी, चन्द्रभाग, त्रिपुरा, गोरोचन, तमाल, जल आदि। पंचगंध में गोरोचन, चंदन, केसर, कस्तूरी और देशी कपूर मिलाया जाता है। गंधत्रय में सिंदूर, हल्दी और कुमकुम मिलाया जाता है। यक्षकर्दम में अगर, केसर, कपूर, कस्तूरी, चंदन, गोरोचन, हिंगुल, रतांजनी, अम्बर, स्वर्णपत्र, मिर्च और कंकोल सम्मिलित होते हैं।
 
गोरोचन:- गोरोचन आज के जमाने में एक दुर्लभ वस्तु हो गई है। गोरोचन गाय के शरीर से प्राप्त होता है। कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है, किंतु वस्तुतः इसका नाम 'गोपित्त' है, यानी कि गाय का पित्त। हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगंधित पदार्थ है, जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है। अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है।

 यंत्र लेखन, तंत्र साधना तथा सामान्य पूजा में भी अष्टगंध-चंदन निर्माण में गोरोचन की अहम भूमिका है। गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं। आध्यात्मिक साधनाओं के लिए गारोचन बहुत लाभदायी है।

          

Sunday, January 17, 2021

गुरु हमेशा संग रहते है

🌹 *गुरु हमेशा अंग संग रहते है....* 🌹

             *एक बार स्वामी विवेकानंद जी किसी स्थान पर प्रवचन दे रहे थे । श्रोताओ के बीच एक मंजा हुआ चित्रकार भी बैठा था । उसे* *व्याख्यान देते स्वामी जी अत्यंत ओजस्वी लगे । इतने कि वह अपनी डायरी के एक पृष्ठ पर उनका रेखाचित्र बनाने लगा ।* 
              *प्रवचन समाप्त होते ही उसने वह चित्र स्वामी विवेकानंद जी को दिखाया । चित्र देखते ही, स्वामी जी हतप्रभ रह गए । और उस चित्रकार से पूछ बैठे - "यह मंच पर ठीक मेरे सिर के पीछे तुमने जो चेहरा बनाया है, जानते हो यह किसका चित्र है ?* 
           *चित्रकार बोला - "नहीं तो पर पूरे व्याख्यान के दौरान मुझे यह चेहरा ठीक आपके पीछे झिलमिलाता दिखाई देता रहा । मैं नही जानता यह कौन है ?"* 
            *यह सुनते ही विवेकानंद जी भावुक हो उठे और रुंधे कंठ से बोले - "धन्य है तुम्हारी आँखे ! तुमने आज साक्षात मेरे गुरुदेव श्री रामकृष्ण परमहंस जी के दर्शन किए । यह चेहरा मेरे गुरुदेव का ही है, जो हमेशा दिव्य रूप में, हर प्रवचन में, मेरे अंग संग रहते है ।"* 
           *प्रवचन में मैं नहीं बोलता, ये ही बोलते है । मेरी क्या हस्ती, जो कुछ कह-सुना पाऊं । वैसे भी देखो ना, माइक हमेशा आगे होता है और मुख पीछे होता है । ठीक यही अलौकिक दृश्य इस चित्र में है । मैं आगे हूँ और वास्तविक वक्ता मेरे गुरुदेव पीछे है !"* 
          *गुरु शिष्यों में युगों युगों से यही रहस्यमयी लीला होती आ रही है । अपने गुरु पर पूर्ण विश्वास रखे क्योंकि वह सदैव हमारे साथ रहते हैं ।* 
 🙏🙏🙏🙏    जय गुरुदेव         🙏🏻 🙏🏻🙏🙏

Saturday, January 16, 2021

5 की संख्या इसलिए है शुभ

*5 की संख्या इसलिए है इतनी शुभ?*

*पंचामृत से लेकर पंचमेवा तक का महत्व?*

पंचदेव :
सूर्य, गणेश, शिव, शक्ति और विष्णु ये पंचदेव कहलाते हैं। सूर्य की दो परिक्रमा, गणेश की एक परिक्रमा, शक्ति की तीन, विष्णु की चार तथा शिव की आधी परिक्रमा की जाती है।
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पांच उपचार पूजा :
गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य अर्पित करना पंच उपचार पूजा कहलाती है।
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पंच पल्लव :
पीपल, गूलर, अशोक, आम और वट के पत्ते सामूहिक रूप से पंच पल्लव के नाम से जाने जाते हैं।
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पंच पुष्प :
चमेली, आम, शमी (खेजड़ा), पद्म (कमल) और कनेर के पुष्प सामूहिक रूप से पंच पुष्प के नाम से जाने जाते हैं।
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पंच गव्य :
भूरी गाय का मूत्र (8 भाग), लाल गाय का गोबर (16 भाग), सफेद गाय का दूध (12 भाग), काली गाय का दही (10 भाग), नीली गाय का घी (8 भाग) का मिश्रण पंचगव्य के नाम से जाना जाता है।
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पंच गंध :
चूर्ण किया हुआ, घिसा हुआ, दाह से खींचा हुआ, रस से मथा हुआ, प्राणी के अंग से पैदा हुआ ये पंच गंध है।
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पंचामृत :
दूध, दही, घी, चीनी (शकर), शहद का मिश्रण पंचामृत के नाम से जाना जाता है।
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पंचांग :
जिस पुस्तक या ता‍लिका में तिथि, वार, नक्षत्र, करण और योग को सम्मिलित रूप से दर्शाया जाता है उसे पंचांग कहते हैं।
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पंचमेवा :
काजू, बादाम, किशमिश, छुआरा, खोपरागिट पंचमेवा के नाम से जाने जाते हैं।

          

Friday, January 15, 2021

कर्म भोग क्या है ?

*🙏  कर्म भोग  क्या है 🙏*
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👰 पूर्व जन्मों के कर्मों  के आधार पर हमें इस जन्म में माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नि, प्रेमी-प्रेमिका, मित्र-शत्रु, सगे-सम्बन्धी इत्यादि संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, सब मिलते हैं ।
क्योंकि इन सबको हमें या तो कुछ देना होता है या इनसे कुछ लेना होता है । 
👲🧕  सन्तान के रुप में कौन आता है ? 👱‍♂👱‍♀
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🔷  सन्तान के रुप में हमारा कोई पूर्वजन्म का 'सम्बन्धी' ही आकर जन्म लेता है । जिसे शास्त्रों में चार प्रकार से बताया गया है --
🙆‍♂ #ऋणानुबन्ध -पूर्व जन्म का कोई ऐसा जीव जिससे आपने ऋण लिया हो या उसका किसी भी प्रकार से धन नष्ट किया हो, वह आपके घर में सन्तान बनकर जन्म लेगा और आपका धन बीमारी में या व्यर्थ के कार्यों में तब तक नष्ट करेगा, जब तक उसका हिसाब पूरा ना हो जाये ।
🤺 #शत्रुपुत्र  - पूर्व जन्म का कोई दुश्मन आपसे बदला लेने के लिये आपके घर में सन्तान बनकर आयेगा और बड़ा होने पर माता-पिता से मारपीट, झगड़ा या उन्हें सारी जिन्दगी किसी भी प्रकार से सताता ही रहेगा । हमेशा कड़वा बोलकर उनकी बेइज्जती करेगा व उन्हें दुःखी रखकर खुश होगा ।
🙅‍♂ #उदासीनपुत्र  - इस प्रकार की सन्तान ना तो माता-पिता की सेवा करती है और ना ही कोई सुख देती है । बस, उनको उनके हाल पर मरने के लिए छोड़ देती है । विवाह होने पर यह माता-पिता से अलग हो जाते हैं ।
🧘‍♂#सेवकपुत्र - पूर्व जन्म में यदि आपने किसी की खूब सेवा की है तो वह अपनी की हुई सेवा का ऋण उतारने के लिए आपका पुत्र या पुत्री बनकर आता है और आपकी सेवा करता है । जो  बोया है, वही तो काटोगे । अपने माँ-बाप की सेवा की है तो ही आपकी औलाद बुढ़ापे में आपकी सेवा करेगी, वर्ना कोई पानी पिलाने वाला भी पास नहीं होगा ।
👰 आप यह ना समझें कि यह सब बातें केवल मनुष्य पर ही लागू होती हैं । इन चार प्रकार में कोई सा भी जीव आ सकता है । जैसे आपने किसी गाय कि निःस्वार्थ भाव से सेवा की है तो वह भी पुत्र या पुत्री बनकर आ सकती है । यदि आपने गाय को स्वार्थ वश पालकर उसको दूध देना बन्द करने के पश्चात घर से निकाल दिया तो वह ऋणानुबन्ध पुत्र या पुत्री बनकर जन्म लेगी । यदि आपने किसी निरपराध जीव को सताया है तो वह आपके जीवन में शत्रु बनकर आयेगा और आपसे बदला लेगा ।
👰 इसलिये जीवन में कभी किसी का बुरा ना करें । क्योंकि प्रकृति का नियम है कि आप जो भी करोगे, उसे वह आपको इस जन्म में या अगले जन्म में सौ गुना वापिस करके देगी । यदि आपने किसी को एक रुपया दिया है तो समझो आपके खाते में सौ रुपये जमा हो गये हैं । यदि आपने किसी का एक रुपया छीना है तो समझो आपकी जमा राशि से सौ रुपये निकल गये । 
👰  ज़रा सोचिये, "आप कौन सा धन साथ लेकर आये थे और कितना साथ लेकर जाओगे ? जो चले गये, वो कितना धन दौलत साथ ले गये ? मरने पर जो सोना-चाँदी, धन-दौलत बैंक में पड़ा रह गया, समझो वो व्यर्थ ही कमाया । औलाद अगर अच्छी और लायक है तो उसके लिए कुछ भी छोड़कर जाने की जरुरत नहीं है, खुद ही खा-कमा लेगी और औलाद अगर बिगड़ी या नालायक है तो उसके लिए जितना मर्ज़ी धन छोड़कर जाओ, वह चंद दिनों में सब बरबाद करके ही चैन लेगी ।"
👰  मैं, मेरा, तेरा और सारा धन यहीं का यहीं धरा रह जायेगा, कुछ भी साथ नहीं जायेगा । साथ यदि कुछ जायेगा भी तो सिर्फ आप की अपनी नेकियाँ ही साथ जायेंगी । इसलिए जितना हो सके नेकी करें, सतकर्म करें ।🔥🌷💐🍁🙏🍁💐🌷🔥