Social Media

Thursday, August 20, 2020

रवि प्रदोष व्रत

 *रवि प्रदोष व्रत का फल*

भगवान शिव, माता पार्वती संग प्रत्यक्ष देवता सूर्य देव का आशीर्वाद दिलाने वाला रवि प्रदोष व्रत साधक को सुख-समृद्धि के साथ आरोग्य और लंबी आयु का आशीर्वाद दिलाने वाला है. इस व्रत को करने वाला व्यक्ति रोग-शोक आदि से मुक्त रहता है. दाम्पत्य सुख पाने के लिए भी ये व्रत अत्यंत शुभ माना जाता है.

*रवि प्रदोष व्रत की पूजन की विधि*

भगवान शिव और माता पार्वती के साथ सूर्य देव का आशीर्वाद पाने के लिए रविवार के दिन पड़ने वाली त्रयोदशी तिथि पर सूर्योदय से पहले यानी ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं. इसके बाद स्नान-ध्यान आदि करके उगते सूर्य को तांबे के पात्र में जल, रोली और अक्षत डालकर अर्घ्य दें. इसके बाद भगवान शिव और पार्वती का ध्यान करके इस व्रत को विधि-विधान से पूरा करने का संकल्प करें. पूरे दिन नियम और संयम के साथ व्रत करने के बाद शाम के समय एक बार फिर से स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें. स्नान के बाद भगवान शिव की बिल्ब पत्र, कमल या फिर दूसरे किसी पुष्प जो उपलब्ध हो और धतूरे के फल आदि के साथ पूजा करें. भगवान शिव संग माता पार्वती की पूजा करना बिल्कुल न भूलें. पूजन के बाद रुद्राक्ष की माला से 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र का कम से कम एक माला जप करें. पूजन के बाद भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करके सभी को प्रसाद बांटें. किसी ब्राह्मण को अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन और दक्षिणा आदि का दान दें

*क्या करे रवि प्रदोष व्रत के दिन*

👉प्रदोष व्रत की शाम शनिदेव को अपराजिता का नीले रंग का फूल चढ़ाएं. मान्यता के अनुसार यह उपाय सभी समस्याओं का अंत कर देता है. यह फूल शनिदेव को पसंद है, इसलिए इसे अर्पित करने से शनिदेव के प्रसन्न होने की मान्यता है.

👉इस व्रत में दिन ढल जाने पर अपराजिता का फूल अपने हाथ में लेकर शनिदेव से अपनी परेशानी बताएं. फिर उस फूल को बहते पानी में बहा दें. अगर पानी में बहा न सकें तो मिट्टी में उस फूल को दबा दें. यह बहुत प्रभावशाली उपाय माना जा

👉प्रदोष व्रत की शाम काली गाय को या काले कुत्ते को रोटी खिलाएं. अगर काला कुत्ता न मिले तो किसी भी कुत्ते को रोटी खिलाई जा सकती है. इससे भी संकट से मुक्ति की मान्यता है.

👉इस दिन बरगद के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं वहां बैठकर शनिदेव के मंत्र ‘ओम प्रां प्रीं प्रों सः शनिचराय नमः’ या फिर ‘ओम शं शनैश्चराय नमः का जाप करें.’

👉प्रदोष व्रत की शाम शनिदेव की प्रतिमा के समक्ष बैठकर सुंदरकांड का पाठ करें. पाठ करने के बाद “नीलांजन समाभासं रवि पुत्रां यमाग्रजं। छाया मार्तण्डसंभूतं तं नामामि शनैश्चरम्।।” मंत्र का जाप करें.

👉प्रदोष व्रत की रात को किए गए उपायों से शनिदेव बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं, इस रात बरगद के पेड़ की जड़ के पास चौमुखा दीपक जलाने से भगवान शनिदेव अपनी कृपा बनाए रखते हैं, इससे साढ़ेसाती और ढैय्या के दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है.

👉प्रदोष व्रत की शाम कुष्ठरोगियों को काली वस्तुओं का दान करें. काली वस्तुओं में काला कपड़ा, काला बैग, काली चप्पल, काली घड़ी या काले गमछे का दान दिया जा सकता है, इसके अलावा काली मिठाई या पेय पदार्थ भी दान किया जा सकता है.

*📖रवि प्रदोष कथा📖*

✍एक गांव में अति दीन ब्राह्मण निवास करता था। उसकी साध्वी स्त्री प्रदोष व्रत किया  करती थी। उसे एक ही पुत्ररत्न था। एक समय की बात है, वह पुत्र गंगा स्नान करने के  लिए गया। दुर्भाग्यवश मार्ग में चोरों ने उसे घेर लिया और वे कहने लगे कि हम तुम्हें  मारेंगे नहीं, तुम अपने पिता के गुप्त धन के बारे में हमें बतला दो। 

बालक दीनभाव से कहने लगा कि बंधुओं! हम अत्यंत दु:खी दीन हैं। हमारे पास धन कहां  है? 

तब चोरों ने कहा कि तेरे इस पोटली में क्या बंधा है? 

बालक ने नि:संकोच कहा कि मेरी मां ने मेरे लिए रोटियां दी हैं।

यह सुनकर चोरों ने अपने साथियों से कहा कि साथियों! यह बहुत ही दीन-दु:खी मनुष्य है  अत: हम किसी और को लूटेंगे। इतना कहकर चोरों ने उस बालक को जाने दिया। 

बालक वहां से चलते हुए एक नगर में पहुंचा। नगर के पास एक बरगद का पेड़ था। वह  बालक उसी बरगद के वृक्ष की छाया में सो गया। उसी समय उस नगर के सिपाही चोरों को  खोजते हुए उस बरगद के वृक्ष के पास पहुंचे और बालक को चोर समझकर बंदी बना राजा  के पास ले गए। राजा ने उसे कारावास में बंद करने का आदेश दिया। 

ब्राह्मणी का लड़का जब घर नहीं लौटा, तब उसे अपने पुत्र की बड़ी चिंता हुई। अगले दिन  प्रदोष व्रत था। ब्राह्मणी ने प्रदोष व्रत किया और भगवान शंकर से मन-ही-मन अपने पुत्र  की कुशलता की प्रार्थना करने लगी। 

भगवान शंकर ने उस ब्राह्मणी की प्रार्थना स्वीकार कर ली। उसी रात भगवान शंकर ने उस  राजा को स्वप्न में आदेश दिया कि वह बालक चोर नहीं है, उसे प्रात:काल छोड़ दें अन्यथा  उसका सारा राज्य-वैभव नष्ट हो जाएगा। 

प्रात:काल राजा ने शिवजी की आज्ञानुसार उस बालक को कारावास से मुक्त कर दिया।  बालक ने अपनी सारी कहानी राजा को सुनाई। 

सारा वृत्तांत सुनकर राजा ने अपने सिपाहियों को उस बालक के घर भेजा और उसके  माता-पिता को राजदरबार में बुलाया। उसके माता-पिता बहुत ही भयभीत थे। राजा ने उन्हें  भयभीत देखकर कहा कि आप भयभीत न हो। आपका बालक निर्दोष है। राजा ने ब्राह्मण  को 5 गांव दान में दिए जिससे कि वे सुखपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर सकें। भगवान  शिव की कृपा से ब्राह्मण परिवार आनंद से रहने लगा। 

*अत:-* जो भी मनुष्य रवि प्रदोष व्रत को करता है, वह सुखपूर्वक और निरोगी होकर अपना पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।


        

No comments:

Post a Comment