🔱🚩"दुर्लभ महत्वपूर्ण सम्मोहन साधना विधान "🚩🔱
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साधना एक अलग प्रकार है । साधना का तात्पर्य है कि सन्नद्ध हाे जाना, तैयार हाे जाना स्पस्ट हाे जाना । साधना का तात्पर्य है कि मैं प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार से सक्षम हूं, तैयार हूं, मैं प्राप्त करना चाहता हूं, और जाे यह भाव जो मन में ले लेता है, वह साधना पथ पर पहला पग रखता है । जिसकाे हम प्राप्त करने की इच्छा या आकांक्षा रखते हैं, उसके प्रति तीव्र वेग से बढने की क्रिया काे साधना कहा जाता है , उसका लक्ष्य केवल यही हाेता है कि उसे प्राप्त करके ही रहूं , वह चाहे महालक्ष्मी हाे, वह चाहे महाकाली हाे, वह चाहे तारा हाे, छिन्नमस्ता हाे , शंकर हाे, ब्रह्मा हाे, विष्णु हाे, रूद्र हाे, काेई देवी हाे , काेई देवता हाे, काेई पितर हाे , काेई मनुस्य हाे, जिसकाे भी आप प्राप्त करने के लिये पूर्णता के साथ प्रयत्नशील हैं, उसे साधना कहा जाता है ।
और साधना विचाराें से नहीं होती ,साधना ताे तन और मन से जीवन मे तीव्रता के साथ तीव्र गति से आगे बढने की क्रिया है । जिसमें मन तीर की गति से आगे बढता है, अपने लक्ष्य पर पंहुचने के लिए झपटता है, किसी भी प्रकार से उसकाे प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है, मन की इस गति काे चेतना देने का काम शरीर करता है, शरीर अपने- आप में कमजाेर है...... अगर कोई भाव नहीं है, कोई आकांक्षा नहीं है , ताे मन उतनी द्रुत गति से आगे नहीं बढ् सकेगा ।
मन काे ताे आधार चाहिये आगे बढ्ने के लिए, तीर तभी ताे अपने लक्ष्य पर पहुंचेगा जब धनुष हाेगा ,जब धनुष ही नहीं है ताे तीर चल भी नहीं सकता । यदि लक्ष्य पर तीर काे पहुंचना ही है ताे फिर धनुष की प्रत्यंचा तनी हूई, कसी हुई हाेनी चाहीए, यदि मनकाे पूर्णता का साथ बढाना है लक्ष्य की ओर तीर की तरह तीव्र गति से , ताे शरीर संतुलित निश्चिंत और स्पष्ट हाेना ही चाहीए ।
इस प्रकार शरीर काे साधने की क्रिया का नाम साधना है । इस प्रकार मन काे साधने की क्रिया का नाम साधना है । इस जीवन काे पूर्णता के साथ अपने नियंत्रण में लेने की क्रिया का नाम साधना है ।
साधना के प्रकार क्या हैं ? तरीका क्या है ? मंत्र-जप क्या है ? देवता क्या है ? अनुष्ठान क्या है ? यह सब ताे अागे कि बात है । पहली और प्रधान बात ताे यह है की हम पूर्णरूप से साधक हाें , अाैर पूर्ण रूप से साधक हाेने के लिए जरूरी है कि यह शरीर अपने-अाप में सधा हुअा हाे । " शरीरं साधयति स: साधक: " जाे शरीर पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है । जाे मन पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है । शरीर पर नियंत्रणा प्राप्त करने का तात्पर्य , आसन पर स्थिर चित्त से बैठना है । स्थिरता से बैठना है । एक घन्टा , दाे घन्टा , चार घन्टा , छः घन्टा , अाठ घन्टा बिना हिडे-डुले, निश्चिंत , निर्भिक , निष्कंप .......और साधना की जाे विधि हाे , जाे तरीका हाे उसका पालन करने के लिए शरीर सक्षम हाे , जितना मंत्र-जप कारने का विधान हाे
उतना मंत्र जप करे ही , उससे पहले शरीर शिथिल न हाे , थकावट से न भर जाए , आलस्य से न भर जाए , प्रमाद से न भर जाए , जब ऐसी स्थिति आती है ताे शरीर सधता है, और जब शरीर सधता है ताे उसके साथ ही मन काे भी साधना चाहीये , क्याेंकि शरीर काे ताे हट पूर्वक नियंत्रण में ताे कर सकते हैं, कष्ट या पिडा काे भी भाेग सकते है , इसके लिये मन पर नियंत्रण पाना ताे बहुत जरूरी है ।
🍁विविध शास्त्रों में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि साधक के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह संस्कृत का भली प्रकार से उच्चारण करना जानता हो लंबे चौड़े विधि-विधान या पूजा पाठ की भी आवश्यकता नहीं है साधना की पूर्ण सफलता के लिए तो यह जरूरी है कि साधक मन में यह दृढ़ निश्चय कर लें कि मुझे अपने जीवन को संभालना है मुझे अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करनी ही है और .....मैं समाज में तथा देश में उन्नति के शिखर पर पहुंचकर पूर्णता प्राप्त करके ही रहूंगा इसके साथ ही साथ जिस प्रकार से प्रयोग या विधि बताई गई है उस प्रकार से यदि वह प्रयोग संपन्न करता है तो निश्चित ही उसे अनुकूलता सफलता प्राप्त होती ही है निश्चित ही उसे जीवन में पूर्ण रूप से सिद्धि प्राप्त होती ही है और वह इस प्रकार के जीवन के दुख दरिद्रता बाधाएं और परेशानियों को दूर करने में सफल हो पाता है तथा जीवन में यह सब कुछ प्राप्त कर लेता है जो उसके जीवन का लक्ष्य होता है जो उसके जीवन का उद्देश्य होता है...
🍁यदि सही रूप से देखा जाए तो हमारा अब तक का बीता हुआ जीवन परेशानियों बाधाओं अड़चनों और कठिनाइयों से भरा हुआ है हमें जीवन में कुछ सुख मिलना चाहिए था वह हमें नहीं मिल पाया हम जीवन में जो कुछ हम जीवन में जो कुछ आनंद लेना चाहते थे वह आनंद नहीं ले पाए और हम पद के लिए धन के लिए और प्रभुता के लिए बराबर परेशान होते रहे झगड़ते रहे जरूरत से ज्यादा परिश्रम करते रहे परंतु हमें जो अनुकूलता फल प्राप्त होना चाहिए था वह प्राप्त नहीं हो पाया इसका कारण यह है कि व्यक्ति उन्नति तभी कर सकता है जब उसके पास दैविक शक्ति हो दैविक शक्ति की सहायता से ही व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण उन्नति एवं सफलता प्राप्त कर सकता है
🍁महाभारत काल में भी जब अर्जुन को युद्ध में विजय प्राप्त करने की इच्छा हुई तो भगवान श्री कृष्ण ने उसे यही सलाह दी कि बिना दिव्य अस्त्रों के युद्ध में विजय प्राप्त करना असंभव है इसलिए यह जरूरी है कि पहले तो तुम शिव और इंद्र की आराधना करो उनसे दैविक अस्त्र प्राप्त करो और ऐसा होने पर ही तुम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्व सफलता प्राप्त कर सकते हो युद्ध को जीत सकते हो
🍁और हम जीवन के इस युद्ध में लड़ते रहे हैं परंतु जिस प्रकार से विजय होनी चाहिए उस प्रकार से विजय या सफलता या लाभ हमें नहीं मिल पा रहा है क्योंकि यह जीवन का युद्ध केवल हम अपने बाहुबल से ही लड़ रहे हैं जबकि हमारे पास दैविक शक्ति साधना शक्ति होनी चाहिए यदि हम दैविक शक्ति को प्राप्त कर लेते हैं तो निश्चय ही जीवन में सफलता पा जाना सरल, ज्यादा अनुकूल और ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है और ऐसा करने पर ही संपूर्ण जीवन में जगमगाहट प्राप्त हो सकती है l
🍁साधना जीवन का आवश्यक तत्व है बिना इसके जीवन में प्रगति श्रेष्ठता और सफलता संभव नहीं है यह सब कुछ संभव है संयम से धैर्य से निष्ठा से और पूर्ण समर्पण विश्वास से इस बार इन्हीं तथ्यों को आधार बनाकर कोई भी साधना करिए और आप स्वयं देख लीजिए कि इस पत्रिका के प्रत्येक लेख और सुझाव कितने अमूल्य हैं
🍁यह पत्रिका नहीं कलयुग की श्रीमदभगवदगीता हैं, जिसका एक-एक पन्ना आने वाले समय के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर हैं, उच्चता तक ले जाने की सीढ़ी है l इसलिए इस श्रेष्ठतम पत्रिका का प्रकाशन किया गया जिससे इसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को, पूर्वजों के साहित्य को, जो लुप्त होता जा रहा हैं, जो समाप्त होता जा रहा हैं, उसे सुरक्षित कर सकें, क्योंकि कुछ समय और बीत गया, तो हम इन मंत्रों के, तंत्रों के बारे में कुछ जान ही नहीं सकेंगे! उन सबको सुरक्षित रखने के लिए इन साधनात्मक ग्रंथों और पत्रिकाओं का प्रकाशन किया....चिंतन तो इस बात के लिए हैं कि हम पूर्वजों की थाती को, पूर्वजों के ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
🍁और पिछले 40 वर्षों से ✅ साधनात्मक ग्रंथों और पत्रिकाओं का प्रकाशन इस बात का प्रमाण हैं कि आज भी समाज में चेतना हैं, जो इस प्रकार का ज्ञान चाहती हैं! अगर नहीं चाहती, तो पत्रिका कभी भी बंद हो चुकी होती! वर्तमान समय में आज भी ऐसे व्यक्ति हैं जो इस प्रकार की साधनाओं के लिए लालायित हैं, उनको इस प्रकार की साधनाएं देने के लिए, वे समयानुसार किस प्रकार की साधनाएं करें , उनको मार्गदर्शन देने के लिए ही इस पत्रिका का प्रकाशन किया गया हैं!
जीवन में मंत्र-तंत्र-यंत्र का परस्पर सम्बन्ध हैं, इनके द्वारा ही जीवन ऊपर की और उठ सकता हैं! पत्रिका का प्रकाशन ही इसलिए किया हैं.... कोई आवश्यकता नहीं थी, मगर आवश्यकता इस बात की थी कि इस समय सारा संसार भौतिक बंधनों में बंधा हुआ हैं, और बन्धनों में बंधने के कारन व्यक्ति अन्दर से छटपटाता रहता हैं, वह चाहता हैं मैं मुक्त हवा में साँस ले सकूँ, मैं कुछ आगे बढ़ सकूँ, मैं जीवन में बहुत कुछ कर सकूँ..... मगर इसके लिए कोई रास्ता नहीं हैं, उसको कोई समझाने वाला नहीं हैं!
ऐसी स्थिति में पत्रिका का प्रकाशन किया गया और इस पत्रिका में मंत्र-तंत्र और यंत्र तीनों का समन्वय किया गया हैं! इसमें उच्चकोटि के मंत्रों का चिंतन दिया गया हैं! यह पत्रिका केवल कागज के कोरे पन्ने नहीं हैं! यदि बाजार से कागजों का एक बण्डल लाया जायें, तो वह सौ रूपये में प्राप्त हो सकता हैं, मगर जब उन कागजों पर उच्चकोटि के मंत्र और साधना विधियां लिख दी जाती हैं, तो वह पुस्तक अमूल्य हो जाती हैं! ज्ञान को मूल्य के तराजू में नहीं तौला जा सकता, ज्ञान को इस बात से भी नहीं देखा जाता हैं कि इस पत्रिका का मूल्य पांच रूपये या पच्चीस रूपये हैं, ज्ञान का मूल्य तो अनन्त होता हैं!
इसलिए हमने इस श्रेष्ठतम पत्रिका का प्रकाशन किया! इसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को, पूर्वजों के साहित्य को, जो लुप्त होता जा रहा हैं, जो समाप्त होता जा रहा हैं, उसे सुरक्षित कर सकें, क्योंकि कुछ समय और बीत गया, तो हम इन मंत्रों के, तंत्रों के बारे में कुछ जान ही नहीं सकेंगे! उन सबको सुरक्षित रखने के लिए इस पत्रिका का प्रकाशन किया...... इसके पीछे कोई व्यापर की आकांक्षा और इच्छा नहीं हैं, इसके पीछे जीवन का कोई ऐसा चिंतन नहीं हैं कि इसके माध्यम से धनोपार्जन किया जायें, चिंतन तो इस बात के लिए हैं कि हम पूर्वजों की थाती को, पूर्वजों के ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
और पिछले कई वर्षों से इस पत्रिका का प्रकाशन इस बात का प्रमाण हैं कि आज भी समाज में चेतना हैं, जो इस प्रकार का ज्ञान चाहती हैं! अगर नहीं चाहती, तो पत्रिका कभी भी बंद हो चुकी होती! ऐसे व्यक्ति हैं जो इस प्रकार की साधनाओं के लिए लालायित हैं, उनको इस प्रकार की साधनाएं देने के लिए, वे समयानुसार किस प्रकार की साधनाएं करें , उनको मार्गदर्शन देने के लिए ही इस पत्रिका का प्रकाशन किया गया हैं!
और सही कहूँ तो यह पत्रिका नहीं कलयुग की श्रीमदभगवदगीता हैं, जिसका एक-एक पन्ना आने वाले समय के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर हैं, उच्चता तक ले जाने की सीढ़ी हैं!
🍁पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रदान की गई अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार गुरुधाम जोधपुर से प्रकाशित पत्रिकाओं और ग्रंथों में ऐसी ही साधनाएं दी गई हैं जिन्हें सामान्य गृहस्थ स्त्री-पुरुष कोई भी संपन्न कर सकता है जिसमें उन्हें ना बहुत अधिक विधि-विधान की जरूरत है और ना ही विद्वता की l सामान्य सामग्री के माध्यम से भी पुस्तकों में वर्णित साधना करके वे अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं इन साधनात्मक ग्रंथों और पत्रिकाओं में ऐसी ही साधना विधियां दी गई हैं जो सामान्य साधकों एवं गृहस्थ स्त्री-पुरुषों के लिए सरल हैं शुगम है और जन सामान्य के लिए बहुत उपयोगी हैं
गुरुधाम अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार जोधपुर से प्रकाशित पत्रिकाएं है -:👇👇👇
🕉 🚩मंत्र - तंत्र -यंत्र विज्ञान पत्रिका के परिवर्तित नाम 🚩🕉
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जिसकी आप वार्षिक सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं जिसके प्रेरक एवं संस्थापक पूज्य सदगुरुदेव डॉ0 नारायण दत्त श्रीमाली जी संन्यस्त नाम (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद) जी हैं 🙏
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HD Print मे वर्ष 1981 से वर्ष 2010 तक का दुर्लभ पत्रिकाओं का संग्रह नीचे दी गई लिंक में उपलब्ध है शीघ्र ही शेष पत्रिकाएं भी इसी लिंक में उपलब्ध कराई जाएंगी ✅
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🕉 विश्व की अद्वितीय दुर्लभ साधनाएं,भाग 1-2 🕉
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मंत्र तंत्र यंत्र तो भगवान शिव द्वारा रचित शुद्ध विज्ञान है .... यदि हमें अपने राष्ट्र की रक्षा करना है जीवन में आनंद प्राप्त करना हैं, अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करना है सभी रोगों से मुक्त होना हैं, आर्थिक रूप से समृद्ध होना है शक्ति संपन्न होना है तो हमें इन साधनाओ और शक्तिशाली मंत्रों का समन्वय करना ही होगा!" 🚩
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