उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा
मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी
सूतजी कहने लगे- हे ऋषियों! इस व्रत का वृत्तांत और उत्पत्ति प्राचीनकाल में भगवान कृष्ण ने अपने परम भक्त युधिष्ठिर से कही थी। वही मैं तुमसे कहता हूँ।
एक समय युधिष्ठिर ने भगवान से पूछा था कि एकादशी व्रत किस विधि से किया जाता है और उसका क्या फल प्राप्त होता है। उपवास के दिन जो क्रिया की जाती है आप कृपा करके मुझसे कहिए। यह वचन सुनकर श्रीकृष्ण कहने लगे- हे युधिष्ठिर! मैं तुमसे एकादशी के व्रत का माहात्म्य कहता हूँ। सुनो।
सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी से इस व्रत को प्रारंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुँह में रह न जाए। रात्रि को भोजन कदापि न करें, न अधिक बोलें। एकादशी के दिन प्रात: 4 बजे उठकर सबसे पहले व्रत का संकल्प करें। इसके पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। व्रत करने वाला चोर, पाखंडी, परस्त्रीगामी, निंदक, मिथ्याभाषी तथा किसी भी प्रकार के पापी से बात न करे।
स्नान के पश्चात धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान का पूजन करें और रात को दीपदान करें। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। सारी रात भजन-कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनकी क्षमा माँगनी चाहिए। धर्मात्मा पुरुषों को कृष्ण और शुक्ल दोनों पक्षों की एकादशियों को समान समझना चाहिए।
जो मनुष्य ऊपर लिखी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत करते हैं, उन्हें शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है, वह एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के भी समान नहीं है। व्यतिपात के दिन दान देने का लाख गुना फल होता है। संक्रांति से चार लाख गुना तथा सूर्य-चंद्र ग्रहण में स्नान-दान से जो पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य एकादशी के दिन व्रत करने से मिलता है।
अश्वमेध यज्ञ करने से सौ गुना तथा एक लाख तपस्वियों को साठ वर्ष तक भोजन कराने से दस गुना, दस ब्राह्मणों अथवा सौ ब्रह्मचारियों को भोजन कराने से हजार गुना पुण्य भूमिदान करने से होता है। उससे हजार गुना पुण्य कन्यादान से प्राप्त होता है। इससे भी दस गुना पुण्य विद्यादान करने से होता है। विद्यादान से दस गुना पुण्य भूखे को भोजन कराने से होता है। अन्नदान के समान इस संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं जिससे देवता और पितर दोनों तृप्त होते हों परंतु एकादशी के व्रत का पुण्य सबसे अधिक होता है।
हजार यज्ञों से भी अधिक इसका फल होता है। इस व्रत का प्रभाव देवताओं को भी दुर्लभ है। रात्रि को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल मिलता है और दिन में एक बार भोजन करने वाले को भी आधा ही फल प्राप्त होता है। जबकि निर्जल व्रत रखने वाले का माहात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते।
युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवन! आपने हजारों यज्ञ और लाख गौदान को भी एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया। सो यह तिथि सब तिथियों से उत्तम कैसे हुई, बताइए।
भगवन कहने लगे- हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नाम का दैत्य उत्पन्न हुआ। वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र, आदित्य, वसु, वायु, अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव से सारा वृत्तांत कहा और बोले हे कैलाशपति! मुर दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्यु लोक में फिर रहे हैं। तब भगवान शिव ने कहा- हे देवताओं! तीनों लोकों के स्वामी, भक्तों के दु:खों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ।
वे ही तुम्हारे दु:खों को दूर कर सकते हैं। शिवजी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीरसागर में पहुँचे। वहाँ भगवान को शयन करते देख हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगेकि हे देवताओं द्वारा स्तुति करने योग्य प्रभो! आपको बारम्बार नमस्कार है, देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन! आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आपकी शरण में आए हैं।
आप इस संसार के कर्ता, माता-पिता, उत्पत्ति और पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं। सबको शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश और पाताल भी आप ही हैं। सबके पितामह ब्रह्मा, सूर्य, चंद्र, अग्नि, सामग्री, होम, आहुति, मंत्र, तंत्र, जप, यजमान, यज्ञ, कर्म, कर्ता, भोक्ता भी आप ही हैं। आप सर्वव्यापक हैं। आपके सिवा तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है।
हे भगवन्! दैत्यों ने हमको जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है और हम सब देवता इधर-उधर भागे-भागे फिर रहे हैं, आप उन दैत्यों से हम सबकी रक्षा करें।
इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे कि हे इंद्र! ऐसा मायावी दैत्य कौन है जिसने सब देवताअओं को जीत लिया है, उसका नाम क्या है, उसमें कितना बल है और किसके आश्रय में है तथा उसका स्थान कहाँ है? यह सब मुझसे कहो।
भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले- भगवन! प्राचीन समय में एक नाड़ीजंघ नामक राक्षस थ उसके महापराक्रमी और लोकविख्यात मुर नाम का एक पुत्र हुआ। उसकी चंद्रावती नाम की नगरी है। उसी ने सब देवताअओं को स्वर्ग से निकालकर वहाँ अपना अधिकार जमा लिया है। उसने इंद्र, अग्नि, वरुण, यम, वायु, ईश, चंद्रमा, नैऋत आदि सबके स्थान पर अधिकार कर लिया है।
सूर्य बनकर स्वयं ही प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है और सबसे अजेय है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मारकर देवताओं को अजेय बनाइए।
यह वचन सुनकर भगवान ने कहा- हे देवताओं, मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगरी जाओ। इस प्रकार कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगरी की ओर प्रस्थान किया। उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी भयानक गर्जना सुनकर सभी देवता भय के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे। जब स्वयं भगवान रणभूमि में आए तो दैत्य उन पर भी अस्त्र, शस्त्र, आयुध लेकर दौड़े।
भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से बींध डाला। बहुत-से दैत्य मारे गए। केवल मुर बचा रहा। वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जो-जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध होता। उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा। दोनों के बीच मल्लयुद्ध भी हुआ।
10 हजार वर्ष तक उनका युद्ध चलता रहा किंतु मुर नहीं हारा। थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी, उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी और उसका एक ही द्वार था। विष्णु भगवान वहां योगनिद्रा की गोद में सो गए।
मुर भी पीछे-पीछे आ गया और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्यत हुआ तभी भगवान के शरीर से उज्ज्वल, कांतिमय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा, युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया।
श्री हरि जब योगनिद्रा की गोद से उठे, तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है, अत: आप उत्पन्ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। आपके भक्त वही होंगे, जो मेरे भक्त हैं।
" ADHYATMIK GYAAN-आध्यात्मिक ज्ञान -हिन्दू धर्म के नीति नियम और शास्त्रों के बारे में जानने के लिए आपका मेरे ब्लॉग में स्वागत है "
Thursday, December 10, 2020
Wednesday, December 9, 2020
जप माला का संस्कार प्राण प्रतिष्ठान विधान
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कोई भी जप , साधना या अनुष्ठान में माला की जरुरत होती है ! प्रायः जनसाधारण बाजार से माला खरीदकर उसी से जप आरम्भ कर देते है ! ऐसी माला से जप करना निरर्थक व निषिद्ध है क्योंकि उससे कोई लाभ या सिद्धि सम्भव नहीं है ! सर्वप्रथम माला क्रय करने के बाद विधवत उसके संस्कार करना चाहिए अन्यथा जप निष्फल है !
अधिकतम माला संस्कार की विधि जो प्राप्त होती है उसमें कुछ न कुछ कमी अवश्य रहती है जैसे संस्कार दिया है तो प्राणप्रतिष्ठा नहीं होती , आज आप सब के लाभार्थ मैं माला संस्कार की संपूर्ण विधि पर प्रकाश डाल रहा हु आशा करता हु की साधक भाई - बहनो के कुछ काम आ जाये !
🏵 व्यावहारिक विधि 🏵
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साधक सर्वप्रथम स्नान आदि से शुद्ध हो कर अपने पूजा गृह में पूर्व या उत्तर की ओर मुह कर आसन पर बैठ जाए अब सर्व प्रथम आचमन - पवित्रीकरण करने के बाद गणेश गुरु तथा अपने इष्ट देव/ देवी का पूजन सम्पन्न कर ले तत्पश्चात पीपल के 09 पत्तो को भूमि पर अष्टदल कमल की भाती बिछा ले ! एक पत्ता मध्य में तथा शेष आठ पत्ते आठ दिशाओ में रखने से अष्टदल कमल बनेगा ! इन पत्तो के ऊपर आप माला को रख दे ! अब अपने समक्ष पंचगव्य तैयार कर के रख ले किसी पात्र में और उससे माला को प्रक्षालित ( धोये )
करे ! आप सोचे-गे कि पंचगव्य क्या है ? तो जान ले गाय
का दूध , दही , घी , गोमूत्र , गोबर यह पांच चीज
गौ का ही हो उसको पंचगव्य कहते है ! पंचगव्य से
माला को स्नान करना है - स्नान करते हुए अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन का उच्चारण करे ! फिर
समस्य़ा हो गयी यहाँ कि यह अं आं इत्यादि सं हं पर्यन्त समस्त स्वर वयंजन क्या है ?
तो नोट कर ले - ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं
ऋृं लृं लॄं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङं चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं !!
यह उच्चारण करते हुए माला को पंचगव्य से धो ले ध्यान रखे इन समस्त स्वर का अनुनासिक उच्चारण होगा !
माला को पंचगव्य से स्नान कराने के बाद निम्न मंत्र बोलते हुए माला को जल से धो ले
🚩ॐ सद्यो जातं प्रद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः
भवे भवे नाति भवे भवस्य मां भवोद्भवाय नमः !!🚩
अब माला को साफ़ वस्त्र से पोछे और निम्न मंत्र बोलते हुए माला के प्रत्येक मनके पर चन्दन कुमकुम आदि का तिलक करे
ॐ वामदेवाय नमः जयेष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः कल विकरणाय नमो बलविकरणाय नमः !
बलाय नमो बल प्रमथनाय नमः सर्वभूत दमनाय नमो मनोनमनाय नमः !!
अब धूप जला कर माला को धूपित करे और मंत्र बोले✍
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ॐ अघोरेभ्योथघोरेभ्यो घोर घोर तरेभ्य: सर्वेभ्य: सर्व
शर्वेभया नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्य:
अब माला को अपने हाथ में लेकर दाए हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र का १०८ बार जप कर उसको अभिमंत्रित करे -
ॐ ईशानः सर्व विद्यानमीश्वर सर्वभूतानाम
ब्रह्माधिपति ब्रह्मणो अधिपति ब्रह्मा शिवो मे अस्तु
सदा शिवोम !!
अब साधक माला की प्राण - प्रतिष्ठा हेतु अपने दाय हाथ में जल लेकर विनियोग करे -
ॐ अस्य श्री प्राण प्रतिष्ठा मंत्रस्य ब्रह्मा विष्णु रुद्रा ऋषय: ऋग्यजु:सामानि छन्दांसि प्राणशक्तिदेवता आं बीजं
ह्रीं शक्ति क्रों कीलकम अस्मिन माले प्राणप्रतिष्ठापने
विनियोगः !!
अब माला को बाय हाथ में लेकर दाय हाथ से ढक ले और निम्न मंत्र बोलते हुए ऐसी भावना करे कि यह माला पूर्ण चैतन्य व शक्ति संपन्न हो रही है !✍
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ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं सः ह्रीं ॐ आं
ह्रीं क्रों अस्य मालाम प्राणा इह प्राणाः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं
लं वं शं षं सं हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य
मालाम जीव इह स्थितः ! ॐ आं ह्रीं क्रों यं रं लं वं शं षं सं
हों ॐ क्षं सं हं सः ह्रीं ॐ आं ह्रीं क्रों अस्य मालाम
सर्वेन्द्रयाणी वाङ् मनसत्वक चक्षुः श्रोत्र जिह्वा घ्राण
प्राणा इहागत्य इहैव सुखं तिष्ठन्तु स्वाहा !
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ॐ मनो जूतिजुर्षतामाज्यस्य बृहस्पतिरयज्ञमिमन्तनो त्वरिष्टं यज्ञं समिमं दधातु विश्वे देवास इह मादयन्ताम् ॐ प्रतिष्ठ !!
अब माला को अपने मस्तक से लगा कर पूरे सम्मान सहित स्थान दे ! इतने संस्कार करने के बाद माला जप करने योग्य शुद्ध तथा सिद्धिदायक होती है !
नित्य जप करने से पूर्व माला का संक्षिप्त पूजन निम्न मंत्र से करने के उपरान्त जप प्रारम्भ करे -
ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देहि देहि सर्व मंत्रार्थ
साधिनी साधय-साधय सर्व सिद्धिं परिकल्पय मे स्वाहा ! ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः !
जप करते समय माला पर किसी कि दृष्टि नहीं पड़नी चाहिए ! गोमुख रूपी थैली ( गोमुखी ) में माला रखकर इसी थैले में हाथ डालकर जप किया जाना चाहिए अथवा वस्त्र आदि से माला आच्छादित कर ले अन्यथा जप निष्फल होता है !
आशा करता हु अब आप जब भी माला बाजार से ख़रीदेगे तो उपरोक्त विधान अनुसार संस्कार अवश्य करेगे !
जय जय सद्गुरु देव ।
https://youtu.be/BB5GHfq9-h8
माला संस्कर विधि का वीडियो
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Saturday, December 5, 2020
शिव तांडव स्तोत्र की पौराणिक मान्यता
शिव तांडव स्त्रोत की पौराणिक मान्यता ।
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कुबेर व रावण दोनों ऋषि विश्रवा की संतान थे और दोनों सौतेले भाई थे। ऋषि विश्रवा ने सोने की लंका का राज्य कुबेर को दिया था लेकिन किसी कारणवश अपने पिता के कहने पर वे लंका का त्याग कर हिमाचल चले गए।
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कुबेर के चले जाने के बाद इससे दशानन बहुत प्रसन्न हुआ। वह लंका का राजा बन गया और लंका का राज्य प्राप्त करते ही धीरे-धीरे वह इतना अहंकारी होगया कि उसने साधुजनों पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने शुरू कर दिए।
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जब दशानन के इन अत्याचारों की ख़बर कुबेर को लगी तो उन्होंने अपने भाई को समझाने के लिए एक दूत भेजा, जिसने कुबेर के कहे अनुसार दशानन को सत्य पथ पर चलने की सलाह दी। कुबेर की सलाह सुन दशानन को इतना क्रोध आया कि उसने उस दूत को बंदी बना लिया व क्रोध के मारे तुरन्त अपनी तलवार से उसकी हत्या कर दी।
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कुबरे की सलाह से दशानन इतना क्रोधित हुआ कि दूत की हत्या के साथ ही अपनी सेना लेकर कुबेर की नगरी अलकापुरी को जीतने निकल पड़ा और कुबेर की नगरी को तहस-नहस करने के बाद अपने भाई कुबेर पर गदा का प्रहार कर उसे भी घायल कर दिया लेकिन कुबेर के सेनापतियों ने किसी तरह से कुबेर को नंदनवन पहुँचा दिया जहाँ वैद्यों ने उसका इलाज कर उसे ठीक किया।
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चूंकि दशानन ने कुबेर की नगरी व उसके पुष्पक विमान पर भी अपना अधिकार कर लिया था, सो एक दिन पुष्पक विमान में सवार होकर शारवन की तरफ चल पड़ा। लेकिन एक पर्वत के पास से गुजरते हुए उसके पुष्पक विमान की गति स्वयं ही धीमी हो गई।
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चूंकि पुष्पक विमान की ये विशेषता थी कि वह चालक की इच्छानुसार चलता था तथा उसकी गति मन की गति से भी तेज थी, इसलिए जब पुष्पक विमान की गति मंद हो गर्इ तो दशानन को बडा आश्चर्य हुआ। तभी उसकी दृष्टि सामने खडे विशाल और काले शरीर वाले नंदीश्वर पर पडी। नंदीश्वर ने दशानन को चेताया कि-
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यहाँ भगवान शंकर क्रीड़ा में मग्न हैं इसलिए तुम लौट जाओ.
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लेकिन दशानन कुबेर पर विजय पाकर इतना दंभी होगया था कि वह किसी कि सुनने तक को तैयार नहीं था। उसे उसने कहा कि-
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कौन है ये शंकर और किस अधिकार से वह यहाँ क्रीड़ा करता है? मैं उस पर्वत का नामो-निशान ही मिटा दूँगा, जिसने मेरे विमान की गति अवरूद्ध की है।
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इतना कहते हुए उसने पर्वत की नींव पर हाथ लगाकर उसे उठाना चाहा। अचानक इस विघ्न से शंकर भगवान विचलित हुए और वहीं बैठे-बैठे अपने पाँव के अंगूठे से उस पर्वत को दबा दिया ताकि वह स्थिर हो जाए। लेकिन भगवान शंकर के ऐसा करने से दशानन की बाँहें उस पर्वत के नीचे दब गई।
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फलस्वरूप क्रोध और जबरदस्त पीडा के कारण दशानन ने भीषण चीत्कार कर उठा, जिससे ऐसा लगने लगा कि मानो प्रलय हो जाएगा। तब दशानन के मंत्रियों ने उसे शिव स्तुति करने की सलाह दी ताकि उसका हाथ उस पर्वत से मुक्त हो सके।
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दशानन ने बिना देरी किए हुए सामवेद में उल्लेखित शिव के सभी स्तोत्रों का गान करना शुरू कर दिया, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने दशानन को क्षमा करते हुए उसकी बाँहों को मुक्त किया।
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दशानन द्वारा भगवान शिव की स्तुति के लिए किए जो स्त्रोत गाया गया था, वह दशानन ने भयंकर दर्द व क्रोध के कारण भीषण चीत्कार से गाया था और इसी भीषण चीत्कार को संस्कृत भाषा में राव: सुशरूण: कहा जाता है।
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इसलिए जब भगवान शिव, रावण की स्तुति से प्रसन्न हुए और उसके हाथों को पर्वत के नीचे से मुक्त किया, तो उसी प्रसन्नता में उन्होंने दशानन का नाम रावण यानी ‘भीषण चीत्कार करने पर विवश शत्रु’ रखा क्योंकि भगवान शिव ने रावण को भीषण चीत्कार करने पर विवश कर दिया था और तभी से दशानन काे रावण कहा जाने लगा।
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शिव की स्तुति के लिए रचा गया वह सामवेद का वह स्त्रोत, जिसे रावण ने गाया था, को आज भी रावण-स्त्रोत व शिव तांडव स्त्रोत के नाम से जाना जाता है, जो कि निम्नानुसार है-
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शिव तांडव स्त्रोत
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जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं
चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥
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सघन जटामंडल रूप वन से प्रवाहित होकर श्री गंगाजी की धाराएँ जिन शिवजी के पवित्र कंठ प्रदेश को प्रक्षालित (धोती) करती हैं, और जिनके गले में लंबे-लंबे बड़े-बड़े सर्पों की मालाएँ लटक रही हैं तथा जो शिवजी डमरू को डम-डम बजाकर प्रचंड तांडव नृत्य करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें।
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जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी ।
विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके
किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥
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अति अम्भीर कटाहरूप जटाओं में अतिवेग से विलासपूर्वक भ्रमण करती हुई देवनदी गंगाजी की चंचल लहरें जिन शिवजी के शीश पर लहरा रही हैं तथा जिनके मस्तक में अग्नि की प्रचंड ज्वालाएँ धधक कर प्रज्वलित हो रही हैं, ऐसे बाल चंद्रमा से विभूषित मस्तक वाले शिवजी में मेरा अनुराग (प्रेम) प्रतिक्षण बढ़ता रहे।
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धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर-
स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे ।
कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि
कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥
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पर्वतराजसुता के विलासमय रमणीय कटाक्षों से परम आनंदित चित्त वाले (माहेश्वर) तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की बड़ी से बड़ी विपत्तियाँ दूर हो जाती हैं, ऐसे (दिशा ही हैं वस्त्र जिसके) दिगम्बर शिवजी की आराधना में मेरा चित्त कब आनंदित होगा।
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जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा-
कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे ।
मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥
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जटाओं में लिपटे सर्प के फण के मणियों के प्रकाशमान पीले प्रभा-समूह रूप केसर कांति से दिशा बंधुओं के मुखमंडल को चमकाने वाले, मतवाले, गजासुर के चर्मरूप उपरने से विभूषित, प्राणियों की रक्षा करने वाले शिवजी में मेरा मन विनोद को प्राप्त हो।
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सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर-
प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः ।
भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः
श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥
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इंद्रादि समस्त देवताओं के सिर से सुसज्जित पुष्पों की धूलिराशि से धूसरित पादपृष्ठ वाले सर्पराजों की मालाओं से विभूषित जटा वाले प्रभु हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।
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ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा-
निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम् ।
सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं
महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥
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इंद्रादि देवताओं का गर्व नाश करते हुए जिन शिवजी ने अपने विशाल मस्तक की अग्नि ज्वाला से कामदेव को भस्म कर दिया, वे अमृत किरणों वाले चंद्रमा की कांति तथा गंगाजी से सुशोभित जटा वाले, तेज रूप नर मुंडधारी शिवजीहमको अक्षय सम्पत्ति दें।
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कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल-
द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके ।
धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक-
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मतिर्मम ॥7॥
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जलती हुई अपने मस्तक की भयंकर ज्वाला से प्रचंड कामदेव को भस्म करने वाले तथा पर्वत राजसुता के स्तन के अग्रभाग पर विविध भांति की चित्रकारी करने में अति चतुर त्रिलोचन में मेरी प्रीति अटल हो।
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नवीन मेघ मंडली निरुद्धदुर्धरस्फुर-
त्कुहु निशीथिनीतमः प्रबंधबंधुकंधरः ।
निलिम्पनिर्झरि धरस्तनोतु कृत्ति सिंधुरः
कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥8॥
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नवीन मेघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्याओं की रात्रि के घने अंधकार की तरह अति गूढ़ कंठ वाले, देव नदी गंगा को धारण करने वाले, जगचर्म से सुशोभित, बालचंद्र की कलाओं के बोझ से विनम, जगत के बोझ को धारण करने वाले शिवजी हमको सब प्रकार की सम्पत्ति दें।
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प्रफुल्ल नील पंकज प्रपंचकालिमच्छटा-
विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥9॥
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फूले हुए नीलकमल की फैली हुई सुंदर श्याम प्रभा से विभूषित कंठ की शोभा से उद्भासित कंधे वाले, कामदेव तथा त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दुखों के काटने वाले, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुरहंता, अंधकारसुरनाशक और मृत्यु के नष्ट करने वाले श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
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अगर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-
रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् ।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं
गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥10॥
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कल्याणमय, नाश न होने वाली समस्त कलाओं की कलियों से बहते हुए रस की मधुरता का आस्वादन करने में भ्रमररूप, कामदेव को भस्म करने वाले, त्रिपुरासुर, विनाशक, संसार दुःखहारी, दक्षयज्ञविध्वंसक, गजासुर तथा अंधकासुर को मारनेवाले और यमराज के भी यमराज श्री शिवजी का मैं भजन करता हूँ।
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जयत्वदभ्रविभ्रम भ्रमद्भुजंगमस्फुर-
द्धगद्धगद्वि निर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्-
धिमिद्धिमिद्धिमि नन्मृदंगतुंगमंगल-
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥11॥
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अत्यंत शीघ्र वेगपूर्वक भ्रमण करते हुए सर्पों के फुफकार छोड़ने से क्रमशः ललाट में बढ़ी हुई प्रचंड अग्नि वाले मृदंग की धिम-धिम मंगलकारी उधा ध्वनि के क्रमारोह से चंड तांडव नृत्य में लीन होने वाले शिवजी सब भाँति से सुशोभित हो रहे हैं।
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दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंग मौक्तिकमस्रजो-
र्गरिष्ठरत्नलोष्टयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः
समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥12॥
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कड़े पत्थर और कोमल विचित्र शय्या में सर्प और मोतियों की मालाओं में मिट्टी के टुकड़ों और बहुमूल्य रत्नों में, शत्रु और मित्र में, तिनके और कमललोचननियों में, प्रजा और महाराजाधिकराजाओं के समान दृष्टि रखते हुए कब मैं शिवजी का भजन करूँगा।
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कदा निलिंपनिर्झरी निकुजकोटरे वसन्
विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः
शिवेति मंत्रमुच्चरन्कदा सुखी भवाम्यहम्॥13॥
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कब मैं श्री गंगाजी के कछारकुंज में निवास करता हुआ, निष्कपटी होकर सिर पर अंजलि धारण किए हुए चंचल नेत्रों वाली ललनाओं में परम सुंदरी पार्वतीजी के मस्तक में अंकित शिव मंत्र उच्चारण करते हुए परम सुख को प्राप्त करूँगा।
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निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-
निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं
परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥14॥
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देवांगनाओं के सिर में गूँथे पुष्पों की मालाओं के झड़ते हुए सुगंधमय पराग से मनोहर, परम शोभा के धाम महादेवजी के अंगों की सुंदरताएँ परमानंदयुक्त हमारेमन की प्रसन्नता को सर्वदा बढ़ाती रहें।
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प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी
महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः
शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥15॥
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प्रचंड बड़वानल की भाँति पापों को भस्म करने में स्त्री स्वरूपिणी अणिमादिक अष्ट महासिद्धियों तथा चंचल नेत्रों वाली देवकन्याओं से शिव विवाह समय में गान की गई मंगलध्वनि सब मंत्रों में परमश्रेष्ठ शिव मंत्र से पूरित, सांसारिक दुःखों को नष्ट कर विजय पाएँ।
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इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं
पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नांयथा गतिं
विमोहनं हि देहना तु शंकरस्य चिंतनम ॥16॥
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इस परम उत्तम शिवतांडव श्लोक को नित्य प्रति मुक्तकंठ सेपढ़ने से या श्रवण करने से संतति वगैरह से पूर्ण हरि और गुरु मेंभक्ति बनी रहती है। जिसकी दूसरी गति नहीं होती शिव की ही शरण में रहता है।
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पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं
यः शम्भूपूजनमिदं पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां
लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥17॥
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शिव पूजा के अंत में इस रावणकृत शिव तांडव स्तोत्र का प्रदोष समय में गान करने से या पढ़ने से लक्ष्मी स्थिर रहती है। रथ गज-घोड़े से सर्वदा युक्त रहता है।
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इति श्री रावणकृतम् शिव तांडव स्तोत्रं संपूर्णम्
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भगवान शिव की आराधना व उपासना के लिए रचे गए सभी अन्य स्तोत्रों में रावण रचित या रावण द्वारा गया गया शिवतांडव स्तोत्र भगवान शिव को अत्यधिक प्रिय है, ऐसी हिन्दु धर्म की मान्यता है और माना जाता है कि शिवतांडव स्तोत्र द्वारा भगवान शिव की स्तुति करने से व्यक्ति को कभी भी धन-सम्पति की कमी नहीं होती, साथ ही व्यक्ति को उत्कृष्ट व्यक्तित्व की प्राप्ति होती है। यानी व्यक्ति का चेहरा तेजस्वी बनता है तथा उसके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है।
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इस शिवतांडव स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करने से व्यक्ति को जिस किसी भी सिद्धि की महत्वकांक्षा होती है, भगवान शिव की कृपा से वह आसानी से पूर्ण हो जाती है। साथ ही ऐसा भी माना जाता है कि इस स्तोत्र के नियमित पाठ से वाणी सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। यानी व्यक्ति जो भी कहता है, वह वैसा ही घटित होने लगता है। नृत्य, चित्रकला, लेखन, योग, ध्यान, समाधी आदि सिद्धियां भगवान शिव से ही सम्बंधित हैं, इसलिए शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करने वाले को इन विषयों से सम्बंधित सफलता सहज ही प्राप्त होने लगती हैं।
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इतना ही नहीं, शनि को काल माना जाता है जबकि शिव महाकाल हैं, अत: शनि से पीड़ित व्यक्ति को इसके पाठ से बहुत लाभ प्राप्त है। साथ ही जिन लोगों की जन्म-कुण्डली में सर्प योग, कालसर्प योग या पितृ दोष होता है, उन लोगों के लिए भी शिवतांडव स्तोत्र का पाठ करना काफी उपयोगी होता है क्योंकि हिन्दु धर्म में भगवान शिव को ही आयु, मृत्यु और सर्प का स्वामी माना गया है।Jee Jay Shri Krishna.
Saturday, November 28, 2020
प्रभु श्री राम का ध्यान
प्रभु श्री राम जी का ध्यान
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्याणमय सुरतरु तुलसी ओर।।
सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास ।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास।।
पंचवटी बट बिटप तर सीता लखन समेत ।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत ।।
भावार्थ :- भगवान श्री रामजी की बायीं ओर जानकीजी है और दाहिनी ओर श्री लक्ष्मण जी है । यह ध्यान सम्पूर्ण रूप से कल्याणमय है । हे तुलसी तेरे लिए तो यह मनमाना फल देनेवाला कल्पवृक्ष ही है ।श्री तुलसीदास जी कहते है कि श्री सीताजी और श्री लक्ष्मण जी के सहित प्रभु श्री रामचन्द्र जी सुशोभित हो रहे है । देवतागण हर्षित होकर फूल बरस रहे है । भगवान का यह सगुण ध्यान सुमंगल कल्याण का परम निवास स्थान है । पंचवटी में वटवृक्ष के नीचे श्री सीताजी और श्री लक्ष्मण जी समेत प्रभु श्री रामजी सुशोभित है ।तुलसीदास जी कहते है कि यह ध्यान सब सुमंगल को देता है ।
जय जय सियाराम ।
हेमन्त कुमार शर्मा
राम बाम दिसि जानकी लखन दाहिनी ओर ।
ध्यान सकल कल्याणमय सुरतरु तुलसी ओर।।
सीता लखन समेत प्रभु सोहत तुलसीदास ।
हरषत सुर बरषत सुमन सगुन सुमंगल बास।।
पंचवटी बट बिटप तर सीता लखन समेत ।
सोहत तुलसीदास प्रभु सकल सुमंगल देत ।।
भावार्थ :- भगवान श्री रामजी की बायीं ओर जानकीजी है और दाहिनी ओर श्री लक्ष्मण जी है । यह ध्यान सम्पूर्ण रूप से कल्याणमय है । हे तुलसी तेरे लिए तो यह मनमाना फल देनेवाला कल्पवृक्ष ही है ।श्री तुलसीदास जी कहते है कि श्री सीताजी और श्री लक्ष्मण जी के सहित प्रभु श्री रामचन्द्र जी सुशोभित हो रहे है । देवतागण हर्षित होकर फूल बरस रहे है । भगवान का यह सगुण ध्यान सुमंगल कल्याण का परम निवास स्थान है । पंचवटी में वटवृक्ष के नीचे श्री सीताजी और श्री लक्ष्मण जी समेत प्रभु श्री रामजी सुशोभित है ।तुलसीदास जी कहते है कि यह ध्यान सब सुमंगल को देता है ।
जय जय सियाराम ।
हेमन्त कुमार शर्मा
गणेश प्रश्नावली
*श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्रजानिए इस चमत्कारिक यंत्र से अपनी समस्याओं का समाधान*
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हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो में कई तरह के यंत्रों के बारे में बताया गया है जैसे हनुमान प्रश्नावली चक्र, नवदुर्गा प्रश्नावली चक्र, राम श्लोकी प्रश्नावली, श्रीगणेश प्रश्नावली चक्र आदि। इन यंत्रों की सहायता से हम अपने मन में उठ रहे सवाल, हमारे जीवन में आने वाली कठिनाइयों आदि का समाधान पा सकते है। इन्ही में से एक श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के बारे में हम आज आपको बता रहे है।
हिंदू धर्म में भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूज्य माना गया है अर्थात सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले श्रीगणेश की ही पूजा की जाती है। श्रीगणेश की पूजा के बिना कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। श्रीगणेश प्रश्नावली यंत्र के माध्यम से आप अपने जीवन की परेशानियों व सवालों का हल आसानी से पा सकते हैं। यह बहुत ही चमत्कारी यंत्र है।
उपयोग विधि
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जिसे भी अपने सवालों का जवाब या परेशानियों का हल जानना है वो पहले पांच बार ऊँ नम: शिवाय: मंत्र का जप करने के बाद 11 बार ऊँ गं गणपतयै नम: मंत्र का जप करें। इसके बाद आंखें बंद करके अपना सवाल पूछें और भगवान श्रीगणेश का स्मरण करते हुए प्रश्नावली चक्र पर कर्सर घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक(खाने) पर कर्सर रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक के फलादेश को ही अपने अपने प्रश्न का उत्तर समझें।
1- आप जब भी समय मिले राम नाम का जप करें। आपकी मनोकामना अवश्य पूरी होगी।
2- आप जो कार्य करना चाह रहे हैं, उसमें हानि होने की संभावना है। कोई दूसरा कार्य करने के बारे में विचार करें। गाय को चारा खिलाएं।
3- आपकी चिंता दूर होने का समय आ गया है। कष्ट मिटेंगे और सफलता मिलेगी। आप रोज पीपल की पूजा करें।
4- आपको लाभ प्राप्त होगा। परिवार में वृद्धि होगी। सुख संपत्ति प्राप्त होने के योग भी बन रहे हैं। आप कुल देवता की पूजा करें।
5- आप शनिदेव की आराधना करें। व्यापारिक यात्रा पर जाना पड़े तो घबराएं नहीं। लाभ ही होगा।
6- रोज सुबह भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। महीने के अंत तक आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाएंगी।
7- पैसों की तंगी शीघ्र ही दूर होगी। परिवार में वृद्धि होगी। स्त्री से धन प्राप्त होगा।
8- आपको धन और संतान दोनों की प्राप्ति के योग बन रहे हैं। शनिवार को शनिदेव की पूजा करने से आपको लाभ होगा।
9- आपकी ग्रह दिशा अनुकूल चल रही है। जो वस्तु आपसे दूर चली गई है वह पुन: प्राप्त होगी।
10- शीघ्र ही आपको कोई प्रसन्नता का समाचार मिलने वाला है। आपकी मनोकामना भी पूरी होगी। प्रतिदिन पूजन करें।
11- यदि आपको व्यापार में हानि हो रही है तो कोई दूसरा व्यापार करें। पीपल पर रोज जल चढ़ाएं। सफलता मिलेगी।
12- राज्य की ओर से लाभ मिलेगा। पूर्व दिशा आपके लिए शुभ है। इस दिशा में यात्रा का योग बन सकता है। मान-सम्मान प्राप्त होगा।
13- कुछ ही दिनों बाद आपका श्रेष्ठ समय आने वाला है। कपड़े का व्यवसाय करेंगे तो बेहतर रहेगा। सब कुछ अनुकूल रहेगा।
14- जो इच्छा आपके मन में है वह पूरी होगी। राज्य की ओर से लाभ प्राप्ति का योग बन रहा है। मित्र या भाई से मिलाप होगा।
15- आपके सपने में स्वयं को गांव जाता देंखे तो शुभ समाचार मिलेगा। पुत्र से लाभ मिलेगा। धन प्राप्ति के योग भी बन रहे हैं।
16- आप देवी मां पूजा करें। मां ही सपने में आकर आपका मार्गदर्शन करेंगी। सफलता मिलेगी।
17- आपको अच्छा समय आ गया है। चिंता दूर होगी। धन एवं सुख प्राप्त होगा।
18- यात्रा पर जा सकते हैं। यात्रा मंगल, सुखद व लाभकारी रहेगी। कुलदेवी का पूजन करें।
19- आपके समस्या दूर होने में अभी करीब डेढ़ साल का समय शेष है। जो कार्य करें माता-पिता से पूछकर करें। कुल देवता व ब्राह्मण की सेवा करें।
20- शनिवार को शनिदेव का पूजन करें। गुम हुई वस्तु मिल जाएगी। धन संबंधी समस्या भी दूर हो जाएगी।
21- आप जो भी कार्य करेंगे उसमें सफलता मिलेगी। विदेश यात्रा के योग भी बन रहे हैं। आप श्रीगणेश का पूजन करें।
22- यदि आपके घर में क्लेश रहता है तो रोज भगवान की पूजा करें तथा माता-पिता की सेवा करें। आपको शांति का अनुभव होगा।
23- आपकी समस्याएं शीघ्र ही दूर होंगी। आप सिर्फ आपके काम में मन लगाएं और भगवान शंकर की पूजा करें।
24- आपके ग्रह अनुकूल नहीं है इसलिए आप रोज नवग्रहों की पूजा करें। इससे आपकी समस्याएं कम होंगी और लाभ मिलेगा।
25- पैसों की तंगी के कारण आपके घर में क्लेश हो रहा है। कुछ दिनों बाद आपकी यह समस्या दूर जाएगी। आप मां लक्ष्मी का पूजन रोज करें।
26- यदि आपके मन में नकारात्मक विचार आ रहे हैं तो उनका त्याग करें और घर में भगवान सत्यनारायण का कथा करवाएं। लाभ मिलेगा।
27- आप जो कार्य इस समय कर रहे हैं वह आपके लिए बेहतर नहीं है इसलिए किसी दूसरे कार्य के बारे में विचार करें। कुलदेवता का पूजन करें।
28- आप पीपल के वृक्ष की पूजा करें व दीपक लगाएं। आपके घर में तनाव नहीं होगा और धन लाभ भी होगा।
29- आप प्रतिदिन भगवान विष्णु, शंकर व ब्रह्मा की पूजा करें। इससे आपको मनचाही सफलता मिलेगी और घर में सुख-शांति रहेगी।
30- रविवार का व्रत एवं सूर्य पूजा करने से लाभ मिलेगा। व्यापार या नौकरी में थोड़ी सावधानी बरतें। आपको सफलता मिलेगी।
31- आपको व्यापार में लाभ होगा। घर में खुशहाली का माहौल रहेगा और सबकुछ भी ठीक रहेगा। आप छोटे बच्चों को मिठाई बांटें।
32- आप व्यर्थ की चिंता कर रहे हैं। सब कुछ ठीक हो रहा है। आपकी चिंता दूर होगी। गाय को चारा खिलाएं।
33- माता-पिता की सेवा करें, ब्राह्मण को भोजन कराएं व भगवान श्रीराम की पूजा करें। आपकी हर अभिलाषा पूरी होगी।
34- मनोकामनाएं पूरी होंगी। धन-धान्य एवं परिवार में वृद्धि होगी। कुत्ते को तेल चुपड़ी रोटी खिलाएं।
35- परिस्थितियां आपके अनुकूल नहीं है। जो भी करें सोच-समझ कर और अपने बुजुर्गो की राय लेकर ही करें। आप भगवान दत्तात्रेय का पूजन करें।
36- आप रोज भगवान श्रीगणेश को दुर्वा चढ़ाएं और पूजन करें। आपकी हर मुश्किल दूर हो जाएंगी। धैर्य बनाएं रखें।
37- आप जो कार्य कर रहे हैं वह जारी रखें। आगे जाकर आपको इसी में लाभ प्राप्त होगा। भगवान विष्णु का पूजन करें।
38- लगातार धन हानि से चिंता हो रही है तो घबराइए मत। कुछ ही दिनों में आपके लिए अनुकूल समय आने वाला है। मंगलवार को हनुमानजी को सिंदूर अर्पित करें।
39- आप भगवान सत्यनारायण की कथा करवाएं तभी आपके कष्टों का निवारण संभव है। आपको सफलता भी मिलेगी।
40- आपके लिए हनुमानजी का पूजन करना श्रेष्ठ रहेगा। खेती और व्यापार में लाभ होगा तथा हर क्षेत्र में सफलता मिलेगी।
41- आपको धन की प्राप्ति होगी। कुटुंब में वृद्धि होगी एवं चिंताएं दूर होंगी। कुलदेवी का पूजन करें।
42- आपको शीघ्र सफलता मिलने वाली है। माता-पिता व मित्रों का सहयोग मिलेगा। खर्च कम करें और गरीबों का दान करें।
43- रुका हुआ कार्य पूरा होगा। धन संबंधी समस्याएं दूर होंगी। मित्रों का सहयोग मिलेगा। सोच-समझकर फैसला लें। श्रीकृष्ण को माखन-मिश्री का भोग लगाएं।
44- धार्मिक कार्यों में मन लगाएं तथा प्रतिदिन पूजा करें। इससे आपको लाभ होगा और बिगड़ते काम बन जाएंगे।
45- धैर्य बनाएं रखें। बेकार की चिंता में समय न गवाएं। आपको मनोवांछित फल की प्राप्ति होगी। ईश्वर का चिंतन करें।
46- धार्मिक यात्रा पर जाना पड़ सकता है। इसमें लाभ मिलने की संभावना है। रोज गायत्री मंत्र का जप करें।
47- प्रतिदिन सूर्य को अध्र्य दें और पूजन करें। आपको शत्रुओं का भय नहीं सताएगा। आपकी मनोकामना पूरी होगी।
48- आप जो कार्य कर रहे हैं वही करते रहें। पुराने मित्रों से मुलाकात होगी जो आपके लिए फायदेमंद रहेगी। पीपल को रोज जल चढ़ाएं।
49- अगर आपकी समस्या आर्थिक है तो आप रोज श्रीसूक्त का पाठ करें और लक्ष्मीजी का पूजा करें। आपकी समस्या दूर होगी।
50- आपका हक आपको जरुर मिलेगा। आप घबराएं नहीं बस मन लगाकर अपना काम करें। रोज पूजा अवश्य करें।
51- आप जो व्यापार करना चाहते हैं उसी में सफलता मिलेगी। पैसों के लिए कोई गलत कार्य न करें। आप रोज जरुरतमंद लोगों को दान-पुण्य करें।
52- एक महीने के अंदर ही आपकी मुसीबतें कम हो जाएंगी और सफलता मिलने लगेगी। आप कन्याओं को भोजन कराएं।
53- यदि आप विदेश जाने के बारे में सोच रहे हैं तो अवश्य जाएं। इसी में आपको सफलता मिलेगी। आप श्रीगणेश का आराधना करें।
54- आप जो भी कार्य करें किसी से पुछ कर करें अन्यथा हानि हो सकती है। विपरीत परिस्थिति से घबराएं नहीं। सफलता अवश्य मिलेगी।
55- आप मंदिर में रोज दीपक जलाएं, इससे आपको लाभ मिलेगा और मनोकामना पूरी होगी।
56- परिजनों की बीमारी के कारण चिंतित हैं तो रोज महामृत्युंजय मंत्र का जप करें। कुछ ही दिनों में आपकी यह समस्या दूर हो जाएगी।
57- आपके लिए समय अनुकूल नहीं है। अपने कार्य पर ध्यान दें। प्रमोशन के लिए रोज गाय को रोटी खिलाएं।
58- आपके भाग्य में धन-संपत्ति आदि सभी सुविधाएं हैं। थोड़ा धैर्य रखें व भगवान में आस्था रखकर लक्ष्मीजी को नारियल चढ़ाएं।
59- जो आप सोच रहे हैं वह काम जरुर पूरा होगा लेकिन इसमें किसी का सहयोग लेना पड़ सकता है। आप शनिदेव की उपासना करें।
60- आप अपने परिजनों से मनमुटाव न रखें तो ही आपको सफलता मिलेगी। रोज हनुमानजी के मंदिर में चौमुखी दीपक लगाएं।
61- यदि आप अपने करियर को लेकर चिंतित हैं तो श्रीगणेश की पूजा करने से आपको लाभ मिलेगा।
62- आप रोज शिवजी के मंदिर में जाकर एक लोटा जल चढ़ाएं और दीपक लगाएं। आपके रुके हुए काम हो जाएंगे।
63- आप जिस कार्य के बारे में जानना चाहते हैं वह शुभ नहीं है उसके बारे में सोचना बंद कर दें। नवग्रह की पूजा करने से आपको सफलता मिलेगी।
64- आप रोज आटे की गोलियां बनाकर मछलियों को खिलाएं। आपकी हर समस्या का निदान स्वत: ही हो जाएगा।
Friday, November 27, 2020
हनुमान प्रश्नावली
*हनुमान प्रश्नावली चक्र के ये 49 अंक देंगे आपके प्रश्नों के उत्तर,....*
*.... जानिए अपनी समस्या का समाधान..............................*
हर इंसान चाहता है कि उसका आने वाला कल सुख और संपत्ति से पूर्ण हो, लेकिन इसके लिए उसे क्या करना चाहिए, ये बात वह नहीं जानता और किस्मत चमकाने के चक्कर में इधर-उधर भागता रहता है।
हम आपके लिए लाए हैं हनुमान प्रश्नावली चक्र। इसके 49 अंकों में आपके उन सभी प्रश्नों के उत्तर लिखे हैं, जो आप जानना चाहते हैं। इसका उपयोग इस प्रकार करें-
*उपयोग विधि....*
जिसे भी अपने प्रश्नों का उत्तर चाहिए, वे स्नान आदि कर साफ वस्त्र धारण करें और पांच बार
ऊं रां रामाय नम:
मंत्र का जाप करने के बाद 11 बार
ऊं हनुमते नम:
मंत्र का जाप करें। इसके बाद आंखें बंद कर के हनुमानजी का स्मरण करें व अपना प्रश्न मन में दोहराएं। इसके बाद प्रश्नावली चक्र पर कर्सर[finger] घुमाते हुए रोक दें। जिस कोष्ठक (खाने) पर कर्सर[finger] रुके, उस कोष्ठक में लिखे अंक को देखकर अपने प्रश्न का उत्तर देखें।
1- आपका कार्य शीघ्र पूरा होगा।
2- आपके कार्य में समय लगेगा। मंगलवार का व्रत करें।
3- प्रतिदिन हनुमान चालीसा का पाठ करें, तो कार्य शीघ्र पूरा होगा।
4- कार्य पूर्ण नहीं होगा।
5- कार्य शीघ्र होगा, किंतु अन्य व्यक्ति की सहायता लेनी पड़ेगी।
6- कोई व्यक्ति आपके कार्यों में रोड़े अटका रहा है, बजरंग बाण का पाठ करें।
7- आपके कार्य में किसी स्त्री की सहायता अपेक्षित है।
8- आपका कार्य नहीं होगा, कोई अन्य कार्य करें।
9- कार्यसिद्धि के लिए यात्रा करनी पड़ेगी।
10- मंगलवार का व्रत रखें और हनुमानजी को चोला चढ़ाएं, तो मनोकामना पूर्ण होगी।
11- आपकी मनोकामना शीघ्र पूरी होगी। सुंदरकांड का पाठ करें।
12- आपके शत्रु बहुत हैं। कार्य नहीं होने देंगे।
13- पीपल के वृक्ष की पूजा करें। एक माह बाद कार्य सिद्ध होगा।
14- आपको शीघ्र लाभ होने वाला है। मंगलवार के दिन गाय को गुड़-चना खिलाएं।
15- शरीर स्वस्थ रहेगा, चिंताएं दूर होंगी।
16- परिवार में वृद्धि होगी। माता-पिता की सेवा करें और रामचरितमानस के बाल काण्ड का पाठ करें।
17- कुछ दिन चिंता रहेगी। ऊं हनुमते नम: मंत्र की प्रतिदिन एक माला का जाप करें।
18- हनुमानजी के पूजन एवं दर्शन से मनोकामना पूर्ण होगी।
19- आपको व्यवसाय द्वारा लाभ होगा। दक्षिण दिशा में व्यापारिक संबंध बढ़ाएं।
20- ऋण से छुटकारा, धन की प्राप्ति तथा सुख की उपलब्धि शीघ्र होने वाली है। हनुमान चालीसा का पाठ करें।
21- श्रीरामचंद्रजी की कृपा से धन मिलेगा। श्रीसीताराम के नाम की पांच माला जप रोज करें।
22- अभी कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा पर अंत में विजय आपकी होगी।
23- आपके दिन ठीक नहीं है। रोजाना हनुमानजी का पूजन करें। मंगलवार को चोला चढ़ाएं। संकटों से मुक्ति मिलेगी।
24- आपके घर वाले ही विरोध में हैं। उन्हें अनुकूल बनाने के लिए पूर्णिमा का व्रत करें।
25- आपको शीघ्र शुभ समाचार मिलेगा।
26- हर काम सोच-समझकर करें।
27- स्त्री पक्ष से आपको लाभ होगा। दुर्गासप्तशती का पाठ करें।
28- अभी कुछ महीनों तक परेशानी है।
29- अभी आपके कार्य की सिद्धि में विलंब है।
30- आपके मित्र ही आपको धोखा देंगे। सोमवार का व्रत करें।
31- संतान का सुख प्राप्त होगा। भगवान शिव की आराधना करें व शिवमहिम्नस्तोत्र का पाठ करें।
32- आपके दुश्मन आपको परेशान कर रहे हैं। रोज पार्थिव शिवलिंग का पूजन कर शिव ताण्डव स्तोत्र का पाठ करें। सोमवार को ब्राह्मणों को भोजन कराएं।
33- कोई स्त्री आपको धोखा देना चाहती है, सावधान रहें।
34- आपके भाई-बंधु विरोध कर रहे हैं। गुरुवार का व्रत रखें।
35- नौकरी से आपको लाभ होगा। पदोन्नति संभव है, पूर्णिमा का व्रत रख कथा कराएं।
36- आपके लिए यात्रा शुभदायक रहेगी। आपके अच्छे दिन आ गए हैं।
37- पुत्र आपकी चिंता का कारण बनेगा। रोज राम नाम की पांच माला का जप करें।
38- आपको अभी कुछ दिन और परेशानी रहेगी। यथाशक्ति दान-पुण्य और कीर्तन करें।
39- आपको राजकार्य और मुकद्मे में सफलता मिलेगी। श्रीसीताराम का पूजन करने से लाभ मिलेगा।
40- अतिशीघ्र आपको यश प्राप्त होगा। हनुमानजी की उपासना करें और रामनाम का जाप करें।
41- आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।
42- समय अभी अच्छा नहीं है।
43- आपको आर्थिक कष्ट का सामना करना पड़ेगा।
44- आपको धन की प्राप्ति होगी।
45- दाम्पत्य सुख मिलेगा।
46- संतान सुख की प्राप्ति होने वाली है।
47- अभी दुर्भाग्य समाप्त नहीं हुआ है। विदेश यात्रा से अवश्य लाभ होगा।
48- आपका अच्छा समय आने वाला है। सामाजिक और व्यवसायिक क्षेत्र में लाभ मिलेगा।
49- आपका समय बहुत अच्छा आ रहा है। आपकी प्रत्येक मनोकामना पूर्ण होगी।
सम्मोहन विधा
🔱🚩"दुर्लभ महत्वपूर्ण सम्मोहन साधना विधान "🚩🔱
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साधना एक अलग प्रकार है । साधना का तात्पर्य है कि सन्नद्ध हाे जाना, तैयार हाे जाना स्पस्ट हाे जाना । साधना का तात्पर्य है कि मैं प्राप्त करने के लिए सभी प्रकार से सक्षम हूं, तैयार हूं, मैं प्राप्त करना चाहता हूं, और जाे यह भाव जो मन में ले लेता है, वह साधना पथ पर पहला पग रखता है । जिसकाे हम प्राप्त करने की इच्छा या आकांक्षा रखते हैं, उसके प्रति तीव्र वेग से बढने की क्रिया काे साधना कहा जाता है , उसका लक्ष्य केवल यही हाेता है कि उसे प्राप्त करके ही रहूं , वह चाहे महालक्ष्मी हाे, वह चाहे महाकाली हाे, वह चाहे तारा हाे, छिन्नमस्ता हाे , शंकर हाे, ब्रह्मा हाे, विष्णु हाे, रूद्र हाे, काेई देवी हाे , काेई देवता हाे, काेई पितर हाे , काेई मनुस्य हाे, जिसकाे भी आप प्राप्त करने के लिये पूर्णता के साथ प्रयत्नशील हैं, उसे साधना कहा जाता है ।
और साधना विचाराें से नहीं होती ,साधना ताे तन और मन से जीवन मे तीव्रता के साथ तीव्र गति से आगे बढने की क्रिया है । जिसमें मन तीर की गति से आगे बढता है, अपने लक्ष्य पर पंहुचने के लिए झपटता है, किसी भी प्रकार से उसकाे प्राप्त करने की आकांक्षा रखता है, मन की इस गति काे चेतना देने का काम शरीर करता है, शरीर अपने- आप में कमजाेर है...... अगर कोई भाव नहीं है, कोई आकांक्षा नहीं है , ताे मन उतनी द्रुत गति से आगे नहीं बढ् सकेगा ।
मन काे ताे आधार चाहिये आगे बढ्ने के लिए, तीर तभी ताे अपने लक्ष्य पर पहुंचेगा जब धनुष हाेगा ,जब धनुष ही नहीं है ताे तीर चल भी नहीं सकता । यदि लक्ष्य पर तीर काे पहुंचना ही है ताे फिर धनुष की प्रत्यंचा तनी हूई, कसी हुई हाेनी चाहीए, यदि मनकाे पूर्णता का साथ बढाना है लक्ष्य की ओर तीर की तरह तीव्र गति से , ताे शरीर संतुलित निश्चिंत और स्पष्ट हाेना ही चाहीए ।
इस प्रकार शरीर काे साधने की क्रिया का नाम साधना है । इस प्रकार मन काे साधने की क्रिया का नाम साधना है । इस जीवन काे पूर्णता के साथ अपने नियंत्रण में लेने की क्रिया का नाम साधना है ।
साधना के प्रकार क्या हैं ? तरीका क्या है ? मंत्र-जप क्या है ? देवता क्या है ? अनुष्ठान क्या है ? यह सब ताे अागे कि बात है । पहली और प्रधान बात ताे यह है की हम पूर्णरूप से साधक हाें , अाैर पूर्ण रूप से साधक हाेने के लिए जरूरी है कि यह शरीर अपने-अाप में सधा हुअा हाे । " शरीरं साधयति स: साधक: " जाे शरीर पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है । जाे मन पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है । शरीर पर नियंत्रणा प्राप्त करने का तात्पर्य , आसन पर स्थिर चित्त से बैठना है । स्थिरता से बैठना है । एक घन्टा , दाे घन्टा , चार घन्टा , छः घन्टा , अाठ घन्टा बिना हिडे-डुले, निश्चिंत , निर्भिक , निष्कंप .......और साधना की जाे विधि हाे , जाे तरीका हाे उसका पालन करने के लिए शरीर सक्षम हाे , जितना मंत्र-जप कारने का विधान हाे
उतना मंत्र जप करे ही , उससे पहले शरीर शिथिल न हाे , थकावट से न भर जाए , आलस्य से न भर जाए , प्रमाद से न भर जाए , जब ऐसी स्थिति आती है ताे शरीर सधता है, और जब शरीर सधता है ताे उसके साथ ही मन काे भी साधना चाहीये , क्याेंकि शरीर काे ताे हट पूर्वक नियंत्रण में ताे कर सकते हैं, कष्ट या पिडा काे भी भाेग सकते है , इसके लिये मन पर नियंत्रण पाना ताे बहुत जरूरी है ।
🍁विविध शास्त्रों में यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि साधक के लिए यह जरूरी नहीं है कि वह संस्कृत का भली प्रकार से उच्चारण करना जानता हो लंबे चौड़े विधि-विधान या पूजा पाठ की भी आवश्यकता नहीं है साधना की पूर्ण सफलता के लिए तो यह जरूरी है कि साधक मन में यह दृढ़ निश्चय कर लें कि मुझे अपने जीवन को संभालना है मुझे अपने जीवन में पूर्ण सफलता प्राप्त करनी ही है और .....मैं समाज में तथा देश में उन्नति के शिखर पर पहुंचकर पूर्णता प्राप्त करके ही रहूंगा इसके साथ ही साथ जिस प्रकार से प्रयोग या विधि बताई गई है उस प्रकार से यदि वह प्रयोग संपन्न करता है तो निश्चित ही उसे अनुकूलता सफलता प्राप्त होती ही है निश्चित ही उसे जीवन में पूर्ण रूप से सिद्धि प्राप्त होती ही है और वह इस प्रकार के जीवन के दुख दरिद्रता बाधाएं और परेशानियों को दूर करने में सफल हो पाता है तथा जीवन में यह सब कुछ प्राप्त कर लेता है जो उसके जीवन का लक्ष्य होता है जो उसके जीवन का उद्देश्य होता है...
🍁यदि सही रूप से देखा जाए तो हमारा अब तक का बीता हुआ जीवन परेशानियों बाधाओं अड़चनों और कठिनाइयों से भरा हुआ है हमें जीवन में कुछ सुख मिलना चाहिए था वह हमें नहीं मिल पाया हम जीवन में जो कुछ हम जीवन में जो कुछ आनंद लेना चाहते थे वह आनंद नहीं ले पाए और हम पद के लिए धन के लिए और प्रभुता के लिए बराबर परेशान होते रहे झगड़ते रहे जरूरत से ज्यादा परिश्रम करते रहे परंतु हमें जो अनुकूलता फल प्राप्त होना चाहिए था वह प्राप्त नहीं हो पाया इसका कारण यह है कि व्यक्ति उन्नति तभी कर सकता है जब उसके पास दैविक शक्ति हो दैविक शक्ति की सहायता से ही व्यक्ति अपने जीवन में पूर्ण उन्नति एवं सफलता प्राप्त कर सकता है
🍁महाभारत काल में भी जब अर्जुन को युद्ध में विजय प्राप्त करने की इच्छा हुई तो भगवान श्री कृष्ण ने उसे यही सलाह दी कि बिना दिव्य अस्त्रों के युद्ध में विजय प्राप्त करना असंभव है इसलिए यह जरूरी है कि पहले तो तुम शिव और इंद्र की आराधना करो उनसे दैविक अस्त्र प्राप्त करो और ऐसा होने पर ही तुम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पूर्व सफलता प्राप्त कर सकते हो युद्ध को जीत सकते हो
🍁और हम जीवन के इस युद्ध में लड़ते रहे हैं परंतु जिस प्रकार से विजय होनी चाहिए उस प्रकार से विजय या सफलता या लाभ हमें नहीं मिल पा रहा है क्योंकि यह जीवन का युद्ध केवल हम अपने बाहुबल से ही लड़ रहे हैं जबकि हमारे पास दैविक शक्ति साधना शक्ति होनी चाहिए यदि हम दैविक शक्ति को प्राप्त कर लेते हैं तो निश्चय ही जीवन में सफलता पा जाना सरल, ज्यादा अनुकूल और ज्यादा सुविधाजनक हो जाता है और ऐसा करने पर ही संपूर्ण जीवन में जगमगाहट प्राप्त हो सकती है l
🍁साधना जीवन का आवश्यक तत्व है बिना इसके जीवन में प्रगति श्रेष्ठता और सफलता संभव नहीं है यह सब कुछ संभव है संयम से धैर्य से निष्ठा से और पूर्ण समर्पण विश्वास से इस बार इन्हीं तथ्यों को आधार बनाकर कोई भी साधना करिए और आप स्वयं देख लीजिए कि इस पत्रिका के प्रत्येक लेख और सुझाव कितने अमूल्य हैं
🍁यह पत्रिका नहीं कलयुग की श्रीमदभगवदगीता हैं, जिसका एक-एक पन्ना आने वाले समय के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर हैं, उच्चता तक ले जाने की सीढ़ी है l इसलिए इस श्रेष्ठतम पत्रिका का प्रकाशन किया गया जिससे इसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को, पूर्वजों के साहित्य को, जो लुप्त होता जा रहा हैं, जो समाप्त होता जा रहा हैं, उसे सुरक्षित कर सकें, क्योंकि कुछ समय और बीत गया, तो हम इन मंत्रों के, तंत्रों के बारे में कुछ जान ही नहीं सकेंगे! उन सबको सुरक्षित रखने के लिए इन साधनात्मक ग्रंथों और पत्रिकाओं का प्रकाशन किया....चिंतन तो इस बात के लिए हैं कि हम पूर्वजों की थाती को, पूर्वजों के ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
🍁और पिछले 40 वर्षों से ✅ साधनात्मक ग्रंथों और पत्रिकाओं का प्रकाशन इस बात का प्रमाण हैं कि आज भी समाज में चेतना हैं, जो इस प्रकार का ज्ञान चाहती हैं! अगर नहीं चाहती, तो पत्रिका कभी भी बंद हो चुकी होती! वर्तमान समय में आज भी ऐसे व्यक्ति हैं जो इस प्रकार की साधनाओं के लिए लालायित हैं, उनको इस प्रकार की साधनाएं देने के लिए, वे समयानुसार किस प्रकार की साधनाएं करें , उनको मार्गदर्शन देने के लिए ही इस पत्रिका का प्रकाशन किया गया हैं!
जीवन में मंत्र-तंत्र-यंत्र का परस्पर सम्बन्ध हैं, इनके द्वारा ही जीवन ऊपर की और उठ सकता हैं! पत्रिका का प्रकाशन ही इसलिए किया हैं.... कोई आवश्यकता नहीं थी, मगर आवश्यकता इस बात की थी कि इस समय सारा संसार भौतिक बंधनों में बंधा हुआ हैं, और बन्धनों में बंधने के कारन व्यक्ति अन्दर से छटपटाता रहता हैं, वह चाहता हैं मैं मुक्त हवा में साँस ले सकूँ, मैं कुछ आगे बढ़ सकूँ, मैं जीवन में बहुत कुछ कर सकूँ..... मगर इसके लिए कोई रास्ता नहीं हैं, उसको कोई समझाने वाला नहीं हैं!
ऐसी स्थिति में पत्रिका का प्रकाशन किया गया और इस पत्रिका में मंत्र-तंत्र और यंत्र तीनों का समन्वय किया गया हैं! इसमें उच्चकोटि के मंत्रों का चिंतन दिया गया हैं! यह पत्रिका केवल कागज के कोरे पन्ने नहीं हैं! यदि बाजार से कागजों का एक बण्डल लाया जायें, तो वह सौ रूपये में प्राप्त हो सकता हैं, मगर जब उन कागजों पर उच्चकोटि के मंत्र और साधना विधियां लिख दी जाती हैं, तो वह पुस्तक अमूल्य हो जाती हैं! ज्ञान को मूल्य के तराजू में नहीं तौला जा सकता, ज्ञान को इस बात से भी नहीं देखा जाता हैं कि इस पत्रिका का मूल्य पांच रूपये या पच्चीस रूपये हैं, ज्ञान का मूल्य तो अनन्त होता हैं!
इसलिए हमने इस श्रेष्ठतम पत्रिका का प्रकाशन किया! इसके माध्यम से हम अपने पूर्वजों के ज्ञान को, पूर्वजों के साहित्य को, जो लुप्त होता जा रहा हैं, जो समाप्त होता जा रहा हैं, उसे सुरक्षित कर सकें, क्योंकि कुछ समय और बीत गया, तो हम इन मंत्रों के, तंत्रों के बारे में कुछ जान ही नहीं सकेंगे! उन सबको सुरक्षित रखने के लिए इस पत्रिका का प्रकाशन किया...... इसके पीछे कोई व्यापर की आकांक्षा और इच्छा नहीं हैं, इसके पीछे जीवन का कोई ऐसा चिंतन नहीं हैं कि इसके माध्यम से धनोपार्जन किया जायें, चिंतन तो इस बात के लिए हैं कि हम पूर्वजों की थाती को, पूर्वजों के ज्ञान को सुरक्षित रख सकें!
और पिछले कई वर्षों से इस पत्रिका का प्रकाशन इस बात का प्रमाण हैं कि आज भी समाज में चेतना हैं, जो इस प्रकार का ज्ञान चाहती हैं! अगर नहीं चाहती, तो पत्रिका कभी भी बंद हो चुकी होती! ऐसे व्यक्ति हैं जो इस प्रकार की साधनाओं के लिए लालायित हैं, उनको इस प्रकार की साधनाएं देने के लिए, वे समयानुसार किस प्रकार की साधनाएं करें , उनको मार्गदर्शन देने के लिए ही इस पत्रिका का प्रकाशन किया गया हैं!
और सही कहूँ तो यह पत्रिका नहीं कलयुग की श्रीमदभगवदगीता हैं, जिसका एक-एक पन्ना आने वाले समय के लिए, आने वाली पीढ़ी के लिए धरोहर हैं, उच्चता तक ले जाने की सीढ़ी हैं!
🍁पूज्य गुरुदेव द्वारा प्रदान की गई अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार गुरुधाम जोधपुर से प्रकाशित पत्रिकाओं और ग्रंथों में ऐसी ही साधनाएं दी गई हैं जिन्हें सामान्य गृहस्थ स्त्री-पुरुष कोई भी संपन्न कर सकता है जिसमें उन्हें ना बहुत अधिक विधि-विधान की जरूरत है और ना ही विद्वता की l सामान्य सामग्री के माध्यम से भी पुस्तकों में वर्णित साधना करके वे अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त कर सकते हैं इन साधनात्मक ग्रंथों और पत्रिकाओं में ऐसी ही साधना विधियां दी गई हैं जो सामान्य साधकों एवं गृहस्थ स्त्री-पुरुषों के लिए सरल हैं शुगम है और जन सामान्य के लिए बहुत उपयोगी हैं
गुरुधाम अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार जोधपुर से प्रकाशित पत्रिकाएं है -:👇👇👇
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जिसकी आप वार्षिक सदस्यता प्राप्त कर सकते हैं जिसके प्रेरक एवं संस्थापक पूज्य सदगुरुदेव डॉ0 नारायण दत्त श्रीमाली जी संन्यस्त नाम (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद) जी हैं 🙏
🍁पूज्य श्री सदगुरुदेव जी द्वारा लिखित ग्रंथों एवं पत्रिकाओं की वार्षिक सदस्यता के लिए एवं साधना सामग्री प्राप्त करने के लिए आप गुरुधाम जोधपुर और दिल्ली के इन फोन नंबरों पर संपर्क कर सकते हैं -:
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HD Print मे वर्ष 1981 से वर्ष 2010 तक का दुर्लभ पत्रिकाओं का संग्रह नीचे दी गई लिंक में उपलब्ध है शीघ्र ही शेष पत्रिकाएं भी इसी लिंक में उपलब्ध कराई जाएंगी ✅
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🚩यह पत्रिका आपके परिवार का एक अभिन्न अंग है इसमें निहित भारतीय ऋषि मुनियों का ज्ञान, प्राचीन विद्या, मंत्रात्मक एवं तंत्रात्मक साधनात्मक सत्य को समाज के सभी वर्गों में समान रुप से स्वीकार किया गया है, क्योंकि इस पत्रिका में प्रत्येक वर्ग की समस्याओं का समाधान बहुत ही सरल और सहज रूप में समाहित है
मंत्र तंत्र यंत्र तो भगवान शिव द्वारा रचित शुद्ध विज्ञान है .... यदि हमें अपने राष्ट्र की रक्षा करना है जीवन में आनंद प्राप्त करना हैं, अपनी समस्याओं का समाधान प्राप्त करना है सभी रोगों से मुक्त होना हैं, आर्थिक रूप से समृद्ध होना है शक्ति संपन्न होना है तो हमें इन साधनाओ और शक्तिशाली मंत्रों का समन्वय करना ही होगा!" 🚩
मंत्र जप की विधि
🔱🚩मंत्र जप की विधि 🚩🔱Important Post
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🕉मंत्र जप से तो हम सभी परिचित हैं | किसी भी मंत्र को बार बार दोहराना या उच्चारण ही मंत्र जप कहलाता है | हम सभी कभी न कभी, जाने अनजाने किसी न किसी समय पर मन्त्र का उच्चारण करते हैं | यही जप है | आज हम इसे और विस्तार से स्पस्ट करने का प्रयाश करेंगे | हमारी धार्मिक पुस्तकों में जगह जगह मंत्र जप से होने वाले लाभ का वर्णन किया जाता है | अक्सर वर्णन मिलता है की इस मंत्र का इतना जप कीजिये | तो ये इसका फल मिलेगा, इत्यादि | हमारे धर्म शाश्त्र इस के गुणगान से भरे पड़े हैं |
🕉मगर क्या बात है की वो फल लोगों को नहीं मिल पाता है | ज्यादातर लोगों की ये शिकायत रहती है, की मंत्र काम नहीं करता है | और ये जो सब पुरश्चरण (निश्चित संख्या में जप का अनुष्ठान) आदि का जो वर्णन हमारे शास्त्रों में किया गया है | वो केवल कपोल कल्पना है|इस प्रकार उन लोगों का जप से विश्वास ही उठ जाता है |
🕉क्या वो लोग झूंठ बोल रहे हैं ? नहीं बिलकुल नहीं |
वो सत्य ही बोल रहे हैं | क्योंकि उन्हें ऐसा कुछ अनुभव नहीं हुआ है | और जब तक स्वयं को कोई अनुभव न हो तब तक चाहे सारी दुनिया उसे प्रमाणित करे वो सत्य नहीं है |
🕉फिर क्या हमारे शास्त्र झूंठ बोल रहे है, की ऐसा करने से ये होगा, और ऐसा करने से ये होगा ? नहीं बिलकुल नहीं |
ये शत प्रितिशत सत्य है की जप का फल मिलता है | और जो भी अनुष्ठान आदि का वर्णन शास्त्रों में किया गया है वो पूर्णत सत्य है |तब प्रश्न उठता है की कैसे दोनों सच्चे हो सकते हैं ?
मैं बताता हूँ.........
साधक इसलिए सच्चा है | क्योंकि उसने अपनी पूरी सामर्थ्य लगाकर जप किया | जो जो भी शास्त्रों में" और उसके गुरु ने " बताया गया था | वो सब उसने किया | निश्चित शंख्या में जप, हवन, तर्पण व और सभी क्रियाएं | मगर उसके बाद भी जिस तरह के फल का वर्णन जगह जगह किया जाता है | उसे वो फल नहीं मिला | तो वो कहेगा की ऐसा कुछ नहीं होता, और ये सब बकवास है | वो झूंठ नहीं बोल रहा है | जो अनुभव हुआ है, वही वो बोल रहा है | और मात्र अनुभव ही सत्य है | बाकि सब झूंठ है | उसे अनुभव नहीं हुआ तो उसने इस सबको बेकार मान लिया | उसके बाद वो निराश हो गया | और फिर ये मार्ग ही छोड़ देता है | इसके बाद यदि कोई और भी उससे कुछ इस सम्बन्ध में पूछेगा | तो स्वाभाविक बात है की वो बोलेगा नहीं ये सब बकवास है | वो साधक तो साधना से विमुख हो ही चुका है |
इसमें किसी का दोष नहीं है | मात्र सही तरह से तरह से जप नहीं कर पाने की वजह से ऐसा है | हम मन्त्र जप के बारे में थोडा और स्पष्ट करते हैं !!
🌺!! मंत्र जप में आने वाले विघ्न !! 🌺
किसी भी जप के समय हमारा मन हमें सबसे ज्यादा परेशान करता है, और निरंतर तरह तरह के विचार अपने मन में चलते रहेंगे | यही मन का स्वभाव है और वो इसी सब में उलझाये रखेगा | तो सबसे पहले हमें मन से उलझना नहीं है | बस देखते जाना है न विरोध न समर्थन, आप निरंतर जप करते जाइये | आप भटकेंगे बार बार और वापस आयेंगे | इसमें कोई नयी बात नहीं है ये सभी के साथ होता है | ये सामान्य प्रिक्रिया है | इसके लिए हमें माला से बहुत मदद मिलती है | मन हमें कहीं भटकाता है मगर यदि माला चलती रहेगी तो वो हमें वापस वहीँ ले आएगी | ये अभ्याश की चीज है जब आप अभ्याश करेंगे तो ही जान पाएंगे !!
🔱🚩 !! मंत्र जप के प्रकार !! 🚩🔱
सामान्यतया जप के तीन प्रकार माने जाते हैं जिनका वर्णन हमें हमारी पुस्तकों में मिला है, वो हैं :-
🕉१. वाचिक जप :- वह होता है जिसमें मन्त्र का स्पष्ट उच्चारण किया जाता है।
🕉२. उपांशु जप- वह होता है जिसमें थोड़े बहुत जीभ व होंठ हिलते हैं, उनकी ध्वनि फुसफुसाने जैसी प्रतीत होती है।
🕉३. मानस जप- इस जप में होंठ या जीभ नहीं हिलते, अपितु मन ही मन मन्त्र का जाप होता है।
मगर जब हम मंत्र जप प्रारंभ करते हैं तो हम जप की कई अलग अलग विधियाँ या अवश्था पाते हैं !!
🕉 सबसे पहले हम मंत्र जप, वाचिक जप से प्रारंभ करते हैं | जिसमे की हम मंत्र जप बोलकर करते हैं, जिसे कोई पास बैठा हुआ व्यक्ति भी सुन सकता है | ये सबसे प्रारंभिक अवश्था है | सबसे पहले आप इस प्रकार शुरू करें | क्योंकि शुरुआत में आपको सबसे ज्यादा व्यव्धान आयेंगे | आपका मन बार बार दुनिया भर की बातों पर जायेगा | ऐसी ऐसी बातें आपको साधना के समय पर याद आएँगी | जो की सामान्यतया आपको याद भी नहीं होंगी | आपके आस पास की छोटी से छोटी आवाज पर आपका धयान जायेगा | जिन्हें की आप सामान्यतया सुनते भि नहीं हैं | जिससे की आपको बहुत परेशानी होगी | तो उन सब चीजों से अपना ध्यान हटाने के लिए आप जोर जोर से जप शुरू करेंगे | बोल बोलकर जप करते समय आपके जप की गति भी तेज़ हो जाएगी |
🕉 ये बात ध्यान देने की है की जितना भी आप बाहर जप करेंगे | उतना ही जप की गति तेज रहेगी और जैसे जैसे आप जितना अन्दर डूबते जायेंगे | उतनी ही आपकी गति मंद हो जाएगी | ये स्वाभाविक है, इसमें कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है | आप यदि प्रयाश करें तो बोलते हुए भी मंद गति में जप कर सकते हैं | मगर अन्दर तेज गति में नहीं कर सकते हैं |
🕉 अगली अवश्था आती है जब हमारी वाणी मंद होती जाती है | ये तब ही होता है जब आप पहली अवश्था में निपुण हो जाते हैं | जब आप बोल बोलकर जप करने में सहज हो गए और आपके मन में कोई विचार आपको परेशां नहीं कर रहा है तो दूसरी अवश्था में जाने का समय हो गया है | इसमें नए लोगों को समय लगेगा | मगर प्रयाश से वो स्थिती जरूर आएगी | तो जब आप सहज हो जाएँ तो सबसे पहले क्या करना है की अपनी ध्वनी को धीमा कर दें | और जैसे कोई फुसफुसाता है उस अवश्था में आ जाएँ | अब यदि कोई आपके पास बैठा भी है तो उसे ये पता चलेगा की आप कुछ फुसफुसा रहे हैं | मगर शब्द स्पस्ट नहीं जान पायेगा | जब आप पहली से दूसरी अवश्था में आते हैं तो फिर से आपको व्यवधान परेशान करेंगे | तो आप लगे रहिये, और ज्यादा परेशान हों तो फिर पहली अवश्था में आ जाएँ, और बोल बोलकर शुरू कर दें जब शांत हो जाएँ तो आवाज को धीमी कर दें और दूसरी अवश्था में आ जाएँ | थोडा समय आपको वहां पर अभ्यस्त होने में लगेगा | जैसे ही आप वहां अभ्यस्त हुए तो धीमे से अपने होंठ भी बंद कर दें |
🕉 ये तीसरी अवश्था है जहाँ पर आपके अब होंठ भी बंद हो गए हैं | मात्र आपकी जिह्वा जप कर रही है | अब आपके पास बैठा हुआ व्यक्ति भी आपका जप नहीं सुन सकता है | मगर यहाँ भी वही दिक्कत आती है की जैसे ही आप होंठ बंद करते हैं तो आपका ध्यान दूसरी बातों पर जाने लगता है | मन भटकने लगता है | तो यहाँ भी आपको वही सूत्र अपनाना है की होंठों को हिलाकर जप करना शुरू कर दीजिये | जो की आपका अभ्यास पहले ही बन चूका है और जब शांत हो जाएँ तो चुपके से होंठ बंद कर लीजिये, और अन्दर शुरू हो जाइये | इसी तरह आपको अभ्याश करना होगा | मन आपको बहकता है तो आप मन को बहकाइए | और एक अवश्था से दूसरी अवश्था में छलांग लगाते जाइये |
🕉 इसके बाद चोथी अवश्था आती है मानस जप या मानसिक जप की | जब आपको कुछ समय हो जायेगा होठों को बंद करके जप करते हुए और आप इसके अभ्यस्त हो जायेंगे | भाइयों इस अवश्था तक पहुँचने में काफी समय लगता है | सब कुछ आपके अभ्याश व प्रयाश पर निर्भर करता है | तो उसके बाद आप अपनी जीभ को भी बंद कर देंगे | ये करना थोडा मुश्किल होता है क्योंकि जैसे ही आपकी जीभ चलना बंद होगी | तो आपका मन फिर सक्रीय हो जायेगा | और वो जाने कहाँ कहाँ की बातें आपके सामने लेकर आएगा | तो यहाँ भी वही युक्ति से काम चलेगा की जीभ चलाना शुरू कर दें | जब वहां आकाग्र हो जाये और फिर उसे बंद कर दें, और अन्दर उतर जाएँ और मन ही मन जप शुरू कर दें | धीरे धीरे आप यहाँ पर अभ्यस्त हो जायेंगे और निरंतर मन ही मन जप चलता रहेगा | इस अवश्था में आप कंठ पर रहकर जप करते रहते हैं |
🕉 इसके बाद किताबों में कोई और वर्णन नहीं मिलता है | मगर मार्ग यहाँ से आगे भी है | और असली अवश्था यहाँ के बाद ही आनी है |
🕉 इसके बाद आप और अन्दर डूबते जायेंगे | अन्दर और अन्दर धीरे धीरे | निरंतर अन्दर जायेंगे | लगभग नाभि के पास आप जप कर रहे होंगे | और धीरे धीरे जैसे जैसे आप वहां पर अभ्यस्त होंगे तो आप एक अवश्था में पाएंगे की मैं जप कर ही नहीं रहा हूँ |
🕉 बल्कि वो उठ रहा है | वो अपने आप उठ रहा है | नाभि से उठ रहा है | आप अलग है | हाँ आप देख रहे हैं की मैं जपने वाला हूँ ही नहीं | वो स्वयं उठ रहा है | आपका कोई प्रयाश उसके लिए नहीं है | आप अलग होकर मात्र द्रष्टा भाव से उसे देख रहे हैं और महसूस कर रहे हैं | ये शायद जप की चरम अवश्था है | निरंतर जप चल रहा है | वो स्वत है और आप द्रष्टा हैं | इसी अवश्था को अजपाजप कहा गया है | जिस अवश्था में आप जप नहीं कर रहें हैं मगर वो स्वयं चल रहा है |
धीरे धीरे इस अवश्था में आप देखेंगे कि आप कुछ और काम भी कर रहे हैं | तो भी जब भी आप ध्यान देंगे तो वो स्वयं चल रहा है | और यदि नहीं चल रहा है, तो जब भी आपका ध्यान वहां जाये | तो आप मानसिक जप शुरू कर दें | तो उस अवश्था में पहुँच जायेंगे |
शास्त्रों में जप के सभी फल इसी अवश्था के लिए कहे गए हैं | आप इस अवश्था में जप कीजिये और सभी फल आपको मिलेंगे | जप और ध्यान यहाँ पर एक ही हो जाते हैं | जैसे जैसे आप उस पर धयान देंगे तो आगे कुछ नहीं करना है | बस उस में एकाकार हो जाइये | और मंजिल आपके सामने होगी !!
🌺!! आपका प्रयास !! 🌺
सबसे अच्छा तरीका है कि आप जिस भी मंत्र का जप करते हैं | उसे कंठस्थ करें और जब भी आपके पास समय हो तभी आप अन्दर ही अन्दर जप शुरू कर दें | आप आसन पर नियम से जो जप करते हैं | उसे करते रहें उसी प्रकार | बस थोडा सा अतिरिक्त प्रयास शुरू कर दें |
🕉कई सारे लोग कहेंगे की हमें समय नहीं मिलता है आदि आदि | कितना भी व्य्शत व्यक्ति हो वो कुछ समय के लिए जरूर फ्री होता है | तो आपको बस सचेत होना है | अपने मन को आप निर्देश दें और ध्यान दें | बस जैसे ही आप फ्री हों तो जप शुरू | और कुछ करने की जरूरत ही नहीं है | बस यही नियम और धीरे धीरे आप दुसरे कम ध्यान वाले कार्यों को करते हुए भी जप करते रहेंगे | निरंतर उस जप में डूबते जाइये |
🕉जब आप सोने के लिए बिस्तर पर जाये तो अपने सभी कर्म अपने इष्ट को समर्पित करें | अपने आपको उन्हें समर्पित करें | और मन ही मन जप शुरू कर दें | और धीरे धीरे जप करते हुए ही सो जाएँ | शुरू शुरू में थोडा परेशानी महसूस करेंगे मगर बस प्रयास निरंतर रखें | इससे क्या होगा की आपका शरीर तो सो जायेगा | मगर आपका सूक्ष्म शरीर जप करता रहेगा | आपकी नींद भी पूरी हो गयी और साधना भी चल रही है |
🕉जैसे ही सुबह आपकी ऑंखें खुलें तो अपने इष्ट का ध्यान करें | और विनती करें की प्रभु आज मुझसे कोई गलत कार्य न हो | और यदि आज कोई ऐसी अवश्था आये तो आप मुझे सचेत कर देना और मुझे मार्ग दिखाना | इसके बाद मानसिक जप शुरू कर दें | सभी और नित्य कार्यों को करते हुए इसे निरंतर रखें | फिर जब जब आप कोई गलत निर्णय लेने लगेंगे तो आपके भीतर से आवाज आएगी | धीरे धीरे आप अपने आपमें में परिवर्तन महसूस करेंगे | और धीरे धीरे आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ जायेंगे !!
मगर ये एक दिन में नहीं होगा | बहुत प्रयाश करना होगा | निरंतर चलना होगा | तभी मंजिल मिलेगी | इसलिए अपने आपको तैयार कीजिये और साधना में डूब जाइये | आपको सब कुछ मिलेगा !!
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द्वारा निखिल शिष्य - अमित शर्मा
अंतर्राष्ट्रीय सिद्धाश्रम साधक परिवार जोधपुर
जीवन का वास्तविक रहस्य
जीवन का वास्तविक रहस्य
राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत पुराण सुनते हुए ,जब सुकदेव जी महाराज को 6 दिन बीत गए और तक्षक सर्प के काटने से मृत्यु का एक दिन शेष रह गया ,तब राजा परीक्षित का शोक और मृत्यु का भय दूर नही हुआ ।अपने मरने की घड़ी निकट आते देखकर राजा का मन क्षुब्ध हो गया ।तब शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित को एक कथा सुननी आरम्भ की ।,"राजन बहुत समय पहले की बात है ।एक राजा किसी जंगल मे शिकार खेलने गया ।संयोगवश वह रास्ता भूलकर बड़े घने जंगल मे पहुंचा ।उसे रास्ता ढूँढते ढूँढते रात्रि हो गयी और भारी वर्षा होने लगी । जंगल में सिंह व्याघ्र आदि बोलने लगे । वह राजा बहुत डर गया और किसी प्रकार उस भयानक जंगल में रात्रि बिताने के लिए विश्राम का स्थान ढूंढने लगा ।
रात के समय में अंधेरे में उसे एक दीपक दिखाई दिया यहां पहुंच कर उसने एक बहेलिये की झोपड़ी देखी । वह बहेलिया ज्यादा चल फिर नहीं सकता था इसलिए झोपड़ी में ही एक और उसने मल मूत्र त्यागने का स्थान बना रखा था । अपने खाने के लिए जानवरों का मांस उसने झोपड़ी के छत पर लटका रखा था । बडी गंदी ,छोटी अंधेरी ,और दुर्गंध युक्त वह जो झोपड़ी थी । उस झोपडी को देखकर पहले तो राजा झिझका। लेकिन पीछे उसने सिर छिपाने का कोई आश्रय ना देखकर उस बहेलिये से अपनी झोपड़ी में रात भर ठहर जाने देने के लिए प्रार्थना की ।
बहेलियां ने कहा कि आश्रय के लोभी राहगीर कभी-कभी यहां आ भटकते हैं ।मैं उन्हें ठहरा तो लेता हूं लेकिन दूसरे दिन जाते समय में बहुत झंझट करते हैं । झोपड़ी की गंध उन्हें ऐसी भा जाती है कि फिर वे उसे छोड़ना ही नहीं चाहते और इसी में ही रहने की कोशिश करते हैं एवं अपना कब्जा जमाते हैं ।ऐसे झंझट में मैं कई बार पढ़ चुका हूं ।इसलिए मैं अब किसी को भी यहां नहीं ठहरने देता ।
मैं आपको भी इसमें नहीं ठहरने दूंगा।
राजा ने प्रतिज्ञा कर कहा कि वह सुबह होते ही इस झोपड़ी को अवश्य खाली कर देगा ।
उसका काम तो बहुत बड़ा है । यहां तो वह संयोगवश भटकते हुए आया है ।सिर्फ एक रात्रि ही काटनी है। बहेलिया ने राजा को ठहरने की अनुमति दे दी । बहेलिया ने सुबह होते ही बिना कोई झंझट किए झोपड़ी खाली कर देने की शर्त को फिर दोहराया । राजा रात भर एक कोने में पड़ा सोता रहा। सोते-सोते झोपड़ी की दुर्गंध उसके मस्तिष्क में ऐसी बस गई कि सुबह उठा तो वही सब परम प्रिय लगने लगा। अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को भूल कर वह वही निवास करने की बात सोचने लगा ।वह बहेलिये से उसे वहां और ठहरने देने की प्रार्थना करने लगा ।इस पर बहेलिया भड़क गया और राजा को भला बुरा कहने लगा ।राजा को अब वह जगह छोड़ना झंझट लगने लगा और दोनों के बीच उस स्थान को लेकर विवाद खड़ा हो गया ।
कथा सुनकर सुखदेव जी महाराज ने परीक्षित से पूछा परीक्षित बताओ क्या उस राजा का उचित स्थान पर सदा रहने के लिए झंझट करना उचित था ?परीक्षित ने उत्तर दिया भगवान वह कौन राजा था? उसका नाम बताइए । वह तो बड़ा भारी मूर्ख जान पड़ता है जो ऐसी गंदी झोपड़ी में अपनी प्रतिज्ञा तोड़कर एवं अपना वास्तविक उद्देश्य भूलकर नियत अवधि से भी अधिक रहना चाहता है । उसकी मूर्खता पर तो मुझे आश्चर्य होता है ।श्री सुखदेव जी महाराज ने कहा हे राजा परीक्षित वह बड़े भारी मूर्ख तो स्वयं आप ही हैं । इस मल मूत्र की गठरी के शरीर में जितने समय आपकी आत्मा को रहना आवश्यक था वह अवधि तो कल समाप्त हो रही है ।अब आपको उस लोक जाना है जहां से आप आए हैं । फिर भी आप झंझट फैला रहे हैं और शरीर छोड़ने का समय आ जाने पर भी जाना नहीं चाहते । क्या यह आपकी मूर्खता नहीं है । राजा परीक्षित का ज्ञान जाग पड़ा और वे बंधन मुक्ति के लिए सहर्ष तैयार हो गए ।
वास्तव में यही सत्य है जब एक जीव अपनी मां की कोख से जन्म लेता है तो अपनी मां की कोख के अंदर भगवान से प्रार्थना करता है कि हे भगवान मुझे यहां इस कोख से मुक्ति दीजिए । मैं आप का भजन सुमिरन करूंगा और जब वह जन्म लेकर इस संसार में आता है तो उस राजा की तरह हैरान होकर सोचने लगता है कि मैं यह कहां आ गया और पैदा होते ही रोने लगता है । फिर उस गंध से भरी झोपड़ी की तरह उसे यहां की खुशबू ऐसी भा जाती है कि वह अपना वास्तविक उद्देश्य भूल कर यहां से जाना ही नहीं चाहता । अतः संसार में आने के अपने वास्तविक उद्देश्य को पहचाने और उसको प्राप्त करें ।ऐसा कर लेने पर आपको मृत्यु कब है यह डर नहीं सताएगा । सदगुरुदेव ने इस ग्रंथ में यही बताया है कि आत्मा जो कि ब्रह्म स्वरुप है लेकिन शरीर रूपी इस झोपड़ी में आकर अपने महान जीवन के उद्देश्य को भूल गई है । उसे इस झोपड़े की गंध आ गई है और वह उसी में उन्हीं क्रियाकलापों के साथ और अधिक दिन रहने की कोशिश करता रहता है। भले ही उसका वापस जाने का समय निकट आ जाए ।
Wednesday, November 25, 2020
राम नाम की महिमा
*राम नाम की महिमा*
चित्रकूट सब दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत ।
राम नाम जप जापकहि तुलसी अभिमत देव।।
पय अहार फल खाई जपु राम नाम षट मास ।
सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल तुलसीदास।।
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार ।
तुलसी भीतर बाहरेहु जौ चाहसि उजिआर ।।
भावार्थ :- श्री सीताजी और श्री लक्ष्मण जी सहित प्रभु श्री राम जी चित्रकूट में सदा निवास करते है । तुलसीदास जी कहते है कि वे प्रभु राम नाम का जप करने वाले को इच्छित फल देते है ।6 महीने तक केवल दूध का सेवन करके अथवा फल खाकर केवल राम नाम का जप करो ।
तुलसीदास जी कहते है कि ऐसा करने से सब प्रकार के सुमंगल और सब प्रकार की सिद्धियां करतल हो जाएंगी अर्थात अपने आप मिल जाएंगी । तुलसीदास जी कहते है कि यदि तू भीतर और बाहर दोनो ओर प्रकाश(लौकिक और पारमार्थिक ज्ञान ) चाहता है तो मुखरूपी दरवाजे की देहलीज पर रामनामरूपी (हवा के झोंके अथवा तेल की कमी से कभी न बुझने वाला नित्य प्रकाशमय) मणिदीप रख दो (अर्थात जीभ के द्वारा अखंड रूप से राम नाम का जप करता रह )
Monday, November 23, 2020
उत्तम पति प्राप्त करने का साधन
एक बार स्वर्ग की अप्सराओं ने देवर्षि नारद जी से पूछा, "देवर्षि आप ब्रम्हा जी के पुत्र है। हमे उत्तम पति पाने की अभिलाषा है। भगवान नारायण हमारे प्राण पति हो सके। इसके लिए आप हम लोगों को कोई व्रत बताने की कृपा करे।
नारद जी ने कहा -प्रायः सबके लिए कल्याणदायक नियम यह है कि प्रश्न करने के पूर्व प्रश्नकर्ता विनयपूर्वक प्रणाम करे,पर तुम लोगों ने इस नियम का पालन नही किया क्यूकि तुमको अपनी युवा अवस्था का गर्व है। फिर भी तुम लोग देवाधिदेव भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन करो और उनसे वर मांगो-प्रभो आप हमारे स्वामी होने की कृपा करे। इससे तुम्हारा सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध होगा। इसमे कोई संशय नहीं है।साथ ही मै एक व्रत भी बताता हू जिसे करने से भगवान श्री हरि स्वंय वर देने के लिए उधत हो जाते है । चैत्र और वैशाख मास के शुक्ल पक्ष मे जो द्वादशी तिथि आती है उस दिन यह व्रत करना चाहिए। रात मे विधिवत भगवान श्री हरि की पूजा करे। बुद्धिमान वयकति को चाहिए कि भगवान की प्रतिमा के ऊपर लाल फूलों से एक मंडप बनवाये। नृत्य, गीत एवं वाध के साथ रात मे जागरण करे तथा "ॐ भवाय नमः"," ऊँ अनङ्गाय नमः"," ऊँ कामाय् नमः"," ऊँ सुसास्त्राय् नमः"," ऊँ मन्मथाय नमः"तथा "ऊँ हरये नमः" कहकर क्रमशः भगवान के सिर,कटि,भुजा,उदर एवं चरण आदि की पूजा करे। फिर भगवान को प्रणाम कर रात्रि जागरण की विधि संपन्न करके प्रातः काल भगवान की वह प्रतिमा वेद वेदांग के जानकार ब्राहमण को दान कर दे।
अप्सराओं इस प्रकार व्रत करने पर इच्छानुकूल भगवान विष्णु अवश्य पति रूप मे तुम्हे प्राप्त होंगे। इसके पश्चात ईख (गन्ना ) के पवित्र रस तथा मल्लिका आदि के फूलों से उन देवेशवर की पूजा करना।
इस प्रकार कहकर देवर्षि नारद जी उसी क्षण वहाँ से चले गए। उन अप्सराओं ने व्रत की विधि संपन्न की। फलस्वरूप स्वंय भगवान श्री हरि उन पर संतुष्ट होकर कृष्णावतार मे उनके पति हुए।
(वराह पुराण-अध्याय 54)
नारद जी ने कहा -प्रायः सबके लिए कल्याणदायक नियम यह है कि प्रश्न करने के पूर्व प्रश्नकर्ता विनयपूर्वक प्रणाम करे,पर तुम लोगों ने इस नियम का पालन नही किया क्यूकि तुमको अपनी युवा अवस्था का गर्व है। फिर भी तुम लोग देवाधिदेव भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन करो और उनसे वर मांगो-प्रभो आप हमारे स्वामी होने की कृपा करे। इससे तुम्हारा सम्पूर्ण मनोरथ सिद्ध होगा। इसमे कोई संशय नहीं है।साथ ही मै एक व्रत भी बताता हू जिसे करने से भगवान श्री हरि स्वंय वर देने के लिए उधत हो जाते है । चैत्र और वैशाख मास के शुक्ल पक्ष मे जो द्वादशी तिथि आती है उस दिन यह व्रत करना चाहिए। रात मे विधिवत भगवान श्री हरि की पूजा करे। बुद्धिमान वयकति को चाहिए कि भगवान की प्रतिमा के ऊपर लाल फूलों से एक मंडप बनवाये। नृत्य, गीत एवं वाध के साथ रात मे जागरण करे तथा "ॐ भवाय नमः"," ऊँ अनङ्गाय नमः"," ऊँ कामाय् नमः"," ऊँ सुसास्त्राय् नमः"," ऊँ मन्मथाय नमः"तथा "ऊँ हरये नमः" कहकर क्रमशः भगवान के सिर,कटि,भुजा,उदर एवं चरण आदि की पूजा करे। फिर भगवान को प्रणाम कर रात्रि जागरण की विधि संपन्न करके प्रातः काल भगवान की वह प्रतिमा वेद वेदांग के जानकार ब्राहमण को दान कर दे।
अप्सराओं इस प्रकार व्रत करने पर इच्छानुकूल भगवान विष्णु अवश्य पति रूप मे तुम्हे प्राप्त होंगे। इसके पश्चात ईख (गन्ना ) के पवित्र रस तथा मल्लिका आदि के फूलों से उन देवेशवर की पूजा करना।
इस प्रकार कहकर देवर्षि नारद जी उसी क्षण वहाँ से चले गए। उन अप्सराओं ने व्रत की विधि संपन्न की। फलस्वरूप स्वंय भगवान श्री हरि उन पर संतुष्ट होकर कृष्णावतार मे उनके पति हुए।
(वराह पुराण-अध्याय 54)
Sunday, November 15, 2020
गोवर्धन महाराज की आरती
आरती श्री गोवर्धन महाराज की
श्री गोवर्धन महाराज, ओ महाराज ,
तेरे माथे मुकुट बिराज रहयौ।
1) तोपे पान चढ़े तोपे फूल चढ़े,तोपे पान चढे तोपे फूल चढ़े।
तोपे चढे दूध की धार ओ धार ।
तेरे माथे मुकुट बिराज रहयौ।
श्री गोवर्धन महाराज .........
2)तेरी सात कोस की परिकममा, तेरी सात कोस की परिकममा।
और चकलेशवर विश्राम ,विश्राम तेरे माथे मुकुट विराज रहयौ ।
श्री गोवर्धन महाराज ...........
3) तेरे गले मे कंठा साज रहयौ,तेरे गले मे कंठा साज रहयौ ।
ठोडी पे हीरा लाल ओ लाल ।
तेरे माथे मुकुट बिराज रहयौ।
श्री गोवर्धन महाराज......
4) तेरे कानन कुंडल चमक रहयौ,तेरे कानन कुंडल चमक रहयौ ।
तेरी झांकी बनी विशाल ओ विशाल।
तेरे माथे मुकुट बिराज रहयौ।
श्री गोवर्धन महाराज .......
5) गिरीराज धरण प्रभु तेरी शरण ,गिरिराज धरण प्रभु तेरी शरण।
करो भक्त का बेडा पार ओ पार ।
तेरे माथे मुकुट बिराज रहयौ।
श्री गोवर्धन महाराज ओ महाराज तेरे माथे मुकुट बिराज रहयौ।
श्री गोवर्धन महाराज की जय।
Saturday, November 14, 2020
ब्रमह मुहूर्त मे उठने की परंपरा क्यू?
रात्रि के अंतिम प्रहर को ब्रह्म मुहूर्त कहते हैं। हमारे ऋषि मुनियों ने इस मुहूर्त का विशेष महत्व बताया है। उनके अनुसार यह समय निद्रा त्याग के लिए सर्वोत्तम है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने से सौंदर्य, बल, विद्या, बुद्धि और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्योदय से चार घड़ी (लगभग डेढ़ घण्टे) पूर्व ब्रह्म मुहूर्त में ही जग जाना चाहिये। इस समय सोना शास्त्र निषिद्ध है।
ब्रह्म का मतलब परम तत्व या परमात्मा। मुहूर्त यानी अनुकूल समय। रात्रि का अंतिम प्रहर अर्थात प्रात: 4 से 5.30 बजे का समय ब्रह्म मुहूर्त कहा गया है।
“ब्रह्ममुहूर्ते या निद्रा सा पुण्यक्षयकारिणी”।
(ब्रह्ममुहूर्त की निद्रा पुण्य का नाश करने वाली होती है।)
सिख धर्म में इस समय के लिए बेहद सुन्दर नाम है--"अमृत वेला", जिसके द्वारा इस समय का महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईश्वर भक्ति के लिए यह महत्व स्वयं ही साबित हो जाता है। ईवर भक्ति के लिए यह सर्वश्रेष्ठ समय है। इस समय उठने से मनुष्य को सौंदर्य, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य आदि की प्राप्ति होती है। उसका मन शांत और तन पवित्र होता है।
ब्रह्म मुहूर्त में उठना हमारे जीवन के लिए बहुत लाभकारी है। इससे हमारा शरीर स्वस्थ होता है और दिनभर स्फूर्ति बनी रहती है। स्वस्थ रहने और सफल होने का यह ऐसा फार्मूला है जिसमें खर्च कुछ नहीं होता। केवल आलस्य छोड़ने की जरूरत है।
🌹पौराणिक महत्व 🌹
वाल्मीकि रामायण के मुताबिक माता सीता को ढूंढते हुए श्रीहनुमान ब्रह्ममुहूर्त में ही अशोक वाटिका पहुंचे। जहां उन्होंने वेद व यज्ञ के ज्ञाताओं के मंत्र उच्चारण की आवाज सुनी।
🌹शास्त्रों में भी इसका उल्लेख है 🌹
वर्णं कीर्तिं मतिं लक्ष्मीं स्वास्थ्यमायुश्च विदन्ति।
ब्राह्मे मुहूर्ते संजाग्रच्छि वा पंकज यथा॥
अर्थात- ब्रह्म मुहूर्त में उठने से व्यक्ति को सुंदरता, लक्ष्मी, बुद्धि, स्वास्थ्य, आयु आदि की प्राप्ति होती है। ऐसा करने से शरीर कमल की तरह सुंदर हो जाता हे।
🌹ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति 🌹
ब्रह्म मुहूर्त और प्रकृति का गहरा नाता है। इस समय में पशु-पक्षी जाग जाते हैं। उनका मधुर कलरव शुरू हो जाता है। कमल का फूल भी खिल उठता है। मुर्गे बांग देने लगते हैं। एक तरह से प्रकृति भी ब्रह्म मुहूर्त में चैतन्य हो जाती है। यह प्रतीक है उठने, जागने का। प्रकृति हमें संदेश देती है ब्रह्म मुहूर्त में उठने के लिए।
🌹इसलिए मिलती है सफलता व समृद्धि
आयुर्वेद के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त में उठकर टहलने से शरीर में संजीवनी शक्ति का संचार होता है। यही कारण है कि इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। इसके अलावा यह समय अध्ययन के लिए भी सर्वोत्तम बताया गया है क्योंकि रात को आराम करने के बाद सुबह जब हम उठते हैं तो शरीर तथा मस्तिष्क में भी स्फूर्ति व ताजगी बनी रहती है। प्रमुख मंदिरों के पट भी ब्रह्म मुहूर्त में खोल दिए जाते हैं तथा भगवान का श्रृंगार व पूजन भी ब्रह्म मुहूर्त में किए जाने का विधान है।
🌹ब्रह्ममुहूर्त के धार्मिक, पौराणिक व व्यावहारिक पहलुओं और लाभ को जानकर हर रोज इस शुभ घड़ी में जागना शुरू करें तो बेहतर नतीजे मिलेंगे।
🌹ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाला व्यक्ति सफल, सुखी और समृद्ध होता है, क्यों? क्योंकि जल्दी उठने से दिनभर के कार्यों और योजनाओं को बनाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है। इसलिए न केवल जीवन सफल होता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहने वाला हर व्यक्ति सुखी और समृद्ध हो सकता है। कारण वह जो काम करता है उसमें उसकी प्रगति होती है। विद्यार्थी परीक्षा में सफल रहता है। जॉब (नौकरी) करने वाले से बॉस खुश रहता है। बिजनेसमैन अच्छी कमाई कर सकता है। बीमार आदमी की आय तो प्रभावित होती ही है, उल्टे खर्च बढऩे लगता है। सफलता उसी के कदम चूमती है जो समय का सदुपयोग करे और स्वस्थ रहे। अत: स्वस्थ और सफल रहना है तो ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
🌹वेदों में भी ब्रह्म मुहूर्त में उठने का महत्व और उससे होने वाले लाभ का उल्लेख किया गया है।
🌹प्रातारत्नं प्रातरिष्वा दधाति तं चिकित्वा प्रतिगृह्यनिधत्तो।
तेन प्रजां वर्धयमान आयू रायस्पोषेण सचेत सुवीर:॥ - ऋग्वेद-1/125/1
🌹अर्थात- सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा रहता है। इसीलिए बुद्धिमान लोग इस समय को व्यर्थ नहीं गंवाते। सुबह जल्दी उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, सुखी, ताकतवाला और दीर्घायु होता है।
यद्य सूर उदितोऽनागा मित्रोऽर्यमा। सुवाति सविता भग:॥ - सामवेद-35
🌹अर्थात- व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले शौच व स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। इस समय की शुद्ध व निर्मल हवा से स्वास्थ्य और संपत्ति की वृद्धि होती है।
उद्यन्त्सूर्यं इव सुप्तानां द्विषतां वर्च आददे।
अथर्ववेद- 7/16/२
अर्थात- सूरज उगने के बाद भी जो नहीं उठते या जागते उनका तेज खत्म हो जाता है।
🌹व्यावहारिक महत्व🌹
व्यावहारिक रूप से अच्छी सेहत, ताजगी और ऊर्जा पाने के लिए ब्रह्ममुहूर्त बेहतर समय है। क्योंकि रात की नींद के बाद पिछले दिन की शारीरिक और मानसिक थकान उतर जाने पर दिमाग शांत और स्थिर रहता है। वातावरण और हवा भी स्वच्छ होती है। ऐसे में देव उपासना, ध्यान, योग, पूजा तन, मन और बुद्धि को पुष्ट करते हैं।
🌹जैविक घड़ी पर आधारित शरीर की दिनचर्या 🌹
प्रातः 3 से 5 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से फेफड़ों में होती है। थोड़ा गुनगुना पानी पीकर खुली हवा में घूमना एवं प्राणायाम करना । इस समय दीर्घ श्वसन करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता खूब विकसित होती है। उन्हें शुद्ध वायु (आक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है। ब्रह्म मुहूर्त में उठने वाले लोग बुद्धिमान व उत्साही होते है, और सोते रहने वालों का जीवन निस्तेज हो जाता है ।
🌹प्रातः 5 से 7 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आंत में होती है। प्रातः जागरण से लेकर सुबह 7 बजे के बीच मल-त्याग एवं स्नान का लेना चाहिए । सुबह 7 के बाद जो मल-त्याग करते है उनकी आँतें मल में से त्याज्य द्रवांश का शोषण कर मल को सुखा देती हैं। इससे कब्ज तथा कई अन्य रोग उत्पन्न होते हैं।
🌹प्रातः 7 से 9 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से आमाशय में होती है। यह समय भोजन के लिए उपर्युक्त है । इस समय पाचक रस अधिक बनते हैं। भोजन के बीच-बीच में गुनगुना पानी (अनुकूलता अनुसार) घूँट-घूँट पिये।
🌹प्रातः 11 से 1 – इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से हृदय में होती है।
🌹दोपहर 12 बजे के आस–पास मध्याह्न – संध्या (आराम) करने की हमारी संस्कृति में विधान है। इसी लिए भोजन वर्जित है । इस समय तरल पदार्थ ले सकते है। जैसे मट्ठा पी सकते है। दही खा सकते है ।
🌹दोपहर 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से छोटी आंत में होती है। इसका कार्य आहार से मिले पोषक तत्त्वों का अवशोषण व व्यर्थ पदार्थों को बड़ी आँत की ओर धकेलना है। भोजन के बाद प्यास अनुरूप पानी पीना चाहिए । इस समय भोजन करने अथवा सोने से पोषक आहार-रस के शोषण में अवरोध उत्पन्न होता है व शरीर रोगी तथा दुर्बल हो जाता है ।
🌹दोपहर 3 से 5 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मूत्राशय में होती है । 2-4 घंटे पहले पिये पानी से इस समय मूत्र-त्याग की प्रवृति होती है।
🌹शाम 5 से 7 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से गुर्दे में होती है । इस समय हल्का भोजन कर लेना चाहिए । शाम को सूर्यास्त से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना उत्तम रहेगा। सूर्यास्त के 10 मिनट पहले से 10 मिनट बाद तक (संध्याकाल) भोजन न करे। शाम को भोजन के तीन घंटे बाद दूध पी सकते है । देर रात को किया गया भोजन सुस्ती लाता है यह अनुभवगम्य है।
🌹रात्री 7 से 9 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से मस्तिष्क में होती है । इस समय मस्तिष्क विशेष रूप से सक्रिय रहता है । अतः प्रातःकाल के अलावा इस काल में पढ़ा हुआ पाठ जल्दी याद रह जाता है । आधुनिक अन्वेषण से भी इसकी पुष्टी हुई है।
🌹रात्री 9 से 11 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी में स्थित मेरुरज्जु में होती है। इस समय पीठ के बल या बायीं करवट लेकर विश्राम करने से मेरूरज्जु को प्राप्त शक्ति को ग्रहण करने में मदद मिलती है। इस समय की नींद सर्वाधिक विश्रांति प्रदान करती है । इस समय का जागरण शरीर व बुद्धि को थका देता है । यदि इस समय भोजन किया जाय तो वह सुबह तक जठर में पड़ा रहता है, पचता नहीं और उसके सड़ने से हानिकारक द्रव्य पैदा होते हैं जो अम्ल (एसिड) के साथ आँतों में जाने से रोग उत्पन्न करते हैं। इसलिए इस समय भोजन करना खतरनाक है।
🌹रात्री 11 से 1 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से पित्ताशय में होती है । इस समय का जागरण पित्त-विकार, अनिद्रा , नेत्ररोग उत्पन्न करता है व बुढ़ापा जल्दी लाता है । इस समय नई कोशिकाएं बनती है ।
🌹रात्री 1 से 3 -- इस समय जीवनी-शक्ति विशेष रूप से लीवर में होती है । अन्न का सूक्ष्म पाचन करना यह यकृत का कार्य है। इस समय का जागरण यकृत (लीवर) व पाचन-तंत्र को बिगाड़ देता है । इस समय यदि जागते रहे तो शरीर नींद के वशीभूत होने लगता है, दृष्टि मंद होती है और शरीर की प्रतिक्रियाएं मंद होती हैं। अतः इस समय सड़क दुर्घटनाएँ अधिक होती हैं।
🌹नोट :-ऋषियों व आयुर्वेदाचार्यों ने बिना भूख लगे भोजन करना वर्जित बताया है। अतः प्रातः एवं शाम के भोजन की मात्रा ऐसी रखे, जिससे ऊपर बताए भोजन के समय में खुलकर भूख लगे। जमीन पर कुछ बिछाकर सुखासन में बैठकर ही भोजन करें। इस आसन में मूलाधार चक्र सक्रिय होने से जठराग्नि प्रदीप्त रहती है। कुर्सी पर बैठकर भोजन करने में पाचनशक्ति कमजोर तथा खड़े होकर भोजन करने से तो बिल्कुल नहींवत् हो जाती है। इसलिए ʹबुफे डिनरʹ से बचना चाहिए।
🌹पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र का लाभ लेने हेतु सिर पूर्व या दक्षिण दिशा में करके ही सोयें, अन्यथा अनिद्रा जैसी तकलीफें होती हैं।
🌹शरीर की जैविक घड़ी को ठीक ढंग से चलाने हेतु रात्रि को बत्ती बंद करके सोयें। इस संदर्भ में हुए शोध चौंकाने वाले हैं। देर रात तक कार्य या अध्ययन करने से और बत्ती चालू रख के सोने से जैविक घड़ी निष्क्रिय होकर भयंकर स्वास्थ्य-संबंधी हानियाँ होती हैं। अँधेरे में सोने से यह जैविक घड़ी ठीक ढंग से चलती है।
आजकल पाये जाने वाले अधिकांश रोगों का कारण अस्त-व्यस्त दिनचर्या व विपरीत आहार ही है। हम अपनी दिनचर्या शरीर की जैविक घड़ के अनुरूप बनाये रखें तो शरीर के विभिन्न अंगों की सक्रियता का हमें अनायास ही लाभ मिलेगा।!
दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
*दीपावली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं*
कंचन कलस बिचित्र सँवारे।
सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।।8.1
बंदनवार पताका केतू।
सबन्हि बनाये मंगल हेतू।।8.2
बीथीं सकल सुगंध सिंचाईं।
गजमनि रुचि बहु चौक पुराईं।।8.3
कंचन थार आरती नाना।
जुबतीं सजें करहिं सुभ गाना।।8.6
(श्रीरामचरितमानस,उत्तरकाण्ड)
स्थानानि च निरस्यान्तां नन्दीग्रामादितः परम।
सिंचन्तु पृथिवीं कृत्स्नां हिमशीतेन वारिणा।।7
ततोsभ्यवकिरन्त्वन्ये लाजै: पुष्पैश्च सर्वतः।
समुच्छ्रितपताकास्तु रथ्या: पुरवरोत्तमे।।8
शोभयन्तु च वे वेश्मानि सूर्यस्योदयनं प्रति।
स्रग्दाममुक्तपुष्पैश्च सुवर्णै: पञ्चवर्णकै:।।9
(श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण,युद्धकाण्ड,सर्ग-127)
भगवान श्री राम जी के लंका विजय कर अयोध्या आगमन पर अयोध्या के लोगो ने अपने अपने घरों को विभिन्न प्रकार के सुन्दर सुन्दर रत्नों मणियों तोरणों आदि से सजाया रंगोली और चौक से दीवारों और दरवाजों को सजाया सोने के कलश दीपक के साथ अपने दरवाजो पर रखकर मालाओं वन्दनवारों ध्वजों पताकाओं (झंडों वैनरों पोस्टरों ) से घरों द्वारों और गलियों को सजाया गया गलियों में ठंडे और सुंगधित जल का छिड़काव कर पुष्पो से सजाया गया ।अयोध्या नगर के सभी स्त्री पुरुष युवक युवतियों और बच्चे सुन्दर वस्त्र आभूषण से सज धज कर श्रीराम के स्वागत और दर्शन के लिए हर्ष और खुसी से गाजे बाजे के साथ नृत्य और मधुर गान करते हुए प्रसन्न हो प्रतीक्षा कर रहे थे।
On the arrival of Ayodhya after Lord Sri Rama Ji conquered Lanka, the people of Ayodhya decorated their homes with different types of beautiful gems and jewels pylons etc. Rangoli and decorated the walls and doors from the Chowk with gold urn lamps with garlands placed on their doors. The houses were decorated with white flag flags (flag vaners posters) and the streets were decorated with flowers by spraying cold and fragrant water.All the men and women of Ayodhya, the young men and children, dressed in beautiful robes and jewelery were waiting to welcome and see Shree Ram with joy and Khusi, dancing and singing with singing and singing.
ईश्वर करे जैसी खुसी अयोध्या वासियों को श्री राम के अयोध्या आगवन पर हुई ऐसी खुसी हमारे देश के हर घर गाव और शहर में सदा वनी रहे जैसे अयोध्या नगर के घर द्वार गली चौराहे श्री राम के आगवन पर सजे थे वैसे ही हमारे देश का हर घर गाँव और शहर सदा सजा और सँवारा हुआ रहे सब प्रसन्न रहे सब सुखी रहे सब समृद्ध हों सबकी उन्नति हो सब निरोगी हो सबमे आपसी प्रेम अपनापन और सौहार्द्र सदा सर्वदा बना रहे इसी आशा और अपेक्षा के साथ आपको दीपावली की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।
May God bless the people of Ayodhya as it happened on the Ayodhya fire of Ram, and every house of our country will remain forever in the village and city, as the house gate of the Ayodhya city was adorned on the street intersection of Shri Ram, similarly every house in our country The village and the city are always decorated and decorated, everyone is happy, everyone is happy, everyone is prosperous, everyone is prosperous, everyone is healthy, everyone is always in harmony and harmony forever, with this hope and expectation, wishing you a very happy Diwali.
सादर नमस्कार
देव ब्रत चतुर्वेदी-पन्ना(मप्र)
कंचन कलस बिचित्र सँवारे।
सबहिं धरे सजि निज निज द्वारे।।8.1
बंदनवार पताका केतू।
सबन्हि बनाये मंगल हेतू।।8.2
बीथीं सकल सुगंध सिंचाईं।
गजमनि रुचि बहु चौक पुराईं।।8.3
कंचन थार आरती नाना।
जुबतीं सजें करहिं सुभ गाना।।8.6
(श्रीरामचरितमानस,उत्तरकाण्ड)
स्थानानि च निरस्यान्तां नन्दीग्रामादितः परम।
सिंचन्तु पृथिवीं कृत्स्नां हिमशीतेन वारिणा।।7
ततोsभ्यवकिरन्त्वन्ये लाजै: पुष्पैश्च सर्वतः।
समुच्छ्रितपताकास्तु रथ्या: पुरवरोत्तमे।।8
शोभयन्तु च वे वेश्मानि सूर्यस्योदयनं प्रति।
स्रग्दाममुक्तपुष्पैश्च सुवर्णै: पञ्चवर्णकै:।।9
(श्रीमद्वाल्मीकीयरामायण,युद्धकाण्ड,सर्ग-127)
भगवान श्री राम जी के लंका विजय कर अयोध्या आगमन पर अयोध्या के लोगो ने अपने अपने घरों को विभिन्न प्रकार के सुन्दर सुन्दर रत्नों मणियों तोरणों आदि से सजाया रंगोली और चौक से दीवारों और दरवाजों को सजाया सोने के कलश दीपक के साथ अपने दरवाजो पर रखकर मालाओं वन्दनवारों ध्वजों पताकाओं (झंडों वैनरों पोस्टरों ) से घरों द्वारों और गलियों को सजाया गया गलियों में ठंडे और सुंगधित जल का छिड़काव कर पुष्पो से सजाया गया ।अयोध्या नगर के सभी स्त्री पुरुष युवक युवतियों और बच्चे सुन्दर वस्त्र आभूषण से सज धज कर श्रीराम के स्वागत और दर्शन के लिए हर्ष और खुसी से गाजे बाजे के साथ नृत्य और मधुर गान करते हुए प्रसन्न हो प्रतीक्षा कर रहे थे।
On the arrival of Ayodhya after Lord Sri Rama Ji conquered Lanka, the people of Ayodhya decorated their homes with different types of beautiful gems and jewels pylons etc. Rangoli and decorated the walls and doors from the Chowk with gold urn lamps with garlands placed on their doors. The houses were decorated with white flag flags (flag vaners posters) and the streets were decorated with flowers by spraying cold and fragrant water.All the men and women of Ayodhya, the young men and children, dressed in beautiful robes and jewelery were waiting to welcome and see Shree Ram with joy and Khusi, dancing and singing with singing and singing.
ईश्वर करे जैसी खुसी अयोध्या वासियों को श्री राम के अयोध्या आगवन पर हुई ऐसी खुसी हमारे देश के हर घर गाव और शहर में सदा वनी रहे जैसे अयोध्या नगर के घर द्वार गली चौराहे श्री राम के आगवन पर सजे थे वैसे ही हमारे देश का हर घर गाँव और शहर सदा सजा और सँवारा हुआ रहे सब प्रसन्न रहे सब सुखी रहे सब समृद्ध हों सबकी उन्नति हो सब निरोगी हो सबमे आपसी प्रेम अपनापन और सौहार्द्र सदा सर्वदा बना रहे इसी आशा और अपेक्षा के साथ आपको दीपावली की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं।
May God bless the people of Ayodhya as it happened on the Ayodhya fire of Ram, and every house of our country will remain forever in the village and city, as the house gate of the Ayodhya city was adorned on the street intersection of Shri Ram, similarly every house in our country The village and the city are always decorated and decorated, everyone is happy, everyone is happy, everyone is prosperous, everyone is prosperous, everyone is healthy, everyone is always in harmony and harmony forever, with this hope and expectation, wishing you a very happy Diwali.
सादर नमस्कार
देव ब्रत चतुर्वेदी-पन्ना(मप्र)
Thursday, November 12, 2020
घर मे कौनसे पौधे नही लगाने चाहिए
यत्र कंटकिनो वृक्षा,
यत्र निष्पाववल्लरी।
ब्रह्मवृक्षश्च यात्रास्ति,
सभार्यस्त्वं समविश।।46
बहुला कदली यत्र,
सभार्यस्त्वं समविश।
तालं तमालं भल्लातं ,
तित्तिण्डीखंडमेव च।।49
कदम्बाः खादिरं वापि,
सभार्यस्त्वं समविश।
न्यग्रोध वा गृहे येषा-
मश्वत्थं चूतमेव वा।।50
उदुम्बर वा पनसं,
सभार्यस्त्वं समाविश।
यस्य काकगृहं निम्बे,
आरामे वा गृहे$पि वा।।51
जिस घर में काटे दार वृक्ष वल्लरी(सेम), पलास या छेवक का वृक्ष अगस्त्य ,आक ,दूधवाले वृक्ष , करवीर (कनेर), अजमोदा ,नीम, जटामासी, नील केला ,ताल,तमाल इमली ,भिलावा,कदम, खैर, वरगद,पीपल, आम,गूलर(ऊमर),कटहल, के वृक्ष हो और जिनके घर में या बगीचे में कौवों का निवास हो और जिस घर में काली, कंकाली, डाकिनी ,प्रेत और भैरव की मूर्ती हो उस घर में दुःसह मुनि और उनकी पत्नि ज्येष्ठ या अलक्ष्मी का सदा निवास रहने से घर में हमेशा कलह और दरिद्रता बानी रहती है अतएव घर में ऊपर बताये गए वृक्षऔर विशालकाय वृक्ष न लगाएं और न ही ऊपर बताये गयी रौद्र रूप वाली मूर्तियों की स्थापना करे।
(सन्देश बहुत बड़ा न हो इसलिए पूरे श्लोक नहीं लिखे गए हैं)
The house where the cut tree Vallari (beans), Palas or Chhavek tree Agastya, Aak, milkweed tree, Karvir (Kaner), Ajmoda, Neem, Jatamasi, Neel banana, Tal, Tamal tamarind, Bhilava, Kadam, Khair, Vargad, A tree of peepal, mango, sycamore, jackfruit, and the house of crows in the house or garden, and the house which has idols of Kali, Kankali, Dakini, Phantom and Bhairav, in that house, sadhu muni and his wife eldest Or there is always discord and poverty in the house due to the constant residence of Alakshmi Therefore, do not plant the tree and giant tree mentioned above in the house, nor do you install the statues of the above mentioned form of rage. (The message should not be very large, so entire verses are not written)
श्री लिंग पुराण
उत्तर भाग, अध्याय-6
श्लोक-46 से 51
सादर नमस्कार
देव ब्रत चतुर्वेदी-पन्ना(मप्र)
यत्र निष्पाववल्लरी।
ब्रह्मवृक्षश्च यात्रास्ति,
सभार्यस्त्वं समविश।।46
बहुला कदली यत्र,
सभार्यस्त्वं समविश।
तालं तमालं भल्लातं ,
तित्तिण्डीखंडमेव च।।49
कदम्बाः खादिरं वापि,
सभार्यस्त्वं समविश।
न्यग्रोध वा गृहे येषा-
मश्वत्थं चूतमेव वा।।50
उदुम्बर वा पनसं,
सभार्यस्त्वं समाविश।
यस्य काकगृहं निम्बे,
आरामे वा गृहे$पि वा।।51
जिस घर में काटे दार वृक्ष वल्लरी(सेम), पलास या छेवक का वृक्ष अगस्त्य ,आक ,दूधवाले वृक्ष , करवीर (कनेर), अजमोदा ,नीम, जटामासी, नील केला ,ताल,तमाल इमली ,भिलावा,कदम, खैर, वरगद,पीपल, आम,गूलर(ऊमर),कटहल, के वृक्ष हो और जिनके घर में या बगीचे में कौवों का निवास हो और जिस घर में काली, कंकाली, डाकिनी ,प्रेत और भैरव की मूर्ती हो उस घर में दुःसह मुनि और उनकी पत्नि ज्येष्ठ या अलक्ष्मी का सदा निवास रहने से घर में हमेशा कलह और दरिद्रता बानी रहती है अतएव घर में ऊपर बताये गए वृक्षऔर विशालकाय वृक्ष न लगाएं और न ही ऊपर बताये गयी रौद्र रूप वाली मूर्तियों की स्थापना करे।
(सन्देश बहुत बड़ा न हो इसलिए पूरे श्लोक नहीं लिखे गए हैं)
The house where the cut tree Vallari (beans), Palas or Chhavek tree Agastya, Aak, milkweed tree, Karvir (Kaner), Ajmoda, Neem, Jatamasi, Neel banana, Tal, Tamal tamarind, Bhilava, Kadam, Khair, Vargad, A tree of peepal, mango, sycamore, jackfruit, and the house of crows in the house or garden, and the house which has idols of Kali, Kankali, Dakini, Phantom and Bhairav, in that house, sadhu muni and his wife eldest Or there is always discord and poverty in the house due to the constant residence of Alakshmi Therefore, do not plant the tree and giant tree mentioned above in the house, nor do you install the statues of the above mentioned form of rage. (The message should not be very large, so entire verses are not written)
श्री लिंग पुराण
उत्तर भाग, अध्याय-6
श्लोक-46 से 51
सादर नमस्कार
देव ब्रत चतुर्वेदी-पन्ना(मप्र)
Friday, September 4, 2020
हनुमानजी का तेज
जब बाली को ब्रम्हा जी से ये वरदान प्राप्त हुआ,,
की जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा,,उसकी आधी ताक़त बाली के शरीर मे चली जायेगी,,
और इससे बाली हर युद्ध मे अजेय रहेगा,,
सुग्रीव, बाली दोनों ब्रम्हा के औरस (वरदान द्वारा प्राप्त) पुत्र हैं,,
और ब्रम्हा जी की कृपा बाली पर सदैव बनी रहती है,,
बाली को अपने बल पर बड़ा घमंड था,,
उसका घमंड तब ओर भी बढ़ गया,,
जब उसने करीब करीब तीनों लोकों पर विजय पाए हुए रावण से युद्ध किया और रावण को अपनी पूँछ से बांध कर छह महीने तक पूरी दुनिया घूमी,,
रावण जैसे योद्धा को इस प्रकार हरा कर बाली के घमंड का कोई सीमा न रहा,,
अब वो अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा था,,
और यही उसकी सबसे बड़ी भूल हुई,,
अपने ताकत के मद में चूर एक दिन एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ फेंक रहा था,,
हरे भरे वृक्षों को तहस नहस कर दे रहा था,,
अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से मिला कर कीचड़ कर दे रहा था,,
एक तरह से अपने ताक़त के नशे में बाली पूरे जंगल को उजाड़ कर रख देना चाहता था,,
और बार बार अपने से युद्ध करने की चेतावनी दे रहा था- है कोई जो बाली से युद्ध करने की हिम्मत रखता हो,,
है कोई जो अपने माँ का दूध पिया हो,,
जो बाली से युद्ध करके बाली को हरा दे,,
इस तरह की गर्जना करते हुए बाली उस जंगल को तहस नहस कर रहा था,,
संयोग वश उसी जंगल के बीच मे हनुमान जी,, राम नाम का जाप करते हुए तपस्या में बैठे थे,,
बाली की इस हरकत से हनुमान जी को राम नाम का जप करने में विघ्न लगा,,
और हनुमान जी बाली के सामने जाकर बोले- हे वीरों के वीर,, हे ब्रम्ह अंश,, हे राजकुमार बाली,,
( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे) क्यों इस शांत जंगल को अपने बल की बलि दे रहे हो,,
हरे भरे पेड़ों को उखाड़ फेंक रहे हो,
फलों से लदे वृक्षों को मसल दे रहे हो,,
अमृत समान सरोवरों को दूषित मलिन मिट्टी से मिला कर उन्हें नष्ट कर रहे हो,,
इससे तुम्हे क्या मिलेगा,,
तुम्हारे औरस पिता ब्रम्हा के वरदान स्वरूप कोई तुहे युद्ध मे नही हरा सकता,,
क्योंकि जो कोई तुमसे युद्ध करने आएगा,,
उसकी आधी शक्ति तुममे समाहित हो जाएगी,,
इसलिए हे कपि राजकुमार अपने बल के घमंड को शांत कर,,
और राम नाम का जाप कर,,
इससे तेरे मन में अपने बल का भान नही होगा,,
और राम नाम का जाप करने से ये लोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे,,
इतना सुनते ही बाली अपने बल के मद चूर हनुमान जी से बोला- ए तुच्छ वानर,, तू हमें शिक्षा दे रहा है, राजकुमार बाली को,,
जिसने विश्व के सभी योद्धाओं को धूल चटाई है,,
और जिसके एक हुंकार से बड़े से बड़ा पर्वत भी खंड खंड हो जाता है,,
जा तुच्छ वानर, जा और तू ही भक्ति कर अपने राम वाम के,,
और जिस राम की तू बात कर रहा है,
वो है कौन,
और केवल तू ही जानता है राम के बारे में,
मैंने आजतक किसी के मुँह से ये नाम नही सुना,
और तू मुझे राम नाम जपने की शिक्षा दे रहा है,,
हनुमान जी ने कहा- प्रभु श्री राम, तीनो लोकों के स्वामी है,,
उनकी महिमा अपरंपार है,
ये वो सागर है जिसकी एक बूंद भी जिसे मिले वो भवसागर को पार कर जाए,,
बाली- इतना ही महान है राम तो बुला ज़रा,,
मैं भी तो देखूं कितना बल है उसकी भुजाओं में,,
बाली को भगवान राम के विरुद्ध ऐसे कटु वचन हनुमान जो को क्रोध दिलाने के लिए पर्याप्त थे,,
हनुमान- ए बल के मद में चूर बाली,,
तू क्या प्रभु राम को युद्ध मे हराएगा,,
पहले उनके इस तुच्छ सेवक को युद्ध में हरा कर दिखा,,
बाली- तब ठीक है कल के कल नगर के बीचों बीच तेरा और मेरा युद्ध होगा,,
हनुमान जी ने बाली की बात मान ली,,
बाली ने नगर में जाकर घोषणा करवा दिया कि कल नगर के बीच हनुमान और बाली का युद्ध होगा,,
अगले दिन तय समय पर जब हनुमान जी बाली से युद्ध करने अपने घर से निकलने वाले थे,,
तभी उनके सामने ब्रम्हा जी प्रकट हुए,,
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी को प्रणाम किया और बोले- हे जगत पिता आज मुझ जैसे एक वानर के घर आपका पधारने का कारण अवश्य ही कुछ विशेष होगा,,
ब्रम्हा जी बोले- हे अंजनीसुत, हे शिवांश, हे पवनपुत्र, हे राम भक्त हनुमान,,
मेरे पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता के लिए क्षमा कर दो,,
और युद्ध के लिए न जाओ,
हनुमान जी ने कहा- हे प्रभु,,
बाली ने मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता,,
परन्तु उसने मेरे आराध्य श्री राम के बारे में कहा है जिसे मैं सहन नही कर सकता,,
और मुझे युद्ध के लिए चुनौती दिया है,,
जिसे मुझे स्वीकार करना ही होगा,,
अन्यथा सारी विश्व मे ये बात कही जाएगी कि हनुमान कायर है जो ललकारने पर युद्ध करने इसलिए नही जाता है क्योंकि एक बलवान योद्धा उसे ललकार रहा है,,
तब कुछ सोंच कर ब्रम्हा जी ने कहा- ठीक है हनुमान जी,,
पर आप अपने साथ अपनी समस्त सक्तियों को साथ न लेकर जाएं,,
केवल दसवां भाग का बल लेकर जाएं,,
बाकी बल को योग द्वारा अपने आराध्य के चरणों में रख दे,,
युद्ध से आने के उपरांत फिर से उन्हें ग्रहण कर लें,,
हनुमान जी ने ब्रम्हा जी का मान रखते हुए वैसे ही किया और बाली से युद्ध करने घर से निकले,,
उधर बाली नगर के बीच मे एक जगह को अखाड़े में बदल दिया था,,
और हनुमान जी से युद्ध करने को व्याकुल होकर बार बार हनुमान जी को ललकार रहा था,,
पूरा नगर इस अदभुत और दो महायोद्धाओं के युद्ध को देखने के लिए जमा था,,
हनुमान जी जैसे ही युद्ध स्थल पर पहुँचे,,
बाली ने हनुमान को अखाड़े में आने के लिए ललकारा,,
ललकार सुन कर जैसे ही हनुमान जी ने एक पावँ अखाड़े में रखा,,
उनकी आधी शक्ति बाली में चली गई,,
बाली में जैसे ही हनुमान जी की आधी शक्ति समाई,,
बाली के शरीर मे बदलाव आने लगे,
उसके शरीर मे ताकत का सैलाब आ गया,
बाली का शरीर बल के प्रभाव में फूलने लगा,,
उसके शरीर फट कर खून निकलने लगा,,
बाली को कुछ समझ नही आ रहा था,,
तभी ब्रम्हा जी बाली के पास प्रकट हुए और बाली को कहा- पुत्र जितना जल्दी हो सके यहां से दूर अति दूर चले जाओ,
बाली को इस समय कुछ समझ नही आ रहा रहा,,
वो सिर्फ ब्रम्हा जी की बात को सुना और सरपट दौड़ लगा दिया,,
सौ मील से ज्यादा दौड़ने के बाद बाली थक कर गिर गया,,
कुछ देर बाद जब होश आया तो अपने सामने ब्रम्हा जी को देख कर बोला- ये सब क्या है,
हनुमान से युद्ध करने से पहले मेरा शरीर का फटने की हद तक फूलना,,
फिर आपका वहां अचानक आना और ये कहना कि वहां से जितना दूर हो सके चले जाओ,
मुझे कुछ समझ नही आया,,
ब्रम्हा जी बोले-, पुत्र जब तुम्हारे सामने हनुमान जी आये, तो उनका आधा बल तममे समा गया, तब तुम्हे कैसा लगा,,
बाली- मुझे ऐसा लग जैसे मेरे शरीर में शक्ति की सागर लहरें ले रही है,,
ऐसे लगा जैसे इस समस्त संसार मे मेरे तेज़ का सामना कोई नही कर सकता,,
पर साथ ही साथ ऐसा लग रहा था जैसे मेरा शरीर अभी फट पड़ेगा,,,
ब्रम्हा जो बोले- हे बाली,
मैंने हनुमान जी को उनके बल का केवल दसवां भाग ही लेकर तुमसे युद्ध करने को कहा,,
पर तुम तो उनके दसवें भाग के आधे बल को भी नही संभाल सके,,
सोचो, यदि हनुमान जी अपने समस्त बल के साथ तुमसे युद्ध करने आते तो उनके आधे बल से तुम उसी समय फट जाते जब वो तुमसे युद्ध करने को घर से निकलते,,
इतना सुन कर बाली पसीना पसीना हो गया,,
और कुछ देर सोच कर बोला- प्रभु, यदि हनुमान जी के पास इतनी शक्तियां है तो वो इसका उपयोग कहाँ करेंगे,,
ब्रम्हा- हनुमान जी कभी भी अपने पूरे बल का प्रयोग नही कर पाएंगे,,
क्योंकि ये पूरी सृष्टि भी उनके बल के दसवें भाग को नही सह सकती,,
ये सुन कर बाली ने वही हनुमान जी को दंडवत प्रणाम किया और बोला,, जो हनुमान जी जिनके पास अथाह बल होते हुए भी शांत और रामभजन गाते रहते है और एक मैं हूँ जो उनके एक बाल के बराबर भी नही हूँ और उनको ललकार रहा था,,
मुझे क्षमा करें,,
और आत्मग्लानि से भर कर बाली ने राम भगवान का तप किया और आगे चलकर अपने मोक्ष का मार्ग उन्ही से प्राप्त किया ।
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